सूचओ शहर का गुणगान
उत्कृष्ट पगोडा, आती-जाती पालदार नावों, नदी किनारे फैले मकानों, गहरी गलियों और कूबड़ की तरह उठे पुलों के चलते सूचओ शहर एक अभूतपूर्व भू-दृश्य का संगम लगता है, जिसके सौन्दर्य के बारे में अनेक प्राचीन कवियों ने गुणगान किया।
थाडं राजवंश के कवि पाए च्वीई(772-846) सन् 825 में सूचओ के गर्वनर थे। कथा के अनुसार वसंत की एक सर्द सुबह वे शहर में घूम रहे थे कि तभी उन्होंने एक गीत बनाया, "पीलक गाते हैं, पीलक गली में, ऊ छ्वे नदी में बर्फ पिघलती है। हरा पानी पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में बहता है और 390 लाल-जंगलेनुमा पुलों के नीचे से गुजरता है। जोड़ों में चकवा-चकवी विलो की लताओं के नीचे सुस्ता रहे हैं। अगर तुम इस इंतजार में हो कि पूर्व की हवा कब आई थी, तो वर परसों आई थी, वह आज आई है।"
दक्षिणी सुडं राजवंश के कवि फ़ान छडंता(1126-1193) ने सूचओ के गांव के वसंत का इन चार लाइनों में वर्णन किया हैः "गेहूं और जौ के खेत पहाड़ों में फैले पड़े हैं, और नदी के नजदीक फैले मैदान जोताई से अछूते हैं।सारा गांव आड़ू और खूबानी के पेड़-फूलों से अंटा हैं और लोग 'छिडंमिडं' त्योहार की खुशी में नाचते-गाते हैं।" फ़ान अपने बुढ़ापे में रणनीक स्थान "शहू" झील के पास ही रहे थे।
मिडं राजवंश के थाडं येन(1470-1524) ने यहां का वर्णन कविता और चित्रकारी दोनों में किया है। उनके जीवन-काल में सूचओ शहर दक्षिण-पूर्व चीन के एक सबसे समृद्ध स्थान था। उनकी कविता में छाडंमन द्वार में रात्रि-जीवन की हलचल का उत्साही वर्णन मिलता है। "सूचओ धरती का स्वर्ग है और छाडंमन एक मोती। तीन हजार वेश्याएं यहां अपने मेहमानों का इंतजार करती हैं और स्वर्ण जल की तरह चारों तरफ बहता है। सौदागर सुबह-सुबह बहुत व्यस्त होते हैं, और वे अपने-अपने क्षेत्रों की बोलियां बोलते हैं।" चित्रकार से पूछो कि इस फलते-फूलते दृश्य की तस्वीर बना दो, तो वह न में सिर हिला कर कहेगा, वह इसकी तुलना नहीं कर सकता।"
सूचओ पर लिखी गई सबसे लोकप्रिय कविता चाडं ची की थी। " जब मैं डूबते चांद को देखता हूं, कोहरे के बीच एक कौआ कांव-कांव करता है, मेपल वृक्षों के साये में एक मछुआ अपनी मशाल लेकर चलता है, और सूचओ नगर के पीछे स्थित शीत पर्वत के मंदिर से सुनता हूं, आधी रात को अपनी नाव में गूंजती घंटियों की आवाज।" हाल के वर्षों में वसंतोत्सव की पूर्ववेला में हजारों जापानी माडं छ्याओ के बाहर छाडंमन द्वार पर स्थित हानशान मंदिर में आधी रात को घंटी की आवाज़ सुनने के लिए आ चुके हैं।