साग्या तिब्बत के इतिहास में साग्य वंश और तिब्बती बौद्ध धर्म के पांच संप्रदायों में से एक साग्या संप्रदाय का उद्गम स्थल है। 13वीं शताब्दी के मध्य में साग्या साग्या वंश की राजधानी थी, जो तत्कालीन तिब्बत के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सैन्य केंद्र था। तिब्बती बौद्ध धर्म में साग्या मठ का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है, तो आज के इस कार्यक्रम में हम आपको ले जाएंगे इस मठ का दौरा करने।
साग्या मठ तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के शिकाजे की साग्या काउंटी में स्थित है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के पांच संप्रदायों में साग्या शाखा का मुख्य मठ है। युआन राजवंश के सम्राट कुबलाइ ख़ान ने साग्या संप्रदाय के पांचवीं पीढ़ी के मठाध्यक्ष फाग्पा को देश के सर्वोच्च धार्मिक गुरू के पद पर नियुक्त किया और उन्हें जेड मुहर भेंट की। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय बौद्ध मामलों का प्रबंधन करने और तिब्बत का प्रशासन करने में केंद्रीय सरकार को सहायता देने का अधिकार भी दिया गया। इसी जमाने में तिब्बत औपचारिक रूप से चीन के नक्शे में शामिल हुआ।
साग्या का अर्थ तिब्बती भाषा में ग्रे-सफेद भूमि है। साग्या मठ उत्तरी व दक्षिणी दो भागों में बंटा है। दक्षिणी भाग एक नदी के दक्षिणी किनारे पर और उत्तरी भाग नदी के उत्तरी तट पर सफेद मिट्टी वाली पहाड़ी की तलहटी में है। उत्तरी भाग 11वीं सदी के शुरू में यानी वर्ष 1073 में निर्मित हुआ था, अब उसमें सिर्फ एक दो मंजिला भवन बचा है, जिसकी स्थापना युआन राजवंश में की गई थी। दक्षिणी भाग अभी भी अच्छी तरह सुरक्षित है, जिसका निर्माण फाग्पा ने करवाया था।
साग्या मठ की स्थापना के बारे में एक कहानी भी प्रचलित है। कहते हैं कि वर्ष 1073 के एक दिन, प्राचीन तिब्बत यानी थूपो राजवंश में खुन नामक कुलीन परिवार के सदस्य खुन कोंगछ्वे चेपो(1034-1102) अपने शिष्यों के साथ नजदीक के पर्वत पर चढ़ने गए। पर्वत की चोटी पर उन्होंने दूर की और हाथी के आकार के वनपोशान पहाड़ को देखा, पहाड़ के बांयी ओर जमीन का रंग सफेद है, तलहटी पर नदी का पानी कलकल बहता है। कई शुभ सूचक चीज़ें नज़र आती हैं। कोंगछ्वे च्येपो ने सोचा कि अगर इसी शुभ स्थल पर किसी मठ का निर्माण किया जाय, तो बौद्ध धर्म और श्रद्धालुओं के लिए बहुत अच्छी बात है। इस तरह उन्होंने एक सफेद घोड़े, मोती की एक स्ट्रिंग और एक स्त्री पोशाक से इस स्थल को खरीदा और यहां एक भवन का निर्माण किया। यह था साग्या मठ का सबसे पहला वास्तु निर्माण। वनपोशान पर्वत का रंग ग्रे-सफेद था, तिब्बती भाषा में"ग्रे-सफेद भूमि"को साग्या कहा जाता है। इस तरह साग्या तो इसी स्थल का और मठ का नाम बन गया। धीरे-धीरे यहां तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक संप्रदाय—साग्या संप्रदाय कायम हुआ।
इतिहास में साग्या मठ दक्षिण और उत्तर दोनों भागों में बंटा हुआ था। उत्तरी भाग के मठ का निर्माण साग्या संप्रदाय के संसथापक खुन कोंगछ्वे च्येपो ने वर्ष 1073 में किया गया। जबकि दक्षिणी भाग के मठ का निर्माण साग्या संप्रदाय के पांचवें गुरू बासिबा(1239-1280) के नेतृत्व में वर्ष 1268 में निर्मित किया गया। आज हमने जो साग्या मठ को देखा है, वह दक्षिण भाग का मठ है। उत्तरी साग्या मठ पहले नष्ट हो गया था।
13वीं सदी में साग्या संप्रदाय को युआन राजवंश की केंद्रीय सरकार से राजनीतिक व आर्थिक तौर पर बड़ा समर्थन मिला, जिससे वह तिब्बती बौद्ध धर्म के मुख्य संप्रदायों में से एक बना। साग्या के प्रमुख धर्माचार्यों और भिक्षुओं को केन्द्र सरकार से बड़ा समर्थन मिला, पदवी और उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया गया, इस तरह साग्या का प्रभाव पूरे तिब्बती क्षेत्र पर फैला था।
प्राचीन समय में तिब्बत की सरकार और चीन की केंद्र सरकार के बीच संबंधों के गवाह के रूप में साग्या मठ में ऐतिहासिक सांस्कृतिक सामग्रियां बहुत प्रचुर हैं। जिनमें बौद्ध सूत्र, बौद्ध मुर्तियां, चीनी मिट्टी के बर्तन और भित्ति चित्र बहुत विख्यात हैं। ये चीज़ें चीनी नक्शे में शामिल होने की साक्षी हैं। यह स्थल तिब्बती संस्कृति का उद्गम स्थल भी माना जाता है।
साग्या मठ के भिक्षुण च्यायांग ने इस मठ की जानकारी देते हुए कहा कि मठ के बृहद सूत्र भवन का क्षेत्रफल 5700 से अधिक वर्गमीटर है और ऊंचाई दस मीटर। इसी भवन में दस हज़ार भिक्षु एक साथ सूत्र पढ़ सकते हैं। बृहद सूत्र भवन में त्रिकाल बुद्ध यानी भूत, भविष्य और वर्तमान काल के बुद्ध, साग्या पंडित और बासीबा की मुर्तियां रखी जाती हैं। भिक्षु च्यायांग ने कहा:
"तिब्बत के इतिहास में साग्या मठ एक सांस्कृतिक केंद्र था। साग्या वंश के काल में साग्या मठ और बौद्ध मुर्तियों का डिज़ाइन दूसरे मठों से अलग था। क्योंकि उस समय साग्या संस्कृति का स्थान पूरे तिब्बत में सबसे ऊंचा था। साग्या मठ का सांस्कृतिक मूल्य तिब्बत के इतिहास में बहुत ऊंचा है। इसके अलावा, कलात्मक क्षेत्र में कहा जाए, तो साग्या मठ की बौद्ध मूर्तियों का इतिहास 7 सौ वर्ष से अधिक साल पुराना है, साग्या वंश में मठ के बौद्ध मूर्ति बनाने की तकनीक बहुत श्रेष्ठ थी।"
साग्या मठ में भारत से लाई गई कुंभगुरु की मू्र्ति सहित चार मूल्यवान मूर्तियां हैं, जो बहुत दिव्य मानी जाती हैं। मठ की मुख्य निधि कुबलाई खान द्वारा फाग्पा को भेंट किया गया एक बहुत बड़ा सफेद शंख है। सिर्फ महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहारों के समय उसे बजाया जा सकता है। मठ में 3 हज़ार थांगखा चित्र और सोंग(960-1279), युआन(1271-1368) व मिंग(1368-1644) राजकालों के 360 से अधिक अमोल थांगखा चित्र भी संरक्षित है, इनके अलावा बेशुमार मूल्यवान भित्ति चित्र और अन्य धार्मिक यंत्र सुरक्षित हैं।
साग्या मठ में बहुत ज्यादा बौद्ध सूत्र होते हैं। सूत्र रखने के लिए एक सूत्र दीवार भी कायम हुई, जिसकी ऊंचाई 10 मीटर और लम्बाई 60 मीटर है। मठ के भिक्षुओं के अनुमान के अनुसार साग्या मठ में कुल 84 हज़ार बौद्ध सूत्र रखे जाते हैं, जिनके अनुसंधान में सौ वर्ष लगेंगे। यह पूरे तिब्बत, यहां तक कि पूरे चीन और पूरी दुनिया में अद्वितीय बात है। साग्या मठ में"बुद्धजालोंमा"नाम का सूत्र सुरक्षित है, जिसका वज़न पांच सौ किलो से अधिक है और विश्व में सबसे बड़ा बौद्ध सूत्र माना जाता है। कहते हैं कि इस सूत्र के एक ही पेज लेने के लिए कम से कम चार भिक्षुओं को एक साथ इसे उठाना जरूरी है। इसकी चर्चा करते हुए साग्या मठ के भिक्षु च्यायांग ने कहा:
"सूत्र दीवार के बारे में एक कथा प्रचलित है। कहते हैं कि अगर विश्व शांत होता, तो साग्या मठ के बौद्ध सूत्र बहुत समुचित होते हैं। अगर वैश्विक स्थिति बिगड़ी, तो मठ के सूत्र भी अव्यवस्थित होते हैं। जब स्थिति शांत हो गई, तो मठ के सूत्र भी पहले की तरह बहाल होते हैं। अब हमें सूत्र की सुरक्षा के लिए चिंता नहीं है। अगर भूकंप आया और बाहरी दीवार गिर गयी, तो साग्या मठ की सूत्र दीवार फिर भी खड़ी रहती है और कभी नहीं गिरती।"
बौद्ध सूत्रों के अलावा साग्या मठ में सुरक्षित भोज-पत्र पर लिखित संस्कृत सूत्र यानी पत्र सूत्र बहुत मूल्यान हैं, जिसे बौद्ध सूत्रों में पांडा माना जाता है। इस प्रकार के पत्र सूत्र प्राचीन भारत से आए थे। भारत में कागज़ तकनीक न होने के समय भारतीय लोग भोज-पत्र पर अक्षर लिखते थे। बौद्ध धर्म के श्रद्धालु इसी भोज पत्र में भी बौद्ध सूत्र और बौद्ध मुर्तियां लिखते थे। धीरे-धीरे पत्र सूत्र का नाम मशहूर हो गया है। पत्र सूत्र का इतिहास आज से 2500 से अधिक साल पुराना है। वह आज प्राचीन तिब्बत की संस्कृति, अक्षर, भाषा और धार्मिक कला का अनुसंधान करने वाली महत्वपूर्ण सामग्री बनी। इसकी जानकारी देते हुए साग्या मठ के भिक्षु च्यायांग ने कहा:
"चीन में सांस्कृतिक क्रांतिकारी यानी वर्ष 1966 से 1976 तक के पूर्व हमारे साग्या मठ में पत्र सूत्र का एक विशेष पुस्तकालय था। जिसमें 500 से अधिक पत्र सूत्र सुरक्षित थे। लेकिन बाद में कुछ पत्र सूत्र नष्ट हो गए और दूसरे संग्रहालय द्वारा उधार ले लिए गए। इस तरह आज हमारे मठ में मात्र 21 पत्र सूत्र सुरक्षित हैं। तिब्बती पुस्कतालय, तिब्बत संग्रहालय, नार्बुलिंका महल, पोताला महल जैसे स्थलों में प्रदर्शित पत्र सूत्र पहले हमारे मठ में सुरक्षित पत्र सूत्र थे, जिन पर साग्या मठ का मुद्रांक होता है।"
मठ के मूल्यवान सांस्कृतिक अवशेषों की और अच्छी तरह सुरक्षा करने के लिए साग्या मठ ने सूत्र पत्र जैसे मूल्यान बौद्ध सूत्रों की स्कैनिंग, एडिटिंग और संग्रहण किया। भिक्षु च्यायांग इस परियोजना की जिम्मेदार निभाने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा:
"वर्तमान में हम एक नया इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकालय स्थापित कर रहे हैं। इसके लिए एक विशेष एडिट विभाग की स्थापना की गई है। हमने साग्या मठ में सुरक्षित प्राचीन बौद्ध सूत्रों की पुनः स्कैनिंग कर संपादन किया। इससे हमारे मठ के भिक्षुओं और दूसरे विशेषज्ञों के लिए ज्यादा सुविधापूर्ण रुप से इन बौद्ध सूत्रों का और अच्छी तरह अनुसंधान कर सकेंगे। इलेक्ट्रॉनिक पुस्तक पढ़ने से प्राचीन मूल्यवान बौद्ध सूत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और न ही वे नष्ट होते हैं।"
विशेषज्ञों कके अनुसार वर्तमान विश्व में सुरक्षित पत्र सूत्रों की संख्या एक हज़ार से कम है, जिनका 60 से 80 प्रतिशत भाग तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में सुरक्षित है। वर्तमान तिब्बत में संस्कृत, तिब्बती और पाली जैसी भाषाओं वाले पत्र सूत्र सुरक्षित हैं, जिनमें अधिक सूत्र अत्यंत मूल्यवान हैं।
हर साल साग्या मठ में विभिन्न प्रकार की धार्मिक गतिविधियाँ भी आयोजित की जाती हैं। जिसमें शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन वज्र नृत्य सभा सबसे अद्भुत और बड़े पैमाने वाली है। वज्र नृत्य सभा के आयोजन के समय हजारों भक्त और आम लोग दूर नजदीक से तीर्थ यात्रा पर यहां आते हैं, और शुभमंगल की प्रार्थना करते हैं।
बेशुमार खजाने सुरक्षित रखने वाला साग्या मठ बहुत रहस्यमय है। अगर आप यहां का दौरा करने आएं, तो हजार वर्ष के इतिहास वाले इस प्राचीन मठ में आपको जरुर तिब्बती संस्कृति के दर्शन होंगे।