"खोह्वाडं"लौहे, तांबे या मिश्रित धातु से भी बनता है, जो एक मूठ जैसा होता है और दो भागों में विभाजित होता है, बीच में बांस-जीभ लगाई जाती है, इसकी शैलियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। और आवाज भी बांस से बने "खोह्वाडं"से धीमी होती है।
"खोह्वाडं"की आवाज बहुत सुरीली होती है, इस का प्रयोग सोलो, समूह-गान और संगीत के लिए किया जाता है। "खोह्वाडं" वादकों को इस वाद्य को बजाने के लिए अपनी जीभ व होंठों का इस्तेमाल करना पड़ता है, ताकि हवा से बढ़ते पूर्ण स्वर व लय का सामंजस्य बिठाया जा सके।
शिनच्याडं उइगुर स्वायत्त प्रदेश में किरगिज जाति की जनता "खोह्वाडं"और तार-वाद्य "खाओमूजी"साथ-साथ बजाती है। युननान प्रांत की अल्पसंख्यक जातियों की जनता में त्योहार की खुशी के मौके पर "खोह्वाडं" एक जरूरी वाद्य-यंत्र है।
प्राचीन काल से ही "खोह्वाडं"न केवल एक वाद्य-यंत्र, बल्कि महिलाओं के लिए एक सुन्दर सजावट और प्रेम का उपहार भी रहा है। नाशी जाति का एक प्रेम-गीत इस प्रकार है कि "प्रिय, तुम'खोह्वाडं'को अपनी छाती पर लटका लो, जब तुम्हें मेरी याद आएगी, तब लगेगा मैं तुम्हारे पास हूं।"