कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर में थांगखा चित्रकला को इतनी जीवन शक्ति के साथ विकसित किये जाने का श्रेय स्थानीय सरकारों के समर्थन और थांगखा प्रेमियों व उत्तराधिकारियों के योगदान को जाता है। कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर स्थित लाब्रांग मोनी थांगखा प्रदर्शनी केंद्र थांगखा प्रेमियों को एक और मौका प्रदान करता है। थांगखा चित्र पसंद करने वाला कोई भी व्यक्ति, या चित्रण में प्रतिभा वाला कोई भी व्यक्ति मुफ्त में केंद्र में थांगखा चित्रण सीख सकता है। प्रदर्शनी केंद्र के एक शिक्षक हमारे संवाददाता को बताया:
"हमारे यहां थांगखा चित्रण सीखने के लिए कोई फ़ीस नहीं चाहिए। छात्र सिर्फ़ खाने और रहने का खर्च करते हैं। केंद्र में थांगखा सीखने आए कुछ विकलांग व्यक्ति और अनाथ बच्चे भी हैं। शिक्षक इन विद्यार्थियों की देखभाल भी करते हैं।"
लाब्रांग मोनी थांगखा प्रदर्शनी केंद्र की स्थापना थांगखा शिल्पकार क्वोलो शीरअपू द्वारा की गई। समाज में थांगखा प्रेमी इस केंद्र में मुफ़्त रूप से थांगखा बनाना सीखनेआते हैं। इस प्रदर्शनी केंद्र के संस्थापक क्वोलो शीरअपू के विचार में थांगखा चित्रण सीखने से भविष्य में शिष्य अपने श्रम पर निर्भर रहकर सामाजिक मूल्य स्थापित करेंगे। साथ ही वे स्वयं तैयार थांगखा चित्र की बिक्री से वे आय प्राप्त कर सकेंगे। यह खासकर विकलांग शिष्यों के लिए ज्यादा मददगार साबित होगा। कुछ छात्र इस केंद्र में 5 या 6 सालों तक थांगखा चित्रण के तकनीक सीखते हैं। स्नातक होने के बाद वे अपने हाथों के माध्यम से सामाजिक मूल्य बनाते हैं। कुछ लोग थांगखा चित्र को विरासत में लेते हुए आगे विकास करने में लगे हुए हैं । जबकि कुछ लोग अपनी कंपनी खोलने से इसका प्रसार-प्रचार करते हैं। लाब्रांग मोनी थांगखा प्रदर्शनी केंद्र में सीखने आए एक छात्र ने हमारे संवाददाता से कहा:
"मैं छह साल तक सीख चुका हूँ। थांगखा पसंद होने के कारण इसकी तकनीक सीखने में मुझे थकान नहीं लगती है। थांगखा चित्र में तिब्बती बौद्ध धर्म के विषयों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित होता है। इस प्रकार के चित्र बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता है।"
एक हज़ार से अधिक वर्षों में थांगखा चित्र कला लुप्त होने के बजाय बेहतर ढंग से विकसित हो रही है। इसका श्रेय सरकार के समर्थन और गैरसरकारी व्यक्तियों की कोशिशों को नहीं जाता, बल्कि थांगखा चित्र के कलात्मक मूल्य और धार्मिक महत्व से भी अलग नहीं किया जा सकता।
आम तौर पर थांगखा कलाकार बहुत धैर्य के साथ चित्र बनाते हैं। इसी दौरान उनके मन में पवित्रता और शांति होती है। शिल्पकार की आत्मा अपनी रचना में डाली हुई है, इस प्रकार के थांगखा चित्र सच्चे मायने में थांगखा कला कहे जा सकते हैं। कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर में थांगखा चित्र के विकास के बारे में जो देखा है, लोगों को गहरे ढंग से महसूस हुआ कि तिब्बती संस्कृति के मूल्यवान खजाने के रूप में थांगखा चित्रकला का भविष्य जरूर बहुत सुनहरा होगा।