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शु जियाजिए पिछले पाँच सालों में अब तक न जाने कितनी ब्लाइंड डेट्स पर जा चुकी हैं और न जाने कितने मैच-मैकिंग इवेंट्स में गई हैं अपने सपनों के राजकुमार को खोजने के लिए। 31 साल की प्यारी-सी, गुड़िया-सी दिखने वाली, शांघाई में काम करने वाली शु पर अपने परिवार और दोस्तों का भारी दबाव है, शादी करने के लिए। लेकिन उनके अनुसार शहरी, पढ़ी-लिखी और अच्छा कमाने वाली चीनी महिलाओं के लिए सही आदमी खोजना लोहे के चने चबाने जैसा मुश्किल काम है क्योंकि परंपरागत स्थिति के अनुसार पति की सामाजिक स्थिति पत्नी से हमेशा ऊपर ही रहनी चाहिए।
शु जो औसत वेतन से दुगुना कमाती ने कहा, मेरे माता-पिता जितने भी लड़कों को जानते थे, उन्होंने उन सबसे मेरी मुलाकात करवाई है। आधे से ज्यादा लड़के जिनसे मैं मिली हूँ वे बहुत शांत है और शायद कभी घर से बाहर भी नहीं निकलते। और जो ज्यादा स्मार्ट हैं उन्हें डेट पर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। जहाँ चीन में 13 अगस्त को छीशी त्योहार मनाया गया, मेड इन चाइना वाला वैलन्टाइनस डे। वहीं शु जैसी लाखों महिलाओं को दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश में जहाँ व्यापक आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के चलते आज भी विवाह को लेकर लंबे समय से चलती आ रही सोच वहीं रुक गई है।
चीन में प्रयोग होता शब्द शंगनू का अर्थ हैं अकेली महिलाएँ। ये उन पेशेवर महिलाओं के लिए कहा जाता है जिनकी 28-29 साल तक शादी नहीं हुई। चीनी लोगों का मानना है कि पुरुषों को हर मायने में चाहे उम्र में,शिक्षा में या वेतन महिलाओं से आगे होना चाहिए। एक लोकप्रिय मैच-मैकिंग टीवी शो होस्ट करने वाली नी लिन ने यह बताया।
और इससे बनता है ट्रेंड जहाँ ए ग्रेड के पुरुष बी ग्रेड की महिलाओं के साथ शादी करेंगे, बी ग्रेड के पुरुष सी ग्रेड की महिलाओं के साथ शादी करेंगे और सी ग्रेड के पुरुष डी ग्रेड की महिलाओं के साथ शादी करेंगे। केवल ए ग्रेड की महिलाओं और डी ग्रेड के पुरुषों को साथी नहीं मिलते।
डेटिंग वेबसाइट जियायुआन.काम के अनुसार बीजिंग में लगभग एक तिहाई से अधिक महिलाएँ जो 25-30 साल से ज्यादा की उम्र की है वे अपने लिए जीवन साथी ढूँढ़ रही हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राजधानी में लगभग पाँच लाख महिलाएँ अकेली महिलाएँ यानी शंगनू हैं।
चीन में लगभग 1.4 अरब की आबादी में कई पुरुष हैं लेकिन एक बार फिर यहाँ सामाजिक स्थिति पेशेवर महिलाओं के खिलाफ जैसे षड्यंत्र रचती है। 2011 में नवीनतम जनगणना के अनुसार 1970 में पैदा हुए एकल पुरुषों की संख्या उसी उम्र की महिलाओं से दुगुनी है। लेकिन इसके विपरीत अकेली महिलाएँ की तुलना में ये शंगनान या अकेले पुरुष अक्सर छोटे शहरों में रहते हैं और ज्यादा पैसे नहीं कमाते हैं।
शंघाई स्थानीय सरकार शु जैसी महिलाओं की मदद करने के लिए नियमित रूप से मैच-मैकिंग इवेंट्स का आयोजन करती रहती हैं। अभी मई के महीने में ऐसे ही एक इवेंट् में 20 हज़ार महिलाएँ और पुरुषों को आकर्षित किया था। 32 वर्षीय चीनी भाषा सीखाने वाली शिक्षिका लूसी वांग इस में शामिल हुई और उन्होंने बताया कि यहाँ मुझे केवल प्लेबॉय या मम्मा के बेटे टाइप लड़के ही मिले। कभी-कभी मुझे लगता है कि कहीं मेरे साथ कुछ गड़बड़ तो नहीं, 20 हज़ार लड़के और उनमें से मुझे ऐसा कोई नहीं मिला जो मुझे पसंद हो। बताइए...............है न मुश्किल। चलिए, ये तो बात हुई कि कोई अपना हो जिसको हम अपना कह सकते यारों। पास नहीं तो दूर ही होता लेकिन कोई मेरा अपना।
अब जिन्हें साथी मिला जाहिर है वे उसे अपना जीवन साथी बनाना चाहेंगे। लेकिन ये राह भी इतनी आसान कहाँ। ये दिल माँगे मॉर, पैसे लगते हैं,भई। आप सबने तो चीन में दहेज लिए बगैर किए गए विवाह को 'निर्वस्त्र विवाह' यानी न्यूड मैरीज के बारे में तो सुना ही होगा। इसका मतलब यह हुआ कि बिना घर और कार लिए विवाह करना। और ये सब लड़कों को करना पड़ता है यहाँ। यहाँ की एक मीडिया कंपनी 'टचमीडिया' द्वारा छीशी पर यानी वैलेंटाइटन दिवस 13 अगस्त को पाँच शहरों में 15.9 लाख टैक्सी यात्रियों पर यह सर्वे किया गया। सर्वे से मिले नतीजों के अनुसार बिना घर और कार के विवाह के पक्ष में 45 प्रतिशत लोगों ने सहमति व्यक्त की। लेकिन चीन में 30 प्रतिशत से भी कम लोग दहेज के बिना विवाह करते हैं। सर्वे में शामिल 70 प्रतिशत लोगों ने कहा कि विवाह के बाद वे अपने वेतन को अपने साथी के साथ बांटने के लिए राजी हैं।
चलिए, ये राज़ी हो या न हो लेकिन हम आपको जानकारी देने के लिए, चीन के बारे में आपको हमेशा कुछ नया बताने के लिए ऑलवेज़ राज़ी रहते हैं। चलिए, इसी बात पर डांस हो जाए।
दुनिया की आबादी आहिस्ता-आहिस्ता बूढ़ी हो रही है। माना जा रहा है कि 2030 तक हर आठवें व्यक्ति की उम्र 65 साल या इससे भी ज्यादा होगी। यही नहीं उनके इससे भी ज्यादा दिन तक जिंदा रहने की उम्मीदें है।
लंबी उम्र के कई खतरे होते हैं। उन अतिरिक्त सालों में पुरानी बीमारियों के कारण लोग बीमारी और कमजोरी से जूझते दिखेंगे। यही नहीं, स्वस्थ रहने का खर्च आसमान छुएगा।
अल्जाइमर जैसी बुढापे की बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, यानी अल्जाइमर के रोगियों की संख्या सदी के मध्य तक दोगुनी हो जाएगी। जाहिर है ऐसे मरीजों की देखभाल का खर्चा भी बढ़ेगा। लेकिन, इस विषय में एक बुजुर्ग का कहना है कि "जब से मैंने डांस करना शुरु किया है, मेरी तन्मयता और मुस्तैदी बढ़ गई है।"
पूरी दुनिया के वैज्ञानिक ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उम्र के बढ़ने के साथ ही साथ वे कैसे स्वस्थ भी रहें। इसके नए और किफायती तरीके तलाशने की कोशिश की जा रही है।
इस बात की भी संभावनाएं तलाशने की कोशिश हो रही है कि क्या कला के जरिए अधिक उम्र में होने वाली बीमारियों का इलाज संभव है? मतलब ये कि क्या रचनात्मक गतिविधियों के जरिए व्यक्ति ज्यादा दिनों तक जवान बना रह सकता है?
डांस, ड्राइंग, पेंटिंग, सामाजिक सक्रियता व्यक्ति की उम्र लंबी कर देती है। 2030 में ऐसा पहली बार होगा कि बूढ़ों की गिनती बच्चों से ज्यादा हो जाएगी और अब नीति निर्माताओं के लिए यह चिंता का प्रमुख विषय होने वाला है कि बुढ़ापे में भी लोग शारीरिक और मानसिक रूप से कैसे भले-चंगे रह सकते हैं?
ये माना जा रहा है कि इस संदर्भ में कला एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
आजकल कई देशों में उम्रदराज लोगों के लिए केन्द्र खुलते जा रहे हैं। इन सेंटरस का मकसद बूढ़ों को सामाजिक रूप से सक्रिय रखना है। वे बुजुर्ग जो अपने जीवन में अलगाव व अवसाद झेल रहे हैं, उनमें यहां आने के बाद खुद को काफी जोशो-खरोश और उत्साह से भरा पा रहे हैं।
एक शोध के अनुसार कला के विभिन्न रूपों जैसे डांस, पेंटिंग, ड्राइंग आदि में सक्रिय होने से शरीर और मन पर काफी गहरा असर होता है। हम शारीरिक और मानसिक रूप से निरोग महसूस करते हैं। मगर ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि व्यक्ति ज्यादा दिन जीने के साथ-साथ तंदुरुस्त भी रहे।
अधिक उम्र से जुडे़ रोग न केवल कष्टकारी होते हैं बल्कि उनसे जूझना जेब पर भी भारी पड़ता है। सक्रियता रोगों के लक्षणों को टालने में कामयाब होती है।
और अब अगर मैं आपको यहाँ चीन के बारे में बताऊँ तो, एक विशेष खूबी जो मैंने यहाँ के लोगों में देखी है, वह है बीजिंग के लोगों का व्यायाम की ओर रुख। मैंने पहले कभी लोगों को फिट रहने के लिए इतना खुश नहीं देखा। हालांकि, बीजिंग में मैंने खासतौर पर बुजुर्गों का व्यायाम की ओर एक अलग दृष्टिकोण देखा है। वे इसे एक सामाजिक गतिविधि मानते हैं तथा सुन्दर रुप से करते हैं। मेरे घर के पास एक खाली मैदान है जहाँ सुबह-शाम दोनों समय कई चीनी बुजुर्ग मिलकर व्यायाम करते रहते हैं या वहाँ लगे व्यायाम के उपकरणों पर मज़े से बातें करते हुए व्यायाम करते रहते हैं। यह देखकर मैं सोचने पर मज़बूर हो जाती हूँ कि कितना अंतर है हमारे दृष्टिकोणों में व्यायाम को लेकर। हम व्यायाम को अन्य कार्यों की तरह एक काम ही मानते हैं। यहाँ केवल दृढ़ संकल्प, एकाग्रता और ड्राइव की आवश्यकता होती है और कुछ नहीं। इसके विपरीत, चीनी लोग व्यायाम को पूरी तरह से अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। उनके लिए यह एक सामाजिक गतिविधि है। वे किसी पार्क में व्यायाम करने को बिल्कुल उसी प्रकार एक सामाजिक गतिविधि मानते हैं जैसे हम शादी-ब्याह या किसी रिश्तेदार के घर मिलने जाते हैं। हालांकि, वे हमारी तरह चाय का कप और समोसे लेकर गप्पे मारने की बजाय शारीरिक रूप से व्यायाम करते हैं। जो ज्यादा बेहतर है।
चीनी लोगों को व्यायाम के लिए किसी प्रकार की झिझक नहीं होती। अभी कुछ दिन पहले ही मैं एक पार्क के बाहर से गुज़र रही थी कि मैंने एक बुजुर्ग सज्जन को अपने स्टीरियो पर पारंपरिक संगीत लगाकर खुशी और आनन्द के साथ नृत्य करते हुए देखा। वे बड़े मजे से संगीत की धुन पर अपनी बाहों को हवा में झूलाते हुए नाच रहे थे, इधर-उधर डोल रहे थे। मैं यह देखकर मोहित हो गई थी। ऐसे दृश्य यहाँ चीन में गरमियों के दिनों में आम देखने को मिलते हैं। इतनी लंबी सर्दियों के बाद लोग इंतज़ार करते हैं कि घर से बाहर निकल वे ऑउटडोर गतिविधियों में भाग लें और जितना हो सके उतना खुली हवा में रहें। यहाँ पार्कों में या खुले मैदानों में कई वृद्ध जोड़े चीनी पारंपरिक संगीत या फिर अंग्रेज़ी धुन पर हाथों में हाथ डालकर नृत्य करते हुए दिखते हैं। उन्हें खुशी-खुशी नाचते हुए देख वहाँ खड़े दर्शकों का मन भी नाचने को करता है। मुझे लगता है कि अगर हम व्यायाम को गंभीरता से न लेकर उसे मजे लेकर करें, उसे इंज़ोए करते हुए करें तो कितना अच्छा हो। मैं आशा करती हूँ कि भारत में भी लोग इस प्रकार मजे़ करते हुए किसी पार्क में व्यायाम करेंगे और यहाँ चीन में लोग इसी प्रकार सालों-साल जारी रखेंगे।
तभी तो चीन में हर साल 8 अगस्त को राष्ट्रीय स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। खेलों के द्वारा लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से और 2008 ओलंपिक खेलों के उद्धाटन समारोह की सालगिरह मनाने के लिए भी। इस मौके पर पूरे देश में कई खेल गतिविधियाँ होती हैं जिनमें हर उम्र के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने, उसके प्रति सजग रहने की अपनी निष्ठा, समर्पण को दर्शाते हैं। तो देर किस बात की बस डांस कीजिए, बुढ़ापा दूर भगाइए और मस्त रहिए।
इसी के साथ न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का समय यहीं समाप्त होता है और मैं हेमा कृपलानी लेती हूँ विदा अगले हफ्ते तक। नमस्कार।