पुराने जमाने से लेकर आज तक ऊंट, प्रकृति और मानव जाति के बीच का घनिष्ट संबंध रहा है और वे एक दूसरे पर आश्रित भी हैं। यदि रेगिस्तान का प्राण मानव जाति के अस्तित्व से पैदा होता है , तो ऊंट रेगिस्तान की आत्मा ही है, रेगिस्तान में रहने वाले वासियों को ऊंट पर बड़ा गर्व है। महत्वपूर्ण त्यौहारों पर स्थानीय पुरूष अपने बलवान ऊंटों को दिखाने में होड़ लगाते हैं।
अराशान वासी ऊंट पर सवार होने में निपुर्ण हैं , ऊंट दौड़ उन का पसंदीदा खेल ही है। हर वर्ष के शरद में आयोजित नादाम मेले में स्थानीय चरवाहे सुंदर मंगोल जातीय पोशाकों से खूब सजधजकर ऊंट दौड़ में भाग लेते हैं । इस के अलावा वे शादी व्याह, वसंत त्यौहार या प्रार्थना समारोह जैसे भव्य जशनों के उपलक्ष में ऊंट दौड़ की कुशलता दिखाने का मौका नहीं चूकने देते हैं। चरवाहे कनतंग ने इस का परिचय देते हुए कहा,हमारे यहां हर वर्ष के शरद में आयोजित नादाम मेले में ऊंट दौड़ की प्रतियोगिता की जाती है। जबकि वसंत के मौके पर चरवाहे रंगबिरंगे रेश्मी कपड़ों से अपने ऊंटों को सजाते हैं , यहां तक कि वे अपने रिश्तेदारों के घर जाकर ऊंट दौड़ करना भी नहीं भूलते।
स्थानीय चरवाहों को ऊंटों से विशेष लगाव होने की वजह से अराशान क्षेत्र में कमशः ऊंट संस्कृति का नजारा नजर आ गया, जिस से बड़ी तादाद में चरवाहों और आसपास के शहरी वासियों का ध्यान आकर्षित हुआ है। जब ऊंट दौड़ का आयोजन किया जाता है, तो बहुत से स्थानीय ग्रामीण व शहरीय वासी अपनी कारों या बसों के जरिये इस गतिविधि में भाग लेने आते हैं, जिस से स्थानीय आर्थिक विकास को बढावा मिल गया है।
ऊंट मानव जाति और पर्यावरण का अच्छा दोस्त ही नहीं , वह ऊंचे आर्थिक मूल्य वाला निधि भी है। मसलन ऊंट के दूध म मिट में समृद्ध प्रोटीन मौजूद है, उस के ऊन व लेजर गर्म कपडे बनाने में उपयोगी हैं।
ऊंट अपनी छोटी जिंदगी में मानव जाति को असीमित मूल्य प्रदान करते हैं, जिससे गोबिस्तान में अर्थतंत्र का स्थिर विकास होता गया है और स्थानीय चरवाहों का जीवन भी दिन ब दिन खुशहाल होने लगा है। लेकिन जलवायु के असाधारण परिवर्तन की वजह से पारिस्थितिकी में लगातार बिगाड़ आयी है और ऊंटों के अस्तित्व का प्राकृतिक पर्यावरण भी प्रभावित हो गया है।