पिछली शताब्दी में 70 के दशक से ही भूमंडलीय जलवायु गर्म होने लगी, वर्षा में कमी आने लगी, घास के मैदान में पशुओं को बड़ी मात्रा में पालने जैसी वजह से आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा था। इसके साथ ही शहरों और कस्बों में बढ़ती जनसंख्या और इंसानी गतिविधियों की वृद्धि से आर्द्रभूमि धीरे-धीरे सूखने लगी, घास के मैदान कम होने लगे और रेतीलेकरण की स्थिति लगातार बढ़ती गई। पिछली शताब्दी में 60 के दशक से ही रोअर्केई कांउटी में रेतीलीकरण की रोकथाम पर काम होने लगा था। उस समय मुख्य तौर पर मैदानों में घास उगाई जाती थी। 70 के दशक के बाद वन रोपण का काम भी होने लगा। वर्ष 1995 से ही सरकार ने जोरदार तरीके से रेत-निपटारा कार्य को औपचारिक तौर पर शुरु किया।
रोअर्केई कांउटी के वन ब्यूरो के उप प्रधान त्सो लिन के अनुसार शुरुआत में स्थानीय चरवाहे सरकार के इस कार्य को नहीं समझते थे और न ही समथर्न करते थे। उन्हें पता नहीं था कि लम्बे समय में घास के मैदान में पशुपालन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। लेकिन बाद में उन्हें रेतीली हवा से बहुत नुकसान हुआ। इसकी याद करते हुए रोअर्केई कांउटी के वन ब्यूरो के उप प्रधान त्सो लिन ने कहा:
"वर्ष 2003 में हमारे यहां माईशी जिले की स्थिति सबसे गंभीर थी। मार्च के महीने में मौसम बहुत सूखा था और हवा बहुत तेज़ थी। उस समय इस जिले के त्सेशो गांव में नागरिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम था रेत को थैली में भरकर पीठ पर लादकर बाहर तक पहुंचाना।"