140908faxian
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चीन से भारत जाने वाले यात्रियों में श्वेन जांग को छोड़कर फ़ा श्यान और ई जिंग के नाम सब से अधिक प्रसिद्ध हैं।
चार सौ तेरह ईसवी के आसपास एक पानी जहाज हिन्द महा सागर में श्रीलंका से पूर्व की ओऱ चल पड़ा। समुद्र में केवल दो दिन यात्रा करने के बाद पानी जहाज को जबरदस्त तूफान का सामना करना पड़ा और उस में सूराख हो गया। छोटी किश्ती में चढ़ने के लिए यात्रियों में होड़ मच गई। शीघ्र ही वह इतनी भर गई कि उस पर सवार यात्रियों ने जहाज से किश्ती को जोड़ने वाली रस्सी काट दी। जो व्यापारी जहाज में रह गये, उन्हें अपना माल असबाब समुद्र में फेंकना पड़ा ताकि जहाज़ का बोझ कुछ हल्का हो जाए। उन के साथ यात्रा फेंक दिया। पर पोटली को फेंकने के लिए वह बिल्कुल तैयार गया, तब भी उस भिक्षु के पास अपनी कीमती पोतली मौजूद थी।
उस बौद्ध भिक्षु का नाम थआ फआ शअयेन औऱ जिल कीमती पोटली की उस ने इतने जतन में रक्षा की थी। उस में बौद्ध ग्रन्थ थे। जिन्हें वह भारत औऱ श्रीलंका से स्वदेश ले जा रहा था।
पानी जहाज़ की मरम्मत की गई औऱ वह आगे की ओर चल पड़ा। अपनी यात्रा का वर्णन फ़ा श्यान ने इन शब्दों में किया।
उस सागर में समुद्री डाकुओं की भरमार थी। उन के चंगुल में फंसने पर कोई नहीं बच सकता था। चारों ओर महासागर असीमित रुप से फैला हुआ था। पूर्व औऱ पश्चिम के बीच फर्क करना असम्भव था। नाविक केवल सूरज और चांद सितारों को देख कर ही विशाज्ञान कर पाते थे। बादल या वर्षा होने पर हमारा पानी जहाज के वल हवा के रुख के साथ बहता रहता। अंधेरी रातों में सिर्फ ऊंची ऊंची लहरें उठती गिरती दिखाई देती। वे आग की तरह चमकती रहती तथा बड़े बड़े कछुवों, समुद्री दैत्यों और अन्य अजीबोगरीब चीजों को समेट रहतीं। नाविक नहीं जानते थे कि वे कहां जा रहे हैं। सागर बेअन्त गहरा था। सो लंकर डालने की कोई संभावना नहीं थी। जब तक आस्मान साफ़ न हो जाता। तबतक उन्हें दिक्षाज्ञान नहीं हो सकता था और वे सही दिशा में नहीं बढ़ सकते थे। अगर पानी जहाज किसी चट्टान से टकरा जाता तो निसंदेह सब लोग मौत के घाट उतर जाते।
इस तरह वे नब्बे दिन तक चलते रहे। अन्त में वे जावा पहुंच गये। जावा में कोई पांच महीने रुकने के बाद फ़ा श्यान एक अन्य विशाल पानी जहाज में सवार हो गया। उस पानी जहाज में 2 सौ लोग सफर कर रहे थे। पच्चास दिन की खाद्यपदार्थ साथ लेकर वे उत्तर देश के निकट पहंचने लगा।