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12-12-04
2013-01-04 20:00:14

दोस्तों, आज मैं आप सब को अपने बचपन में लिए चलती हूँ। क्या आपको याद है जब आप छोटे हुआ करते थे तब बचपन में किन खिलौनों से खेला करते थे। जी हाँ, याद आ रहे हैं वे गुड़्डा-गुड्डी, लकड़ी की गाड़ी, हाथी, घोड़ा, मिट्टी के खिलौने। जिन में हमारी जान बसती थी। कोई हाथ लगाए उन्हें तो हमें लगता जैसे किसी ने हमारा सब कुछ छीन लिया है, हमसे। खिलौने केवल मस्ती के लिए नहीं बल्कि पहचान बन जाते थे, हमारे माता-पिता, दादा-दादी, नानी-नानी की सुनहरी यादें बन जाते थे। उनका प्यार हमें उनके दिए खिलौनों में समेटे हम सब बड़े हुए हैं और आज भी हमारे माता-पिता के पास हमारा कोई न कोई खिलौना ज़रुर मिल जाता है जो हमें हमारे बचपन में लिए जाता है। आज के बच्चों के पास जैसे हाई-फाय, इलेक्ट्रोनिक खिलौने हमारे पास कहाँ होते थे। आज के आधुनिक खिलौनों की अपेक्षा उन पुराने परंपरागत खिलौनों में हमारी संस्कृति और संजातिय विशेषताओं की झलक दिखती थी जो हमारी अपनी मिट्टी से जुड़ी थी। लेकिन आज तकनीक के कारण जैसे पूरी दुनिया सिमट गई है वैसे ही बच्चों के खिलौने अब हर जगह एक जैसे ही मिलते हैं। और अब तो दुनिया भर के बच्चे मेड इन चाइना के बने खिलौनों से खेलते हैं। तो चलिए, आज बात करते हैं चीन के उन बच्चों के बारे में जो अब आपकी हमारी तरह बड़े हो गए हैं, समय के चक्र को थोड़ा पीछे घुमाते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि वे किस तरह के खिलौनों के साथ खेला करते थे। कैसी यादें जुड़ी हैं उनकी अपने बचपन के साथ। तो चलिए, आज फिर लौट चलते हैं अपने बचपन में। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपने होने वाले बच्चों के लिए खिलौने बनाते हैं। जिनमें कपड़े से बने बंदर और कपड़े से बना बाघ सबसे प्रचलित हैं। जिसे वे 100 दिन या एक साल के बच्चे को उपहार के रूप में देते हैं। कपड़े से बना बाघ सबसे प्रचलित हैं और चीन का प्रतिनिधित्व करता है, मेड इन चाइना खिलौनों में सबसे पहले आज भी इसका जिक्र होता है। कपड़े से बने बाघ का इतिहास 6000 साल से भी पुराना है। प्राचीन काल में चीन की कई जातियों में बाघ के पैटर्न की पत्थर से बनी, जेड और मिट्टी से बने सामान पर शिल्पकारी की जाती थी। चीनी लोगो का मानना है कि बाघ सभी बुराइयों,अमंगल को दूर कर उनके बच्चों के लिए गुड लक लाता है। ऐसा करने से उनके बच्चे भी बाघ की तरह बहादुर, निडर और शक्तिशाली बनेंगे। कपड़े से बने बाघ का अधिकतर बड़ा सिर, बड़ी आँखें, बड़ा मुँह लेकिन शरीर छोटा होता है। ऐसा क्यों तो इसका जवाब है, ऐसा करने से बाघ की बहादुरी का पता चलता है और बड़े सिर वाले बाघ के मुंह पर जो भाव अभिव्यक्त होते हैं वे बिल्कुल किसी छोटे शिशु के चेहरे के भाव जैसे लगते हैं।

दूसरा खिलौना है- उत्तर पश्चिम चीन में मेंढक या मछली के आकार के तकिए बनाए जाते हैं जो बहुत मशहूर हैं। इन तकियों पर फूलों या मक्खियों के डिजाइन की कढ़ाई की जाती है और इन तकियों के बीच में एक बड़ा छेद रखा जाता है ताकि बच्चों के कान सुरक्षित रहें। अगर बच्चे रोए तो उनके आँसू इस छेद से बाहर बह जाएँ और तकिया गीला न हो। इनके अलावा चीन में नवजात शिशु को ड्रैगन, बंदर, मुर्गा, हिरन और भेड़ के आकार के खिलौने भी बतौर उपहार दिए जाते हैं क्योंकि इन सभी जानवरों को यहाँ शुभ माना जाता है।

शांक्षी प्रांत में मिट्टी से बने बाघ को संरक्षक माना जाता है। इन्हें भी नवजात शिशु या 100 दिन के बच्चों को उपहार दिए जाते हैं और इन्हें बच्चों की अच्छी सेहत और स्वास्थ्य के लिए बिस्तर पर उनके सिर के करीब रखा जाता है। एक और परंपरागत खिलौना यहाँ चीन में बहुत शुभ माना जाता है वह है घोड़े की पीठ पर सवार बंदर। चीनी भाषा में घोड़े पर- को मा शांग कहा जाता है जिसका मतलब हुआ बहुत तेज़ और बंदर को होउ जिसका उच्चारण उच्च पद के समान है और पीठ शब्द का उच्चारण पीढ़ियों के समान है। इसलिए यह खिलौना बहुत शुभ माना जाता है। चलिए, अब उन खिलौनों की बात करते हैं जो बच्चे थोड़े बड़े हो जाने पर खेलते हैं। खिलौनों का बढ़ते बच्चों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पारंपरिक चीनी खिलौने केवल दिल बहलाने के लिए नहीं बल्कि बच्चों को सिखाने के उद्देश्य से डिजाइन किए गए थे ताकि उनसे उनके मानसिक विकास, बुद्धिमानी, सोचने-समझने की क्षमता को भी विकसित किया जाए। खिलौनों के रंग-रूप, पैटर्न को चटकीला रखा जाता ताकि वे बच्चों को आकर्षित करें और थॉट प्रोवोकिंग हों यानि सोचने के लिए उत्साहित कर सकें। उनमें से एक खिलौना है सेवन पीस पज्जल, सात टुकड़ों में बंटी पहेली या टेंन्ग्राम। इसमें फ्लैट, सीधे-सपाट आकार के सात टुकड़े होते हैं जिन्हें टेंन्स कहा जाता है। पहेली को हल करने के लिए सभी सात टुकड़ों का उपयोग कर एक विशिष्ट आकार में रखना होता है। जो ओवरलैप नहीं करना चाहिए, यानी कोई भी दो आकार एक जैसे नहीं होने चाहिए। इस खेल का आविष्कार चीन में किया गया था। लेकिन 19 वीं सदी के दौरान यूरोप के नाविकों द्वारा इसे यूरोप ले जाया गया। एक समय था जब यह यूरोप में बहुत लोकप्रिय खेल बन गया था। फिर लोग इसे भूलने लगे लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फिर से इसकी लोकप्रियता बढ़ गई। यह दुनिया की सबसे लोकप्रिय dissection पहेली है(विच्छेदन पहेली)। सभी टुकड़ों को मिला कर 1600 से अधिक पैटर्न बनाए जा सकते हैं। इस पहेली को व्यापक रूप से बच्चों में अवलोकन, कल्पना, निर्माण, विश्लेषण और क्रिटीकल थिंकिंग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसके बाद वाहन खिलौने हमेशा से बच्चों में लोकप्रिय रहे। जिनका इतिहास चीन में हान राजवंश के समय से चला आ रहा है। खिलौने वाले वाहन लकड़ी, बांस और मिट्टी से बनाए जाते थे। शांनदोंग, वुक्शी और जियांगसु प्रांत के लकड़ी के रंगीन खिलौने बहुत प्रचलित रहे। अब बात करते हैं- खड़खड़ या दस्तक वाले खिलौनों की, इन्हें हिलाने, घुमाने या खटखटाने पर आवाज़ करते हैं। यह बीजिंग में पारंपरिक खेल माना जाता है। लंबे डंडों पर पीतल की गोल छोटी प्लेटें लगाई जातीं जिन पर ऑपेरा कलाकारों के चित्र लगाए जाते जिन्हें हिलाने पर वे ऐसे लगते मानो जीवंत हो। दूसरे तरह के खिलौनों में जानवरों के सिर या पूँछ पर स्प्रिंग लगाए जाते ताकि उन्हें छूने पर जानवर हिलने लगते। हनान प्रांत में बनने वाले पूँछ हिलाते बाघ और सिर हिलाते शेर बहुत प्रचलित थे। चीन की पंतगों के बारे में तो सब जानते ही हैं। चीन सबसे पहला देश है जिन्होंने पवन ऊर्जा का उपयोग किया था। चीनी, ने पवन बिजली का इस्तेमाल कर कृषि कार्य, सिंचाई, और नौकायन में मदद करने के साथ कई हवा संचालित खिलौनों का आविष्कार किया जिसमें पतंग एक थी। चीन में पतंग को लगभग 2800 साल पहले विकसित गया। जहाँ नौकायन सामग्री के लिए रेशम का प्रयोग किया जाता, उच्च तन्यता रेशम का प्रयोग उड़ान के लिए, हल्के, पतंग के ढांचे के निर्माण के लिए लचीला बांस उपयोग में लाया जाता था। पतंगों पर पौराणिक रूपांकनों और पौराणिक आंकड़ों से सजाया जाता था जिनमें तार तथा सीटी फिट की जाती थी ताकि जब वे उड़े तो उनमें से संगीत ध्वनि निकले। पारंपरिक चीनी खिलौने बच्चों में अच्छे गुण और संस्कारों को सिखाने में भी मदद करते थे। कुछ खिलौने वीरों को प्रतिबिंबित करने के लिए बनाए जाते रहे हैं ताकि, बच्चों को उनकी कहानियों से प्रभावित किया जा सकता है जब वे खिलौनों के साथ खेलते हैं। वीरों के फिगरस पारंपरिक चीनी किंवदंतियों में से ज्यादातर रहे हैं। जिनमें चीनी operas या शास्त्रीय साहित्य जैसे पश्चिम की यात्रा, तीन राज्यों का रोमांस और सफेद साँप की कथा। इन फिगरस के सकारात्मक प्रभाव के साथ बच्चे उन में सही-गलत, अच्छे-बुरे की पहचान करना सीख सकते हैं। ऐसे खिलौने ज्यादातर रंगीन होते हैं। इनमें सबसे पहले बारी आती है......

क्ले खरगोश की, मिट्टी का खरगोश मध्य शरद ऋतु महोत्सव के दौरान बहुत दिखता है। इसे पहली बार मिंग राजवंश (1368-1644) के दौरान देखा गया था और छिंग राजवंश (1644-1911) में बहुत लोकप्रिय रहा। यह आज भी बीजिंग में चंद्रोत्सव का प्रतीक है। चीनी परंपरा के अनुसार मध्य शरद ऋतु महोत्सव के दौरान चंद्रमा की पूजा की जाती है। लोकप्रिय प्राचीन लोक कहानी के अनुसार खरगोश का संबंध चाँद से जुड़ा हुआ है। चीनी लोगों का लंबे समय से मानना रहा है कि खरगोश को चाँद पर दवा बनाते हुए देखा गया है। त्योहार से पहले बीजिंग में हर जगह मिट्टी का खरगोश बिकता है। मिट्टी का खरगोश "खरगोश दादाजी" के नाम से जाना जाता है। प्राचीन समय में लोग मध्य शरद ऋतु समारोह के दौरान अच्छे भाग्य के लिए घर पर "खरगोश दादाजी" की पूजा करने के लिए लाते थे।

समय बीतने के साथ "खरगोश दादाजी" का धार्मिक अर्थ खो गया है और मिट्टी का खरगोश अब केवल एक खिलौना बन कर रह गया है। जिनान, शांनदोंग प्रांत के लोग आज भी मध्य शरद ऋतु त्योहार के दौरान "खरगोश" की पूजा करते हैं जिसे वे लोग खरगोश राजा कहते हैं। इसके पीछे की कहानी यह है कि एक समय में मध्य शरद ऋतु त्योहार के दौरान महामारी फैली थी जिसकी वजह से कई लोग बीमार पड़ गए। जिसकी खबर चाँद पर रहने वाले खरगोश को पता चली जो वहाँ दवाइयाँ बनाते थे और वे ये दवाइयाँ लेकर उस शहर में गए। खरगोश ने गांव के 72 कुँओं में दवा डाल दी। उस कुँए का पानी पीकर लोग स्वस्थ हो गए। उसके बाद लोग खरगोश के आकार में पैनकेक यानि चीले बनाने लगे। समय के साथ-साथ उन चीलों ने मून केक का आकार ले लिया और खरगोश "खरगोश राजा" कहलाने लगा।

इस के बारे में तो आपमें से कुछ लोग जरुर जानते होंगे - पश्चिम की यात्रा, चीनी साहित्य के चार महान क्लासिक उपन्यासों में से एक है। 16 वीं सदी में मिंग राजवंश के दौरान वू छंगअन द्वारा लिखा गया था। ये खिलौने है इस उपन्यास के पात्रों पर बने मिट्टी के खिलौने। उपन्यास एक काल्पनिक पौराणिक कथा पर आधआरित है जहाँ एक बौद्ध भिक्षु शुआनझांग भारत की तीर्थ यात्रा पर गए थे। उपन्यास शिथिल पारंपरिक लोक कथाओं पर आधारित है जिसमें सून वुकोंग या बंदर और झू बाजिए जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ "आठ सुअर उपदेश" इस उपन्यास के दो लोकप्रिय पात्र हैं। इस उपन्यास से मिट्टी के फिगरस जून काउंटी, हनान प्रांत में उत्पादित किए जाते हैं। इन फिगरस में बंदर की चतुराई और सुअर का भद्दापन देखने को मिलता है। उसी तरह से प्राचीन वेशभूषा में सजे मिट्टी के घुड़सवार बनाए जाते हैं। चीन में अधिकतर लोकप्रिय खिलौने प्राचीन उपन्यासों के नायक हैं या ऐतिहासिक ओपेरा के पात्र। बच्चे अपने देश के ऐतिहासिक ज्ञान को और बेहतर तरीके से समझते हैं तथा उनके गुणों के बारे में जान पाते हैं और इनमें सुधार कर सकते हैं अगर वे इस तरह के खिलौनों के साथ खेलते हैं।

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तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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