थ्येनचू जातीय प्राथमिक मिडिल स्कूल ने थांगखा चित्रण को रोजमर्रा की पढ़ाई में शामिल किया। स्कूल में विशेष तौर पर "थांगखा चित्र कक्षा"खोली गई, जिससे थांगखा कला प्रेमियों और चित्र प्रतिभा वाले विद्यार्थियों को तिब्बती जाति की इस पारंपरिक हस्तकला को सीखने का मौका मिलेगा। छात्रों द्वारा बनाए गए थांगखा चित्रों का परिचय देते हुए अध्यापक मा छाईछङ ने कहा:
"वर्तमान में हमारे विद्यार्थी आधुनिक समय में तिब्बती किसानों और चरवाहों के जीवन से जुड़े विषयों पर थांगखा चित्र ज्यादा तौर पर बनाते हैं। मसलन् इस थांगखा चित्र में उज्ज्वल भविष्य की अभिव्यक्ति है, जिससे छात्रों का सपना महसूस हो सकता है।"
अध्यापक मा छाईछङ के विचार में युवा छात्रों की कल्पना शक्ति बहुत तेज़ है, जिससे हज़ार वर्ष इतिहास वाले थांगखा चित्र के विकास में नई जीवन शक्ति संचार हुई। उन्होंने कहा कि छात्र पारंपरिक थांगखा चित्र बनाने की तकनीक हासिल करने के बाद आधुनिक समाज के दृश्य और अपने कल्पना को रचनाओं में शामिल करते हैं। इससे तिब्बती जाति की इस परम्परागत संस्कृति को नया रूप मिलता है। थांगखा चित्र बनाने में दूसरी जातियों की वस्तुओं से परहेज नहीं किया जाता। हान जातीय संस्कृति में ड्रैगन के चित्र वाले थांगखा की ओर इशारा करते हुए अध्यापक मा छाईछङ ने कहा:
"देखो, इस थांगखा चित्र में तिब्बती जाति की चित्रण तकनीक और हान जातीय विषयों का मिश्रण दिखता है। यह ड्रैगन की चित्र है, इसे बनाने वाला हान जाति का युवा है। उसे ड्रैगन बहुत पसंद है और अपनी पसंदीदा चीज़ को थांगखा चित्र में शामिल करता है। यह थांगखा चित्र बहुत सुन्दर है।"
मा छाईछङ ने कहा कि मिडिल स्कूल में थांगखा चित्रण सीखने वाले विद्यार्थियों को स्नातक होने के बाद दूसरे छात्रों की तुलना में ज्यादा आसानी से नौकरी मिल सकती है। उनके सामने रोज़गार ढूंढ़ने का दबाव थोड़ा कम है। मिडिल स्कूल से स्नातक होने के बाद वे या तो थांगखा चित्रण के आगे अध्ययन के लिए विश्वविद्यालय जाते हैं, या ललितकला शिक्षक बन जाते हैं, या खुद आर्ट गैलरी और सजावट कंपनी खोलते हैं। इस लिहाज से थ्येनचू जातीय प्राथमिक मिडिल स्कूल में थांगखा कोर्स छात्रों और उनके परिजनों के बीच लोकप्रिय है। लेकिन मिडिल स्कूल के पढ़ाई के दौरान थांगखा कक्षा में विद्यार्थियों के शुरु से अंत तक कायम रहना मुश्किल बात है। क्योंकि इस कक्षा में पढ़ रहे विद्यार्थियों को कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है।
थ्येनचू जातीय प्राथमिक मिडिल स्कूल के विद्यार्थी जोश के साथ थांगखा सीखने में लगे हुए हैं। इसका श्रेय थांगखा चित्र को विरासत में लेते हुए विकसित करने के क्षेत्र में स्कूल के शिक्षकों की तमाम कोशिशों को जाता है। हमारे संवाददाता के साथ साक्षात्कार में अध्यापक मा छाईछङ कभी-कभार कुर्सी से उठकर कमरे में रखे हुए थांगखा चित्र से अवगत कराते थे, वे बैसाखी का प्रयोग कर लंगड़ाते हुए कमरे में घूमते थे। पूछे जाने पर पता चला कि सर्दियों के एक दिन, भारी बर्फ़ के कारण पहाड़ी मार्ग बहुत फिसलन भरा था। लेकिन छात्रों को पढ़ाने के लिए अध्यापक मा छाईछङ को घर से स्कूल जाना था। तभी रास्ते में वे जमीन पर गिर पड़े और उनकी एक टांग टूट गई। उन्होंने कहा कि थांगखा चित्र के प्रति असीम प्यार से उन्हें प्रेरणा मिली। विकलांग होने के बावजूद वे थांगखा चित्र सिखाना जारी रखे हैं, उन्हें आशा है कि तिब्बती संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान दे सकेंगे।