Web  hindi.cri.cn
    चीनी परम्परागत वाद्य-यंत्र फीपा
    2014-05-05 11:34:26 cri

    तंतुवाद्य फीपा का चीनी राष्ट्रीय संगीत वाद्य-यंत्र परिवार में काफ़ी सम्मानजनक स्थान है। अपनी वर्णनात्मक कविता"फीपावादक"में थाडं राजवंशकालीन कवि पाए च्वीई ने यों लिखाः

    मोटे तार बारिश की धार की तरह तड़तड़ करते हैं,

    जबकि कोमल तार गुनगुनाते हैं,

    मिश्रित स्वर यों लगता है

    जैसे जेड के कटोरे में मोती टपक रहे हों।

    प्राचीन जमाने में सभी तंतुवाद्यों का सामूहिक नाम फीपा था, इन में तीन तारों वाला गिटार और चन्द तंतुवाद्य भी शामिल थे। हान राजवंश काल के लेखक ल्यू शी के अनुसार "फीपा मध्य पश्चिमी एशिया से चीन पहुंचा। वह उंगलियों के आवागमनरूपी स्पर्श से घोड़े की पीठ पर सवार होकर बजाया जाता था।"

    टेढ़ी गर्दन वाला फीपा वाद्य चीन में चौथी सदी में आया और सातवीं सदी में लोकप्रिय हुआ। थाडं राजवंश काल में किसी लम्बी संगीत-रचना में यह एक विशिष्ट रागध्वनि होता था। प्रसिद्ध तुनह्वाडं भित्तिचित्रों में टेढ़ी गर्दन वाला फीपा प्रमुखता के साथ अंकित हुआ है। आज का फीपा रूप इन्हीं चित्रों से निःसृत है।

    फीपा मुख्यतः काष्ठ का बना होता है, आधी नाशपाती की तरह। शरीर पर पालोवनिया लकड़ी की एक गर्दन संटी रहती है। गर्दन थोड़ी सी पीछे की ओर झुकी होती है। इस में आम तौर पर चार तार होते हैं, जो अंगूठे या उंगलियों से बजाये जाते हैं। यह सुन्दर काष्ठ तंतुवाद्य व्यापक स्वरक्षेत्र का धनी है। फीपा या तो दाएं हाथ से या फिर बाएं हाथ से बजाया जाता है। ध्वनि गुण वैविध्य स्पष्ट रूप से विशिष्ट होता है। चाहे दाएं हाथ से बजाया जाए या बाएं हाथ से, फीपा संरचनाएं काव्यात्मक या सैन्य भाव लिए होती हैं। उदाहरण के लिए थाडं राजवंश काल के प्रतिभावान वादक छाओ काडं दाएं हाथ से फीपा बजाते थे। बाएं हाथ से बजाने में उन्हें वैसी सफलता नहीं मिली। दूसरी ओर चुडंल्येन बाएं हाथ से फीपा बजाने में सिद्धहस्त थे। दाएं हाथ से बजाने में कमाल नहीं था। प्रतिष्ठित वादक दोनों हाथों में वादन-समन्वय पर काफ़ी ध्यान देते हैं। सर्वप्रसिद्ध काव्यात्मक फीपा रचनाओं में कोमल और लयात्मक "बसन्त की प्राचीन धुन"का सर्वोच्च स्थान है, जबकि सैन्य रचनाओं में शक्तिमान और आवेगात्मक "मोर्चा"और "विजेता ने अपना कवच छोड़ा"जैसी रचनाएं शामिल हैं।

    मानचू, मंगोल और नाशी जातियों के लोग पारंपरिक फीपावादक हैं। मानचू जाति के धार्मिक संगीत में फीपा प्रमुख संगत वाद्य है। मिडं राजवंश कालीन एक लेखक ने "च्येनचओ के रास्ते पर"नामक पुस्तक में यह दिलचस्प वर्णन किया हैः "मानचू जाति के संस्थापक नूरहाजी ने एक बार कोरियाई दूत और मंगोलियाई कबीलों के सरदारों के सम्मान में एक दावत दी। उला कबीले के सरदार पूचानथाए मदिरा के नशे में बहका और नूरहाजी का फीपा उठाकर सब के सामने गाना-नाचना शुरू कर दिया। वह फीपा के ताल पर ऐसा कन्धे उचकाता था गोया नाच रहा हो।"नाशी जाति में फीपावादन अब भी लोकप्रिय है।

    1 2 3 4 5
    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040