ध्यान रहे, लाब्रांग मठ के उस युवा भिक्षु गाइड की बातों में त्वेशो थांगखा रंगीन कपड़े के टुकड़ों से कैनवस पर चिपके हुए थांगखा चित्र हैं, जबकि कढाई युक्त थांगखा कैनवस पर कढ़ाई के तरीके से बनाए जाने वाला थांगखा चित्र है।
आधुनिक समाज के विकास के चलते तिब्बती जाति के गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के विकास के सामने चुनौतियां मौजूद हैं। यानी कि इन गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के उत्तराधिकारियों की संख्या लगातार कम हो रही है। लेकिन थांगखा चित्र कला का विकास कायम रहा है। क्यों?क्योंकि थांगखा चित्र का तिब्बती जनता के मन में विशेष स्थान होता है। इसके साथ ही तिब्बती बहुल क्षेत्रों में थांगखा चित्रकला की मजबूत नींव मौजूद है। इसकी चर्चा में कानसू प्रांत के थ्येनचू तिब्बती स्वायत्त कांउटी के जातीय प्राथमिक मिडिल स्कूल में थांगखा सीखाने वाले अध्यापक मा छाईछङ ने कहा:
"हमारे मिडिल स्कूल में थांगखा समेत तिब्बती जाति की गैरभौतिक संस्कृति को विरासत में लेते हुए विकसित किया जाता है। स्कूल में संबंधित कक्षाएं खोली गई हैं, ताकि विद्यार्थी तिब्बती संस्कृति का विकास, अनुसंधान और अध्ययन कर सकें।"