आंकड़ों से पता चला है कि विश्व में क्वोंगतोंग मूल के चीनियों की संख्या तीन करोड़ है, जो दुनिया के 160 से अधिक देशों और क्षेत्रों में बसते हैं। इस प्रांत के प्रवासी चीनियों की संख्या देश भर के प्रवासी चीनियों की कुल संख्या का दो तिहाई है। अब क्वांगतोंग प्रांत में स्वदेश लौटे प्रवासी चीनियों की संख्या 1 लाख 3 हज़ार है और प्रवासी चीनियों के संबंधियों की संख्या 2 करोड़ से अधिक है। ये लोग मुख्य तौर पर चूच्यांग नदी के डेल्टा क्षेत्र, छाओशान मैदान और मेईचो क्षेत्र में बसे हुए हैं। खाईफिंग शहर से आए श्री ल्यांग के माता-पिता और छोटी बहन कनाडा में रहते हैं। पहले यहां के निवासियों के विदेश चले जाने की चर्चा में श्री ल्यांग ने कहा:
"सौ वर्ष पूर्व बहुत से लोग यहां से रवाना होकर विदेश चले गये थे। बाद में उनमें से कई लोगों के संबंधी भी बाहर चले गये। वर्तमान में अधिक लोग पूंजी निवेश के लिए विदेश भी चले गए हैं। पहले हमारे यहां के कई लोग खनन विकास और रेलवे निर्माण के लिए अमेरिकी महाद्वीप गए थे। क्योंकि वहां बड़ी मात्रा में श्रमिकों की आवश्यकता थी।"
पुराने समय में क्वोंगतोंग के"च्यांगमन पांच क्षेत्र"से आए प्रवासी चीनियों ने विदेश में स्थानीय आर्थिक विकास में भारी योगदान किया था। लेकिन विदेश में रहने के दौरान भारी सांस्कृतिक मतभेद और नस्लीय भेदभाव के कारण उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। लम्बे समय से कड़ी मेहनत और कोशिशों के बाद प्रवासी चीनी लोगों ने विदेशों में दुकानें खोलकर एकत्र हुए और धीरे-धीरे थांगरन च्ये सड़क यानी प्रवासी चीनियों की सड़क अस्तित्व में आया। इसके साथ ही वे अपनी कमाई को स्वदेश में अपने संबंधियों को भेजते थे, जिससे जन्मस्थान के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला। वर्ष 1911 में चीन में शिंगहाई क्रांतिकारी हुई, जो सामंती छिंग राजवंश का तख्ता उलट कर लोकतांत्रिक समाज की स्थापना की गई। इसी दौरान विदेशों में रह रहे प्रवासी चीनियों ने बड़ी मात्रा में आर्थिक सहायता दी। 20वीं शताब्दी में 40 के दशक में हुए जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध के दौरान विदेशों में रह रहे प्रवासी चीनियों ने चंदे के रूप में पैसे, सामग्री और राष्ट्रीय ऋण देते थे। वर्ष 1949 में नए चीन की स्थापना के बाद से लेकर अब तक प्रवासी चीनियों ने चीन के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए भी भारी योगदान किया। चाहे युग में परिवर्तन क्यों न आ जाए, प्रवासी चीनी अपनी मातृभूमि और जन्मस्थान से अपार प्यार करते रहे हैं।
चाओ थाई ब्रिटेन में रह रहे प्रवासी चीनी है, जो कल्याण जगत में सक्रिय भुमिका निभाते हैं। उन्होंने ब्रिटेन में अपने परिवार द्वारा सुरक्षित प्राचीन चीनी वस्तुओं के संग्रहण, इक्ट्ठे और सुरक्षा के लिए दस से अधिक सालों से संलग्न रहे। बाद में उन्होंने मूर्तियां, जेड और प्राचीनी चित्र समेत मूल्यवान प्राचीन कलात्मक और सांस्कृतिक वस्तुओं को उपहार के रूप में स्वदेश भेजें, जो आज तक क्वांगतोंग प्रांत के फडानयू शहर स्थित पाओमो उद्यान में सुरक्षित हैं।
क्वांगतोंग प्रांत के प्रवासी चीनियों में चाओ थाई जैसे लोग बहुत ज्यादा हैं। हालांकि वे विदेश में रहते हैं, पर फिर भी उनका मन हमेशा अपनी मातृभूमि के नज़दीक है और जन्मस्थान के निर्माण और सामाजिक विकास के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। वर्ष 2011 के अंत तक क्वांगतोंग प्रांत में वास्तविक तौर पर 2 खरब 70 अरब अमेरिकी डॉलर की विदेशी पूंजी का प्रयोग किया गया, जिसमें 70 प्रतिशत भाग प्रवासी चीनियों का है। इसके साथ ही सारे प्रांत में प्रवासी चीनियों की पूंजी वाले 55 हज़ार 5 सौ उपक्रम हैं, जो समूचे प्रांत में विदेशी पूंजी वाले उद्योगों में से 60 प्रतिशत से अधिक है।
वर्ष 2010 के अंत में मशहूर चीनी फिल्म निर्देशक च्यांग वन द्वारा शूटिंग की गई फिल्म"लेट द बुल्लेत्स फ़्लाई"(Let The Bullets Fly) विश्व भर के चीनियों में बहुत लोकप्रिय थी, जिसमें 20वीं शताब्दी के शुरूआत में तत्कालीन दक्षिण चीन में डाकुओं और धोखेबाज़ों के बीच की कहानी को फिल्माया गया। इस फिल्म में फिल्माया गया तत्कालीन दक्षिण चीन का एक शक्तिशाली ज़मीनदार ह्वांग सीलांग के निवास स्थल पर छह मंजिला वॉचटावर यानी पहरे की मिनार का दर्शकों पर गहरी छाप पड़ी। यह वॉचटॉवर क्वांगतोंग प्रांत में सबसे मशहूर वास्तु निर्माणों में से एक—खाईफिंग वॉचटावर ही है।
खाईफिंग वॉचटॉवर क्वांगतोंग प्रांत में प्रवासी चीनियों द्वारा निर्मित प्रसिद्ध वास्तु निर्माणों में से एक है, जो अमीरों द्वारा मुख्य तौर पर अपने परिवार की रक्षा के लिए निर्मित किया गया। छिंग राजवंश के अंत में बेशुमार स्थानीय युवा लोग जीवन यापन के लिए विदेश गए थे। वे अपने मेहनत की कमाई आय को जन्मस्थान में रह रहें परिवारों को भेजते थे। इस तरह इन प्रवासी चीनियों के परिवारों का जीवन दूसरे से कहीं समृद्ध थे और वे डाकुओं का निशाना बन गये। अपनी खुद की रक्षा के लिए उन प्रवासी चीनियों के परिवारों ने कुछ मंजिला वॉचटॉवर का निर्माण किया। क्वांगतोंग प्रांत के खाईफिंग शहर के निवासी श्री छङ ने इसकी जानकारी देते हुए कहा:
"उस समय डाकू बहुत सक्रिय थे। हर दिन अंधेरा होने के बाद हम वॉचटॉवर में छिप जाते थे।"
स्थानीय निवासियों को डाकुओं के प्रति डर था और अपनी रक्षा के लिए क्रमशः वॉचटॉवर का निर्माण किया गया। यह टॉवर डाकुओं से बचने के साथ-साथ बाढ़ से भी बचा जा सकता था। खाईफिंग शहर नीचले भूभाग पर स्थित है, जो हर वर्ष तूफ़ान और भारी बारिश होने से अकसर बाढ़ आ जाती थी। बहु-मंजिला वॉचटॉवर बहुत सुदृढ़ होने के साथ-साथ उसकी जल निकासी की क्षमता भी अच्छी है। बाढ़ आने के वक्त पहले मंजिल तक पानी भर जाने के बावजूद भी लोग दूसरी मंजिल तक भी जा सकते थे।
खाईफिंग शहर में चीली गांव में एक बहुत विशेष वॉचटॉवर खड़ा हुआ है, जिसके अंदर फ़र्निचर और डिज़ाइन पश्चिमी शैली के हैं। इस इमारत का मालिक जर्मनी में व्यापार करता हैं। टॉवर बनाने की अधिकतर सामग्रियां ब्रिटेन और जर्मन से आयातित हुई थी। इस टॉवर के अलावा गांव में दूसरे वॉचटॉवर की अलग-अलग विशेषताएं हैं, जैसे शुद्ध चीनी, शुद्ध पश्चिमी और चीनी एवं पश्चिमी मिश्रित शैली इत्यादि। इन वॉचटॉवरों की समानताएं भी हैं कि लोहे की खिड़की बहुत छोटी है और इमारत की छत पर गोलियां चलाने के छेद भी मौजूद हैं। इस प्रकार के वॉचटॉवर सुरक्षा के लिए बहुत उपयोगी है। आज ये टॉवर गांव के मैदान में खड़े हुए हैं और वे आसपास के घासों, कमल की झीलों के साथ मिलकर खाईफिंग क्षेत्र का विशेष सुन्दर दृश्य बन गए हैं।