Web  hindi.cri.cn
13-04-09
2013-04-29 18:33:47

करती हर मंगलवार का बेसब्री से इंतज़ार, है ये वह दिन जब होती आपकी हमारी मुलाकात। पूरा सप्ताह बितता इस उम्मीद में कि हर सोमवार के बाद आता मंगलवार। बुधवार, गुरुवार,शुक्रवार बीतता मुलाकात की मीठी यादों में। शनिवार, रविवार बीतता अगली मुलाकात की तैयारी में। आया सोमवार तो शुरु हो जाती उल्टी गिनती और ये लो आ गया प्यारा मंगलवार। वाह-वाह क्या खूब, बहुत खूब। आपके अपने न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम के साथ मैं आपकी होस्ट और दोस्त हेमा कृपलानी करती हूँ आप सब का हार्दिक स्वागत। दोस्तों, न्यूशिंग स्पेशल पर हम बात करते हैं महिलाओं के बारे में,तो हमारे पुरुष श्रोता दोस्तों को हमसे कभी-कभी शिकायत हो जाती है कि हम सिर्फ महिलाओं को सपोर्ट करते हैं, उनकी तारीफ करते हैं, कभी हमारी भी तारीफ कीजिए, कभी हमारे लिए कुछ बताइए । तो लिजिए, हम आपकी यह शिकायत भी दूर कर देते हैं। क्योंकि, हम नहीं चाहते कि कोई भी हमसे रहे खफा-खफा। तो आज के कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं इस खबर से कि पुरुषों से छोटा होता है महिलाओं का दिमाग, लेकिन फिर भी।

आमतौर पुरुषों के बीच महिलाओं के कम दिमाग को लेकर कई मजाक चलते हैं। इस मजाक से महिलाएं भले ही खीज भी जाती हों। लेकिन वैज्ञानिक तौर पर यह सच है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का दिमाग छोटा होता है। हालांकि, महिलाएं कम दिमाग का इस्तेमाल करके भी पुरुषों के बराबर और कभी-कभी उनसे बेहतर परिणाम प्राप्त कर लेती हैं। चलिए, बात करते हैं कि क्यों छोटा है औरतों का दिमाग...........

चलिए, आगे बढ़ते हैं अपने कार्यक्रम में। रुठने-मनाने का सिलसिला तो चलता रहेगा क्योंकि आप हमें अपना और हम आपको अपना मानते हैं। तो अपनों के बीच कभी कुछ खट्ठी कुछ मीठी, रुठने-मनाने वाली बातें तो चलती रहती हैं। हम भी चलते हैं आगे अपने कार्यक्रम में। और बात करते हैं एक ऐसे महाशय कि जो 25 साल तक फेफड़े में प्लास्टिक की सीटी ढोते रहे

चीन के गुआन्सी जुआन्स्की स्वायत्त-प्रदेश का एक निवासी 25 वर्ष तक अपने फ़ेफ़ड़े में प्लास्टिक के एक नन्हे खिलौने को सम्भाले रहा। वह पिछले कई सालों से खाँसी और दर्द से परेशान था। बार-बार अपना इलाज कराने के लिए अस्पतालों में भरती हुआ, लेकिन उसकी बीमारी किसी भी डॉक्टर की समझ में नहीं आई।

सभी चिकित्सक यह समझ रहे थे कि उसके फ़ेफ़ड़ों में ख़राबी है। लेकिन एक्सरे करने पर कुछ भी पता नहीं लगता था। सब तरफ़ से निराश होने के बावजूद इस तीस वर्षीय पुरुष ने नानकिन नगर के अस्पताल में अपनी जाँच कराई। सीन जित्स्यान अस्पताल के डॉक्टरों ने उसके एक्सरे और कम्प्यूटर सोनाग्राफ़ी का बारीकी से अध्ययन किया। उन्हें एक जगह पर फ़ेफ़ड़ों में कुछ भारीपन दिखाई दिया

तो उन्होंने मरीज़ की माँ से उसके बारे में पूछा। उसकी माँ ने बताया कि बचपन में एक बार वह प्लास्टिक की नन्हीं सीटी से खेल रहा था। तब वह गिर पड़ा था और वह सीटी गुम हो गई थी। लेकिन बच्चा चूँकि ठीक-ठाक था, इसलिए माँ ने सीटी खो जाने की कोई चिन्ता नहीं की।

इसके बाद डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके उस व्यक्ति के फेफड़े से प्लास्टिक की वह नन्ही सीटी बाहर निकाल दी और वह मरीज़ तुरन्त ही ख़ुद को स्वस्थ महसूस करने लगा। ओह मॉय गॉड लोग क्या-क्या निगल जाते हैं। नहीं बट ऑन द सिरीयस नोट कितनी तकलीफ झेली है इन्होंने वो भी पूरे 25 साल तक। आगे बढ़ते हैं अपने कार्यक्रम में और बात करते हैं मोबाइल फोन की जिसके बिना अब कैसे जिया जाए इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। जब मोबाइल फोन आएँ थे तब इसका इस्तेमाल सिर्फ फोन और एस.एम.एस के लिए किया जाता था। लेकिन अब तो मोबाइल आपकी पहचान, आपका अक्स बन गया है। स्मार्टफोन ने तो दुनिया पलटकर रख दी है। मोबाइल अगर हाथ में न हो तो बैचेनी होने लगती है। क्या आप जानते हैं 16 घंटे में 150 बार जाती है मोबाइल पर नजर।

मौजूदा समय में मोबाइल फोन जीवन का अटूट हिस्सा बन गया है, जिसके न होने से एक कमी का एहसास होता है। हालिया हुए एक शोध से भी यही स्पष्ट होता है कि व्यक्ति अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा मोबाइल फोन के साथ ही व्यतीत करता है। शोध के मुताबिक एक सामान्य मोबाइल यूजर हर साढ़े छह मिनट बाद अपना मोबाइल चेक करता है। अध्ययन के मुताबिक औसतन एक व्यक्ति दिन के 16 घंटों में जबकि वह जगा होता है तकरीबन 150 बार अपना मोबाइल चेक करता है। ज्यादातर लोग सुबह उठकर सबसे पहले अपना मोबाइल चेक करते हैं और उसके बाद कोई दूसरा काम करते हैं। अगर दिन की शुरुआत मोबाइल का अलार्म बंद करने से होती है तो रात को अलार्म लगाने के बाद ही ज्यादातर लोग बिस्तर पर जाते हैं। सोने और जागने के बीच इंटरनेट चेक करने, ई-मेल पढ़ने, फोन करने, मैसेज भेजने से लेकर ढेरों काम के लिए हम मोबाइल पर ही निर्भर हैं। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन में पाया गया कि जो लोग मोबाइल फोन जैसे डिवाइसों को लेकर संवेदनशील नहीं भी होते हैं वे भी नियमित समय पर मोबाइल चेक करते हैं। मोबाइल टेक्नोलॉजी कंसल्टेंट टॉमी अहोनेन के अनुसार एक व्यक्ति हर रोज औसतन 22 फोन कॉल करता या रिसीव करता है और इतनी ही संख्या में टेक्स्ट मैसेज प्राप्त करता या भेजता है। और अगर जिन्हें लगता है कि ये सब तो जूनुनी लोग करते हैं तो अपने मोबाइल को वे लोग भी चेक करते हैं जिनका मोबाइल कुछ घंटों से बजा नहीं। है न, सही बात।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040