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मार्को पोलो के पदचिन्हों पर
2014-05-19 10:25:14 cri

1271 में इटालवी यात्री मार्को पोलो अपने पिता और चाचा के साथ वेनिस से यात्रा के लिए निकले। चार वर्ष बाद वे शाडंतू(वर्तमान चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत प्रदेश की त्वोलुन काउन्टी के उत्तर पश्चिम में) पहुंचे। चीन में य्वान कालीन सम्राट काबुली खान की सेवा में उन्होंने 17 साल बिताये, वे राजनीति, सैन्य तथा आर्थिक मामलातों के परामर्शदाता थे। 1292 में मार्को पोलो ने स्वदेश लौटने के बाद अपने यात्रा संबंधी अनुभवों पर "मार्को पोलो" नामक एक पुस्तक लिखी। जो कुछ भी मार्को पोलो ने पूर्वी देश में देखा था, उसका वर्णन इस पुस्तक में किया गया। इस पुस्तक ने संपूर्ण यूरोप में सनसनी फैला दी।

तब से अब तक, किसी ने भी मार्को पोलो की इस यात्रा को नहीं दोहराया। 1975 में अमेरीकी मार्को पोलो संस्थापन के एक दल ने उनके यात्रा क्रम के प्रथम चरण को पूरा किया। तब 1985 की ग्रीष्म और शरद में इस सस्थापन ने चीनी सूचना सोसाइटी से मिलकर एक अभियान-दल का संगठन किया, जिस ने मार्को पोलो की चीन यात्रा के अंतिम चरण का अनुकरण किया। दो माह के दौरान इस अभियान दल ने शिनच्याडं छिडंहाए, कानसू, निडंश्या, भीतरी मंगोलिया, हपेई तथा पेइचिंग की यात्राएं कीं।

पामीर पठार

हमारे दल ने अपना सफ़र अमेरीकी मार्को पोलो संस्थापन बोर्ड के अध्यक्ष श्री हैरी रुटस्टेन तथा योजना डायरेक्टर श्री माईकल विन्न के साथ प्रथम बार बाहरी दुनिया के लिए खुली चीन पाकिस्तान सीमा पर स्थित खुनजराब घाटी से आरम्भ किया।

यह पठार गरमियों में बड़ा भव्य लगता है, यहां बर्फ़ से ढ़की 6000 मीटर ऊंची नेक चोटियां हैं, जिनमें विश्व का दूसरा उत्तुंग पर्वत, छोगिर पर्वत तथा "हिम का पिता" नामक मूजतागेत पर्वत शामिल हैं। इन पर्वतों की तलहटी में घास मैदान फैले हुए हैं, जहां ताजिक और किरगिज जातियों के लोग वास करते हैं। जिन पर्वतों और नदियों का मार्को पोलो ने अपनी पुस्तक में विवरण दिया है, वे वैसे की वैसी ही वहां हैं, लेकिन हड्डियों के अम्बार जो यात्रियों के मार्गदर्शक थे, तथा इस मार्ग पर रहने वाली आदिवासी जन-जातियों का अब कोई अस्तित्व नहीं रह गया है। ताशकोरगान के घास मैदान में, काशी की फैक्ट्रियों में, ताजिक विवाहोत्सवों में, यहां तक कि लोगों की भीड़ में हमें प्राचीन जीवनयापन शैली के बीच कुछ आधुनिकता की खुशबू महसूस हुई।

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