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मार्को पोलो के पदचिन्हों पर
2014-05-19 10:25:14 cri

निडंश्या

लानचओ से निकलकर ह्वाडंहो(पीली) नदी के उत्तरी भाग पर चलते हुए हम कार द्वारा कुछ ही घंटों के सफ़र के बाद निडंश्या में दाखिल हुए। इनछ्वेन मैदान, जहां नदियों के जाल से सिंचाई होती है, प्राचीन काल से ही अनेक अल्पसंख्यक जातियों का निवास स्थल रहा है। मार्को पोलो ने लिखा कि निडंश्या में अनेक नगर तथा गढ़ थे, जिन में से प्रमुख युवीलिन के पास स्थित हालाशान नगर था। यहां के निवासी ऊंट तथा भेड़ के ऊन से बेहतरीन कपड़े बुनते थे, जो विश्व भर में मशहूर थे। इन का रंग सफ़ेद होता था, क्योंकि इन्हें बुनने में सफ़ेद ऊंट का ऊन उपयोग में लाया जाता था, व्यापारी इन की अधिक से अधिक मात्रा खरीद कर विश्वभर में बेचते---। अब हालशान का नाम भर ही रह गया है, मगर अब यहां केवल एक विस्तृत रेगिस्तान है। जो इनछ्वेन के उत्तर-पश्चिम से 100 किलोमीटर की दूरी पर बसे टैंगर रेगिस्तान के किनारे पर स्थित है। हालांकि सफ़ेद ऊंट से बना कपड़ा लुप्त हो चुका है, फिर भी हम ने हालाशान घास मैदान में सफ़ेद ऊंटों को चरते देखा।

शाडंतू

लगभग दो माह तक सफ़र पर रहने के बाद हम शाडंतू पहुंचे। जब मार्को पोलो वहां थे, तब सम्राट द्वारा उन का शाही अतिथि-सत्कार होता था। पुस्तक में यह वर्णन किया गया कि "राज प्रासाद संगमरमरी तथआ अन्य सजावटी पत्थरों से निर्मित था। इस के सभी भवन तथा कक्ष स्वर्ण जड़ित थे।" आज यह राज प्रासाद ढह चुका है, सिर्फ़ कुछ अवशेष बचे रह गए हैं। दूर ढलानों पर संकेत दीप स्तंभों की धुंधली सी आकृतियां नज़र आ रही थी।

यहां हमारी यात्रा समाप्त हुई, लेकिन मार्को पोलो ने यहां से फिर लम्बी दीवार तथा छाडंच्याडं नदी, स्थानीय रीति-रिवाजों, उत्पादों तथा संसाधनों की खोज आरंभ की थी और बाद में वापस जाकर चीन के सम्राट को इस का विवरण दिया था।

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