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    फ़ा श्यान
    2014-09-10 15:19:59 cri

    लेकिन अभी उस की मुश्किलें खत्म नहीं हुई थीं, जिस पानी जहाज से वह यात्रा कर रहा था, वह भी तूफान की चपेट में आ गया। जहाज पर सवार व्यापारियों ने सोचा, शायद जहाज में एक बौद्ध भिक्षु की उपस्थिति के कारण ही उन्हें दैवी प्रकोप का सामना करना पड़ा है। इसलिए, उन्होंने फ़ा श्येन को पानी जहाज से उतारने का निर्णय करना पड़ा है। इसलिए, उन्होंने फा श्ये को पानी जहाज से उतारने का निर्णय किया। भाग्यवशः जिस व्यक्ति ने फ़ा श्यान की यात्रा का प्रबंध किया था, उस ने इस निर्णय का तीव्र विरोध किया। उस ने कहा, अगर तुम लोग इस भिक्षु को डहाज से उतारना चाहते हो, तो पहले मुझे उतार दो या मार डालो। अगर तुम ने फ़ा श्यान को किसी द्वीप पर उतार दिया, तो मैं चीन लौटने के बाद सम्राट से जरुर तुम लोगों की शिकायत करूंगा। इस तरह फ़ा श्यान बच गया। सत्तर दिन तक मौसम खराब रहा और वो लोग नहीं जान पाए कि कहां जा रहे हैं।

    पानी और खाद्य पदार्थ की सप्लाई लगभग समाप्त हो चुकी थई। भोजन पकाने के लिए समुद्री पानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा था। नाविकों का कहना था कि इस यात्रा में आम तौर पर पच्चास दिन लगते हैं। लेकिन, सफर करते करते इस से कहीं ज्यादा समय हो चुका है। हम जरुर रास्ता भटक गये हैं। उन्होंने अपने पानी जहाज को उतर पशअचिम की तरफ बढ़ा दिया। बारह दिन और बीतने के बाद वे लोग तट पर पहुंच गये। वे यह तो जानते थे कि वह चीन का समुद्रत्तर हैं, लेकिन यह नहीं जानते थे कि वह स्थान कौन सा है। एक छोटी नाव से तट पर उतरने के बाद उन्हें दो शिकारी से मिले। फ़ा श्यान को पता लगा कि यह पूर्वी चीन के शान तुंग प्रायद्वीप है।

    फ़ा श्यान को शी आनान छोड़ो पन्द्रह वर्ष हो चुके थे। उसे छै वर्ष भारत जाने में छै वर्ष भारत यात्रा में और तीन वर्ष भार से स्वदेश लौटने में लगे थे।

    चीन से तीन सौ निन्यानवे ईसवी में प्रस्थान करके वह जिंग राजवंश के शासन काल के अन्तिम वर्ष यानी चार सौ चौदह ईसवी में स्वदेश लौट आया था।

    अपनी यात्रा को दौरान, वह कोई तीस राज्यों से गुजरा था। फ़ा श्यान शी आन से पश्चिम की तरफ यात्रा करता हुआ, स्थलमार्ग से भारत गया था और समुद्र मार्ग से स्वदेश लौटा था। इस तरह उसने एक पूरे दायरे में यात्रा की थी।

    इतनी लम्बी यात्रा को उस काल में एक बहुत बड़ा करिश्मा समाझा जाता था। स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने बौद्ध राज्यों का विवरण नामक पुस्तक लिखी। इस महान रचना का भारी ऐतिहासिक मूल्य है। बाद में इस पुस्तक को अनेक भाषाओं में अनूदित किया जा चुका है। ईसा की पांचवीं शताब्दी के एशिया की स्थिति और तत्कालीन संचार साधनों के इतिहास में रुचि रखने वाले चीनी और विदेशी विद्वानों के लिए इसका अधअययन करना अनिवार्य है।

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