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चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान की व्यापक संभावना
2013-05-24 14:50:18

प्राचीन सभ्यता वाले देशों की चर्चा में चीन और भारत अवश्य ही उल्लेखनीय होंगे। इतिहास से अब तक चीन और भारत के बीच परंपरागत मैत्री बनी रही है। चीन के थांग राजवंश में प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग के भारत में जाकर अध्ययन करने की कहानी चीनी लोगों में लोकप्रिय है। आधुनिक समय में मशहूर भारतीय कवि रबीन्द्रनाथ ठाकुर की चीन यात्रा से चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा। अब चीन और भारत के बीच शांति और समृद्धि के उन्मुख रणनीतिक साझेदारी लगातार तेजी से बढ़ रही है। दोनों देशों के बीच हजारों सालों तक निर्बाध आवाजाही और मैत्री दुनिया की सभ्यता के इतिहास में दुर्लभ है।

भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक अनुसंधान विशेषज्ञ, चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के शोधकर्ता वांग शू यिंग के विचार में भारत की संस्कृति रहस्यपूर्ण है, जबकि चीन की शानदार। अलग विशेषताओं के चलते दोनों संस्कृतियां एक दूसरे को आकर्षित करती हैं और बराबर आदान-प्रदान कायम रहता है। भौगोलिक दृष्टि से दोनों देश पड़ोसी हैं, जिससे आवाजाही के लिए अनुकूल स्थिति तैयार हुई है। इसलिए चीन और भारत की संस्कृतियां मिलती जुलती हैं। वांग शू यिंग ने कहा

"चीन और भारत दोनों दुनिया में प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं। दोनों का इतिहास प्राचीन और शानदार संस्कृतियां हैं। दो हजार वर्षों से भी अधिक समय में दोनों देश आदान-प्रदान करने के साथ साथ एक दूसरे से सीखते रहे हैं, जिसने विश्व संस्कृति के संरक्षण में अहम योगदान दिया है। दोनों देशों की संस्कृतियां एक दूसरे को प्रभावित करती हैं और एक दूसरे के विकास को बढ़ावा देती हैं। यह इतिहास है और वास्तविकता भी। अगर हमारे दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान नहीं हुआ, तो दोनों की संस्कृति इतनी शानदार नहीं हो सकती। दोनों देशों के बीच इतनी घनिष्ठ आवाजाही दुनिया में दुर्लभ है।"

चीन और भारत के आदान-प्रदान इतिहास में सांस्कृतिक आवाजाही का आधार है। भारत के बौद्ध धर्म, संगीत, नृत्य, खगोल विज्ञान, साहित्य और भवन निर्माण आदि चीन में आकर्षित हुए, जिससे चीन की संस्कृति पर बड़ा प्रभाव पड़ा। जबकि चीन के पेपर मेकिंग, रेशम, चीनी मिट्टी बरतन, चाय और संगीत भी भारत तक पहुंचाए गए, जिसके चलते भारतीय संस्कृति और समृद्ध बन गई। प्रारंभिक समय में चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की चर्चा में वांग शू यिंग ने बौद्ध धर्म पर उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म भारत में पैदा हुआ और बाद में रेशम मार्ग के जरिए चीन में आकर्षित हुआ। बौद्ध धर्म ने चीनी संस्कृति के विकास पर सक्रिय भूमिका निभाई। बौद्ध धर्म रेशम मार्ग की तरह चीन-भारत सांस्कृतिक आवाजाही का सूत्र है। वांग शू यिंग कहते हैं:

"बौद्ध धर्म के साथ साथ अन्य चीजें भी चीन में पहुंची। उदाहरण के लिए फिलॉसफी, विज्ञान, साहित्य, कला, चिकित्सा और मैथमैटिक्स आदि। भारत का साहित्य बहुत विकसित है और कहानी फिलासॉफिकल है। भारत के मिथक और लोक कथाएं भारतीय लोगों के अलावा, चीनी लोगों, यहां तक कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं।"

भारतीय साहित्य की चर्चा में रबीन्द्रनाथ ठाकुर एकदम लोगों के दिमाग में आए। ठाकुर भारत के मशहूर कवि, लेखक और कलाकार थे। वे साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार के विजेता थे और चीन के घनिष्ठ दोस्त भी। वर्ष 1924 में ठाकुर ने चीन की यात्रा की थी, जिससे चीन-भारत संबंधों को एक नए स्तर पर पहुंचाया गया। चीन और भारत के विद्वानों और राजनेताओं के समर्थन में मई 1934 में भारत-चीन सोसाइटी भारत में स्थापित हुई। बाद में मई 1935 में चीन-भारत सोसाइटी की स्थापना चीन के नान चिंग में हुई। इसकी सबसे अहम उपलब्धि यह है कि भारत के अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में चीनी कॉलेज स्थापित किया गया, जो चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मंच बन गया।

वांग शू चिंग ने कहा कि ठाकुर हमेशा चीन की संस्कृति पर व्यापक रुचि रखते थे। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही बढ़ाना उनका कई सालों का सपना था। इसे साकार करने के लिए उन्होंने नोबेल पुरस्कार के इनाम से उत्तर-पश्चिम कोलकाता के शांतिनिकेतन में भारतीय अन्ततराष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किया और इसमें चीनी कॉलेज की स्थापना भी की। भारत में चीनी संस्कृति पर अध्ययन करने वालों में चीनी कॉलेज का नाम बहुत प्रसिद्ध है। वांग शू यिंग ने कहाः

"चीनी संस्कृति का प्रचार करने के लिए ठाकुर ने भारत में चीनी कॉलेज की स्थापना की, जिसने चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सक्रिय भूमिका निभाई। ठाकुर ने वहां पर कक्षा देने और संगोष्ठी करने के लिए अकसर चीनी विद्वानों का आमंत्रिण किया। कहा जा सकता है कि ठाकुर चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पुल थे। ठाकुर ने कहा था कि मुझे विश्वास है कि चीन का विशाल भविष्य होगा, जो एशिया का भविष्य भी। उन्होंने यह भी कहा था कि चीन और भारत के बीच मैत्री और एकता एशिया के विकास का आधार है।"

वास्तव में चीन और भारत के सांस्कृतिक आवाजाही इतिहास में ठाकुर जैसे मैत्रीपूर्ण व्यक्ति बहुत व्यापक हैं, जिससे दोनों देशों के बीच गैरसरकारी आवाजाही बराबर बनी रही। इसकी प्रेरणा से दोनों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी समृद्ध हुआ। लेकिन वांग शू यिंग के विचार में चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान और मजबूत किया जाना चाहिए। सांस्कृतिक आवाजाही के जरिए दोनों देशों के लोग एक दूसरे को और अच्छी तरह समझ सकेंगे और अपने बीच मैत्री बढ़ाएंगे। वांग शू यिंग ने कहाः

"मुझे लगता है कि अब सवाल यह है कि हालांकि दोनों देश पड़ोसी हैं, लेकिन उनके बीच समझदारी पर्याप्त नहीं है। इसी कारण से आदान-प्रदान के समय अप्रिय बातें होती रहती हैं। मुझे लगता है कि यह एक सवाल है। इसलिए मैंने एक किताब लिखी, जिसका नाम है धर्म और भारतीय समाज। मैंने सोचा नहीं था कि किताब प्रकाशित होने के बाद न सिर्फ चीनी लोग, बल्कि भारतीय लोग भी इसे पसंद करेंगे। एक भारतीय दोस्त ने मुझसे कहा कि भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार भारत को करना चाहिए, लेकिन आपने एक चीनी होने के नाते यह काम किया। मैंने कहा कि यह मेरा भी काम है। इसलिए मुझे लगता है कि हमारे दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान की व्यापक संभावना है, जो दोनों के विकास के लिए लाभदायक होगा।"

दुनिया में सबसे महान सभ्यता वाले देश होने के नाते चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की बड़ी गुंजाइश है। वांग शू यिंग को विश्वास है कि आवाजाही मजबूत होने से द्विपक्षीय मैत्री जरूर बढ़ेगी।

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