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13-03-26
2013-04-24 14:13:10

सी.आर.आई के न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में मैं हेमा कृपलानी करती हूँ आप सब का हार्दिक स्वागत।

तेज़ी से बढ़ते सामाजिक विकास और शहरीकरण के कारण बढ़ती जनशक्ति (मैनपॉवर) की ज़रूरतों के कारण ग्रामीण वासियों को अपना घर,परिवार और गाँव छोड़ने के लिए मज़बूर करते हैं कि वे शहरों का रुख करें। और इसका सारा बोझ पीछे घर में रहने वाली अकेली महिला पर आ पड़ता है। जहाँ खेती-बाड़ी के काम से लेकर, बच्चों का पालन-पोषण और परिवार के बड़े-बुजुर्गों की सेवा के साथ-साथ घर-बाहर की पूरी जिम्मेदारी अकेली महिला पर आ पड़ती है। और ये सज़ा में तब तब्दील हो जाती है जब इन्हें काफी लंबे समय तक बिना अपने पति के समर्थन के बिना निर्वाह करना पड़ता है, और लगातार अपनी जिम्मेदारियाँ अकेले ही उठानी पड़ती हैं। चलिए, आज आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के जीवन के बारे में। जो मज़बूर है अकेला जीवन बिताने के लिए।

ऐसी ही एक महिला है झंग श्युवेई की। वे अपने पति झू जियावन से दस साल पहले फुजियान में मिली थीं जहाँ वे दोनों काम किया करते थे। उनके दो बेटे हुए जिनकी देखभाल चोंगचिंग में झू के माता-पिता किया करते थे। चार साल पहले जब झू के माता-पिता का निधन हो गया तब झंग को शहर में अपनी नौकरी छोड़ बच्चों की देखभाल करने के लिए अपने घर वापस लौटना पड़ा और झू शहर में ही रहकर नौकरी कर रहा था। कई ग्रामीण प्रवासी कामगारों की यही स्थिति है। थांग चंगफांग और ली हेयुआन की शादी को नौ साल हो चुके हैं। थांग शहर में ही अपने पति के साथ उनके 15 सक्वेयर मीटर के छोटे कमरे में रहती थी जिसका किराया प्रति माह 70 युआन था। थांग का पति बढ़ई का काम करता है। उनकी दोनों बेटियाँ थांग के पिता और भाभी के साथ रहती थीं। 2011 में उनके घर में बेटा पैदा हुआ जिसने उनकी जिंदगियों में तबदीली आ गई। थांग गाँव वापस जाकर अपने पति के परिवार के साथ रहने लगीं और अपने तीनों बच्चों की परवरिश करने लगीं। थांग बताती हैं कि गाँव में हमारा घर बड़ा है और खर्चे भी शहरों की तुलना कम हैं। मेरे बच्चे स्थानीय स्कूलों में पढ़ने जा सकते हैं।

अधिकांश ग्रामीण महिलाएँ गर्भ धारण करने के बाद और बच्चों के स्कूल जाने तक अपने गाँवों में वापस लौट जाती हैं। उसके बाद वे शहरों में जाकर अपने पति के साथ रहती हैं और काम करती हैं। बच्चों के माता-पिता की देखभाल और मार्गदर्शन के बिना बढ़ा होना और भविष्य में गंभीर परिणाम के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण कई लोग अपने बच्चों को भी अपने साथ शहर ले जाते हैं। लेकिन शहर के बड़े खर्चों के कारण कई लोग अपने परिवार को अपने साथ शहर में रखने में असमर्थ हैं। यही कारण है कि विवाहित महिलाओं को अपने गाँव में ही रहकर अपने बच्चों की देखभाल अकेले करनी पड़ती है। उनके पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पता चला कि चीन में ऐसे 87 मिलियन लोग उन परिवारों से हैं जो गाँव में अकेले रहते हैं जिनमें 47 लाख महिलाएँ हैं जिनमें 91.7 प्रतिशत अपने परिवार का भरन-पोषण करने के लिए अपने पति की आय पर आश्रित हैं। वे वहाँ रहकर खेती-बाड़ी करती है, पशु-पालन और घर की देखभाल करती हैं। पारंपरिक ग्रामीण भूमिकाएँ निभाती हैं जहाँ महिलाएँ बुनाई-कढ़ाई का काम करती हैं और पुरुष खेत में काम करते हैं। वही अब इसमें बदलाव हो गए हैं। अब पुरुष शहरों में काम करते हैं और महिलाएँ गाँव में घर तथा खेती-बाड़ी का काम संभालती हैं।

खेतों पर सुबह-शाम कड़ी मेहनत करना,हल जोतना, बच्चों की देखभाल करने के अलावा इन महिलाओं को अपने जीवन साथी से अलग होने पर मनोवैज्ञानिक दर्द सहना पड़ता है और उससे गुजरना पड़ता है। जिन पुरुषों के काम आस-पास के गाँवों के पास बसे शहरों में है वे तो महीने में एक या दो बार अपने घर लौट सकते हैं लेकिन जिनका काम दूर-दराज क्षेत्रों में है वे तो साल में केवल एक बार नव वर्ष के दौरान ही घर लौटते हैं। शांक्षी प्रांत के शंगलुओ शहर में मिलियांग टॉउन की महिला फेडरेशन की अध्यक्षा ने यह बात कही।

रन लीली और उसका पति ली शियु चिंग दोनों का जन्म गरीब परिवार में हुआ था और शियान में काम करने के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी। शादी के दो सालों बाद रन लीली का जीवन गाँव में अकेली रहने वाली महिला की तरह बीतने लगा। उस पर अपने पति के मानसिक रुप से अस्वस्थ भाई और भाभी जिन्हें मिरगी के दौरे पड़ते हैं कि देखभाल करनी पड़ती है। अब वह दो जुड़वा बच्चों की माँ भी बन गई है। रन की सास कहती हैं कि वह बहुत आज्ञाकारी और मेहनती बहू है लेकिन वह लोगों से बहुत कम मिलती-जुलती है, अंतर्मुखी और मृदुभाषी है। वह गाँव में होने वाली किसी भी स्थानीय सामाजिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेती।

थांग चंगफांग एक और ऐसी महिला हैं जो गांव में अकेली रहती है। थांग के घर से थोड़ी दूर गाँव का गतिविधि केन्द्र हैं जहाँ गाँव की महिलाएँ एकत्रित होकर गप्पे मारती हैं,चाय पीती हैं या मॉहजोंग खेलती हैं। थांग चंगफांग उस गांव से नहीं हैं इसलिए उनकी बोली बाकी सबसे कुछ अलग है। वह अपने आप को पानी के बाहर रहने वाली मछली की तरह देखती है। हालांकि, गाँव की औरतें उसे अपने साथ माहजोंग खेलने और अपने साथ बातें करने के लिए बुलाती हैं लेकिन वह नहीं जाती। जब गाँव में किसी की शादी होती है, लोग उसे बुलाते हैं लेकिन वह वहाँ भी अपनी 8 साल की बेटी को भेज देती है। उसके स्वभाव और उसकी चुप्पी को गांव वाले अजीब मानते हैं। झंग श्यूवेई ऐसा ही एक उदाहरण है। वह भी अन्य माताओं की तरह गाँव में अपने बच्चों की देखभाल कर रही हैं। बहुत लंबे समय से अपने बच्चों के साथ अकेली रहती आईं झंग को हालातों ने अति संवेदनशील बना दिया हैं और वे मानने लगीं हैं कि लोग उनके बारे में अटकलें लगा रहे हैं। इस विश्वास के कारण कई गाँववासियों से उनके झगड़े हो गए हैं।

महिलाओं से हुए साक्षात्कार में, 63.2 प्रतिशत ने स्वीकार किया कि अकेलेपन के कारण उनके लिए पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उठाना मुश्किल हो गया है। एक ऐसी ही महिला ने बताया है कि शहर में एक प्रवासी मजदूर के रूप में जीवन बिताना अकेली ग्रामीण महिला का अकेले घर में जीवन बिताने से कहीं ज्यादा बेहतर है। "घर पर अकेले रहना का मतलब है कि आप किसी दूरस्थ स्थान पर उन लोगों के साथ रह रहे हैं, जिनके साथ आम कुछ भी नहीं है यानी वे आपके लिए अनजान हैं। हालांकि, शहरों में रहकर काम करना कठिन और थकान भरा है, लेकिन वहाँ रहकर आप कम-से कम अपने पति या पत्नी के साथ तो रह सकते हैं और काम के बाद फुरसत के पल तो साथ में बिताने के लिए आपको मिलते हैं। आपको नई चीज़ें देखने,जानने का अवसर मिलता है, ऑनलाइन सर्फिंग कर सकते हैं और नए व्यंजन बनाने की कोशिश कर सकते हैं। जबकि गाँव में आपके काम का कोई अंत नहीं होता। लेकिन अगर आप अपने गृहनगर में ही शादी के बाद अकेली रहती हैं तो या तो रिश्तेदार के साथ-साथ परिचित वातावरण में रहती हैं। जहाँ रहना फिर भी आसान है बनिस्बत अगर आप अपने पति के गाँव में जाकर अकेली रहती हैं जैसे थांग छंगफांग ने किया जैसा कि पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार होता आया है तो आपके लिए पूरा वातावरण ही नया हो जाता है। वहाँ की बोली, भोजन और निवासियों के रीति-रिवाज जो बिल्कुल अलग होते हैं जहाँ से आप आई हैं। जहाँ आपका कोई करीबी दोस्त नहीं होता जिसके साथ आप अपने विचार, गम-खुशी साझा कर सकें।

लंबे समय तक अपने पति से जुदाई और वैवाहिक संबंधों के अभाव के फलस्वरूप 69.8 प्रतिशत महिलाओं में कई प्रकार की मनौवैज्ञानिक व्याधियाँ देखी गई, साक्षात्कार के दौरान पता चला 50.6 प्रतिशत एंगजाइटी यानी चिंतित थी और 39.0 प्रतिशत अवसाद से ग्रसित पाई गईं। इस मनमुटाव के बीच, बच्चों की देखभाल, वरिष्ठ नागरिकों की बीमारी, कृषि श्रमिक की तरह लगातार काम करते रहना। महिलाओं पर शारीरिक के साथ-साथ मानसिक बोझ कुछ जरुरत से ज्यादा ही पाया गया।

इस स्थिति का हल निकालना स्थानीय सरकारों, जनता की कांग्रेस के डिप्टियों और मनोवैज्ञानिकों के लिए मुख्य चिंता का विषय है। 2010 में शुरू की गई निवास पंजीकरण प्रणाली में कई सुधार किए गए ताकि ग्रामीण प्रवासी कामगारों और उनके जीवनशैली की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। उनका उद्देश्य है ग्रामीण निवासियों के लिए जो शहर में काम कर रहे हैं उनकी स्थिति शहरी नागरिकों के बराबर हो, उन्हें रोजगार, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आवास और सामाजिक सुरक्षा एक समान मिले और एक परिवार की इकाई के रूप में रहने के हकदार हो, वे भी। देशभर में स्थानीय सरकारों ने इस संबंध में अनुसंधान और परिक्षण करना शुरू कर दिया है। क्वांगसू कृषि विश्वविद्यालय के एक छात्र ने हाल ही में एक प्रश्नावली सर्वेक्षण का शुभारंभ किया जिससे वह ग्रामीण परिवारों के साथ संपर्क स्थापित कर सकें और मदद दे जहां जरूरत है। परियोजना के नेता ह जीनी बताते हैं इन परिवारों को अकेलापन और निरर्थकता की भावनाओं को कम करने के लिए मदद करते हैं। हम और भी अधिक लोगों को इस सामाजिक मुद्दे को हल करने में आगे बढ़ शामिल होने की उम्मीद करते हैं।

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक सलाहकार झू मेयुआन ने कहा कि हाल के वर्षों में चीन में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के कारण शहरों में काम करने आए ग्रामीण श्रमिकों की बढ़ती संख्या उन्हें अपने साथी से विस्तारित अवधि के लिए दूर रखती है जिससे उनके बीच मनमुटाव बढ़ने लगे हैं। फलस्वरूप ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सामाजिक संबंध और परिवार के सदस्यों जो उनके गृहनगर में पीछे छूट गए हैं अपनी ओर ध्यान और उचित कार्रवाई की मांग करते हैं।

सही हैं न दोस्तों, तेज़ी से होता विकास लेकर आता है अपने साथ कई छुपी-अनदेखी समस्याएँ। जिनका अगर समय रहते समाधान न निकाला गया तो भविष्य में परिणाम शायद बहुत खतरनाक हो सकते हैं।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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