स्वीकार कीजिए नमस्कार, हेमा कृपलानी का। दोस्तों, पुस्तकालय, लाइब्रेरी जहाँ मिलता है किताबों का, ज्ञान का भंडार और जिन्हें हमारा बेस्ट फ्रेंड कहाँ जाता है। कहते हैं, एक अच्छी किताब दस अच्छे मित्रों के बराबर होती है। आजकल ई-बुक्स का भी चलन बढ़ गया है। लोग पुस्तकालयों में न जाकर कंम्प्यूटर पर ही इन्हें पढ़ने लगे हैं। लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदलता है लेकिन मकसद वही रहता है, ज्ञान हासिल करना। चीन में सबको किताबें पढ़ने का बहुत शौक हैं, यहाँ पुस्तकालय और बुकस्टोरस आपको जगह-जगह पर दिखाई देते हैं। पुस्तकालयों में हर सप्ताह अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें बच्चे-बूढ़े सब बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। जैसे कभी पज़्जल(पहेली) प्रतियागिताएँ, कहानियों की प्रतियोगिताएँ, अंग्रेजी भाषा पर आधारित प्रतियोगिताएँ वगैरह-वगैरह। लेकिन ये सब तो आम-सी बातें हैं और चीन, चीन के लोग हमेशा कुछ नया, कुछ अलग, कुछ हटकर करने की होड़ में लगे रहते हैं, हमेशा। तो यहाँ पुस्तकालयों का एक नया रूप सामने आ रहा है- वह है लिविंग लाइब्रेरी यानी जीवंत लाइब्रेरी। जी, इस लाइब्रेरी में पारंपरिक किताबें नहीं रखी मिलती बल्कि उनकी जगह ले ली है जीते-जागते इंसानों ने। तभी तो इनका नाम है- जीवंत लाइब्रैरी। ज्ञान बाँटने का एक नायाब-अनूठा तरीका खोज निकाला है चीन के लोगों ने- लीविंग लाइब्रेरी के रूप में। आखिर क्या है और कैसी है, ये लीविंग लाइब्रेरी। इस खुले पुस्तकालय में आप-हम जैसे लोग जो जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों से,बेकग्रांउड से आते हैं और मौका देते हैं लोगों को, लोगों की, लोगों से ही कहानियाँ सुनने और सुनाने का। किताबों के पन्नों से बाहर निकल एक स्वच्छंद माहौल में अपनी बात कहने का। आप सोच रहे होंगे कि यह तो एक खुले मंच की तरह है जहाँ कोई भी आकर अपने मन की बात कह सकता है। जी नहीं, यह मंच सबके लिए खुला तो है लेकिन यहाँ आप अपने अनुभव, अपने जीवन का फलसफा कहानी के रूप में लोगों को सुनाते है। ठीक उसी तरह जैसे किसी किताब को पढ़ते हुए आप पन्ने पलटते हैं और कहानीकार के द्वारा रची कहानी में खुद को पूरी तरह शामिल कर लेते हैं। यह पुस्तकालय स्थानीय पुस्तकालयों की ही भांति है, बस फर्क है, कि यहाँ इंसान किताबें हैं, जो अपने निजी अनुभव सबके साथ साझा करते हैं और न ही ये ऑडियो किताबें हैं न लिखी हुई किताबों की तरह है। "स्वयंसेवी किताबें" अपने अनुभव इच्छुक "पाठकों" यानी श्रोताओं को सुनाते हैं। इस प्रकार "पाठक" श्रोताओं को अपने समाज की विविधताओं को जानने और समझने का मौका मिलता है। एक समय में एक बातचीत के विषय को उठाकर लीविंग लाइब्रेरी लोगों को एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझने का मौका प्रदान करती हैं। पहली बार डेनमार्क में युवा उत्सव के दौरान पहली बार लीविंग लाइब्रेरी का आयोजन किया गया था। इस तरह के आयोजन सालों से चली आ रही स्टीरियोटाइप धारणाओं और चुनौतियों का सामना कर समाज में पनप रही कुरितियों, भ्रांतियों को मिटा नए समाज का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। चीन में "इसलाइब्रेरी" एल सी वॉय शेयरिंग कम्यूनिटी द्वारा कोषीय सहायता प्राप्त, स्वयंसेवकों द्वारा संचालित की जा रही है। "इसलाइब्रेरी" लगातार कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है और लोगों को मौका प्रदान करती है कि वे एक जगह इकट्ठा होकर अपने अनुभव दूसरों को बताएँ ताकि अन्य लोग इससे प्रेरणा ले सकें और समाज में सकारात्मक योगदान कर सकें। कुछ दिन पहले इसी लीविंग लाइब्रेरी में एक महिला ने अपने जीवन की कहानी को बिल्कुल वैसे सुनाया जैसा कि किताबों में शब्दों में पिरोई कोई कहानी पढ़ रहे हो, उन्होंने बताया कि किस तरह वह अपने जीवन में अवसाद का शिकार हो गई थीं और अपने जीवन का अंत कर देना चाहती थी। कैसे उन्होंने अपने आप को उस स्थिति से उबारा और आज एक सफल अध्यापिका के रूप में अपना जीवन खुशी से व्यतीत कर रही हैं।
चलिए, अब लाइब्रेरी से बाहर निकल चलते हैं चाइनीस रसोईघर में। ना,ना रेडियो बंद मत कीजिए मैं खाना पकाने की कोई रेसीपी नहीं बता रही। बल्कि असली चाइनीज फूड से आपका परिचय करवाना चाहती हूँ। चीन आने से पहले मैं ये सोचती थी कि वाओ, इंडिया में चाइनीस खाना इतना यम्मी,स्वादिष्ट मिलता है तो चाइना में क्या कहना। मंचुरियन, चाओ मीन,फ्राइड
राइस वाओ, मजा आ जाएगा। यहाँ पहुंचते ही बिना समय गंवाए मैंने एयरपोर्ट पर ही चाइनीस खाना खाया और यकीन मानिए मुझे ऐसा लगा कि भारतीय ही चीनी भोजन ज्यादा स्वादिष्ट पका सकते हैं चीनी लोग अपना ही खाना पकाना नहीं जानते। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि इंडिया में मिलने वाले चाइनीस फूड पर मेड इन इंडिया का ठप्पा लगा होता है जिसमें हमारे मसाले डालकर उसका स्वाद हमारी टेस्ट के अनुसार बनाया जाता है और चीन में ही असली मेड इन चाइना वाला भोजन मिलता है। मंचुरियन, ये क्या होता है, चाइनीस भोजन में कहीं नहीं पाया जाता। मैं यहाँ मंचुरियन- मंचुरियन करते-करते थक गई लेकिन मुझे चीन में तो ये कहीं नहीं मिला। आप सबको ये सुन कर बहुत अजीब लग रहा होगा लेकिन सच तो यही है और इसे कोई बदल नहीं सकता। चलिए, शिकायतें बहुत हो गईं लेकिन एक बात तो है, हम में से अधिकतर लोग ये सोचते हैं कि सभी चीनी लोग बहुत दुबले-पतले है, ये लोग कम खाते होंगे। आप को जानकर हैरानी होगी कि औसत चीनी व्यक्ति एक भारतीय से ज्यादा खाता है। तो फिर ये इतने दुबले-पतले कैसे हैं। इसका राज़ हर रोज़ दिन में तीन बार ठीक समय पर भोजन करना। आप सब ने हमारे रेडियो कार्यक्रमों में कई बार सुना होगा कि चीनी लोग समय के पाबंद होते हैं, और खाने के समय को लेकर तो यहाँ के लोग इमोशनली पाबंद होते हैं। मतलब ये कि कितना भी ज़रूरी काम क्यों न हो अगर खाने का टाइम हो गया तो मतलब हो गया। उस समय सारे काम साइड पर पहले खाना, यहाँ ये नहीं सोचा जाता कि चाहे देर से ही जाऊँ मगर रात का भोजन घर पर परिवार के अन्य सदस्यों के साथ किया जाएगा। खाने के समय आप जहाँ कहीं भी है खाना उसी टाइम पर खाया जाएगा। स्कूलों, दफ्तरों, अस्पतालों, बैकों, कार्यालय हर जगह 12 बजे से 1.30 बजे तक कोई काम नहीं होता। पूरा शहर रेस्टींग, आराम के मोड में चला जाता है। देखा, आपने इतना इमोशनल रिश्ता है भोजन के साथ यहाँ और मुझे लगता है मैं तो इमोशनल अत्याचार करती हूँ, जब टाइम होगा तब खाऊँगी। चलिए, ये तो हुई बात टाइम की अब आपको कुछ और जानकारियाँ देते हैं चीनी भोजन के बारे में। अभी हमने आपको बताया था कि यहाँ के लोग कम खाना नहीं खाते तो फिर दुबले-पतले कैसे रहते हैं। जी इसका राज छुपा है- चाइनीस खाना बनाने के अंदाज में। चाइनीस का मानना है कि खाना बनाते समय आपको इस बात का ध्यान सबसे ज्यादा रखना चाहिए कि कहीं आप ऐसा कुछ तो नहीं कर रहे जिससे की भोजन को तकलीफ पहुँचे और उसके सारे पोषक तत्व नष्ट हो रहे हो। कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा ही आपने खाया तो भर पेट लेकिन ज़रूरी पोषक तत्व तो आपको मिले ही नहीं क्योंकि आपने खाना पकाया ही कुछ इस तरह से। तलने, उबालने और सौटे यानी सेकने से और माइक्रोवेव करने से भोजन के सभी विटामिन नष्ट हो जाते हैं। खाना पकाने से पहले आपको इस बात का ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं जाने –अनजाने आप अपने भोजन को केवल स्वाद के लिए और पेट भरने के लिए खा रहे हैं और कुछ भी नहीं।
भोजन के सभी पोषक तत्वों को बचाए रखता है स्टीमींग यानी वो भोजन जो भाप से पकता है। यहाँ के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से आपके भोजन में उपलब्ध मिनरलस और विटामिनस नष्ट नहीं होते क्योंकि इस तरह से भोजन पकाने से आप तेल या वसा का प्रयोग नहीं करते और आप उन चीज़ों का सेवन नहीं करते जिन्हें आपको नहीं खाना चाहिए। यहाँ के लोग मछली को भी स्टीम करके खाते हैं।
उबला खाना भी एक बेहतर तरीका होता है, पोषक तत्वों को बनाए रखने का। ये भी ध्यान रखना चाहिए कि सब्जियों को ज़रूरत से ज्यादा न उबाला जाए क्योंकि ये भी पोषक तत्वों और एंजाइमस को नष्ट करता है। अगर आप सब्जियों को उबाल रहे हैं तो पहले पानी उबालिए फिर उबले पानी में सब्जियाँ डालें और सब्जियों को कभी भी तीन मिनट से ज़्यादा न उबाले। स्वाद के लिए उसके ऊपर कोई सॉस डाल दी जाती है।
एक और बहुत ज़रूरी बात जो चाइनीस रसोईघर से सीखने को मिलती है वह ये कि खाना पकाते समय यहाँ के लोग उसमें नमक या कोई और सॉस नहीं डालते क्योंकि ऐसा करने से ब्लड प्रैशर में बदलाव होता है और आप ज़रूरत से ज्यादा ही नमक का प्रयोग करने लगते हैं। जब तक भोजन गैस पर पक रहा होता है चीनी भोजन में किसी प्रकार के मसाले नहीं डाले जाते जिससे भोजन का स्वाद बड़े। यहाँ साधारण नमक से ज़्यादा सी-साल्ट का प्रयोग किया जाता है।
यहाँ हर मील में यानी जो भी यहाँ खाया जाता है उसके साथ कच्चे फल और सब्जियों का प्रयोग भी अवश्य किया जाता है। मतलब ये कि सलाद और फल खाने की मेज़ पर ज़रुर होते हैं। अब तक आप लोगों को सुनकर लग रहा होगा कि क्या फायदा ऐसे खाने का फीका-सा खाना कितने दिन खा सकता है कोई तो ये भी बता दें कि हैल्दी कुकिंग का मतलब कम स्वादिष्ट तो माना जा सकता है लेकिन ये तो बिल्कुल नहीं होता कि खाना बेस्वादु हो। उसका इलाज भी चाइनीस रसोई में है, लहसुन,अदरक,प्याज और हर्बल पत्तियों से खाने को स्वादिष्ट बनाया जा सकता है। अब भई,अगर अपने खाने की तारीफ करवानी है तो थोड़ा बहुत तो आपको भी इनोवेटीव होना पड़ेगा और खाना पकाने वाले लोग ये भली-भांति जानते हैं कि हेल्थी भोजन को स्वादिष्ट कैसे बनाया जाए। अगर सेहत को ध्यान में रखकर खाना बनाया जाए तो स्वाद के साथ मिलता है बेहतर न्यूट्रीशन और हेल्थी खाना। अगर आप भी अपने और अपने परिवार के लिए चाहते है अच्छा स्वास्थ्य तो इन चाइनीस कुकिंग टिप्स को आजमाइए और भोजन के हेल्थी विकल्पों को चुनिए। क्योंकि अगर दिखना चाहते है हृष्ट-पुष्ट, सुंदर और सेहतमंद तो अन्य चाइनीस उत्पादों के साथ अपनाइए ये कुछ आसान से टिप्स लेकिन हमें बताना मत भूलिएगा कि कैसे लगे आपको ये टिप्स और कैसे बदला आपने अपनी रसोई में खाना बनाने के अंदाज़ को और उनसे मिलने वाले फायदे और तारीफे जो आपनी बटोरी।
श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।
तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार