चीन और भारत इन दो प्राचीन सभ्यता वाले देसों के बीच बहुत पुराने काल में ही संबंध स्थापित हो चुके थे। थांग राजवंश काल में दोनों देशों के बीच संस्कृति का आदान-प्रदान और भी सुगम रुप से होने लगा। चीन के इतिहास में थांग राजवंश एक शानदार काल रहा। तब चीन में स्थिरता थी और अर्थतंत्र व संस्कृति अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुके थे। तत्कालीन राजधानी छांग एन उस काल का पूर्व का एक महा नगर था। अन्य देशों के दूतों विद्वानों औऱ व्यापारियों का शानएन में जमराट रहा था। और छांग एन तत्कालीन अंतरराष्ठ्रीय आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक महत्वूप्रण केंद्र बन गया था। थांग राजवंश ने खुली नीति अपनायी। उस समय चीन मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, अरब , यहां तक अफ्रीका के साथ भी व्यापक रुप से व्यापार करता था और आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान करता रहता था। विशेषकर चीन भारत संबंध उस समय में एक शिखर पर पहुंच गया था। थांग राजवंश के दौरान, 52 चीनी भिक्षु बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए भारत गए औऱ भारत से 16 आचार्य चीन आए। भारत से बौद्ध धर्म के साथ साथ साहित्य, कला, संगीत, हेतु विद्दा, शब्द किया। यहां तक कि ज्योतिष, पंचांग व चिकित्सा भी चीन आए।
परन्तु थांग राजवंश काल में ईसा की चौथी औऱ पांचवीं शताब्दी में उत्पन्न महा यानिक योगाचार सम्प्रदाय ने प्रचार से चीन में बौद्ध धर्म की विभिन्न शाखाओं के बीच अंतर विरोध व मतभेद और तीव्र हो गये। महायान और हीनयान के बीच पहले से ही तकरार थी और फिर महायान के योगाचार व शून्यवाद के बीच भी भिड़न्त होने लग गयी। प्रमुख मतभेद बुद्धत्व को लेकर था।