परम आदरणीय चाइना रेडियो इन्टरनेशनल के हिन्दी विभाग की डायरेक्टर/ प्रधान सुश्री यांग यीफंग (Mrs. Yang Yifeng), हिन्दी विभाग की सभी स्टाफ को और साथ ही यहाँ उपस्थित सभी चीनी देवियों, सज्जनों को मेरा विनम्र अभिवादन और प्यार भरा नमस्कार स्वीकार करें |
कुछ बोलने से पहले मैं यहाँ पर यह बात उल्लेख करना चाहूँगा की मेरा मातृभाषा बंगला है।इसलिए हिंदी बोलते वक़्त अगर कुछ गलती होता है तो कृपया माफ़ कीजियेगा । अब मैं सबसे पहले सी आर आई हिंदी विभाग की सभी कार्य कर्तायो को और उद्घोषक और उद्घोषिका को अपने दिल से कृतज्ञता ज्ञापन कर रहा हूँ की मेरा स्वप्नों की देश चीन में मुझे आमंत्रण करने के लिए। चीन भ्रमण मेरे लिए दूर का एक स्वप्ना था, लेकिन सी आर आई हिंदी विभाग की ज्ञान प्रतियोगिता की माध्यम से बिशेष इनाम प्राप्त कर अब मेरा यह स्वप्ना साकार हो गया ।
मैं सी आर आई का बहुत पुराना श्रोता हूँ । मैंने सी आर आई का कार्यक्रम वर्ष 1985 से सुनना शुरू किया था । उस समय मैं उच्च विद्यालय का छात्र था । उसी समय से मैं सी आर आई का हिंदी, बंगला और अंग्रेजी कार्यक्रम सुनता आ रहा हूँ । पिछले 27 वर्ष मेरे शरीर के खून के कोने कोने में सी आर आई बसा हुआ है । सी आर आई हिंदी विभाग सिर्फ मेरा ही नहीं, हमारे पुरे परिवार की दिल की धड़कन है। आपके रोचक कार्यक्रमों ने मुझे सी आर आई का एक अंध भक्त बना दिया।
बचपन में, मैं जब प्राइमरी स्कूल की छात्र था तब से मैं चीन को पसंद करते आया हूँ। क्योंकि चीन भारत की तरह एक प्राचीन सभ्यता वाले देश है। मैं बड़ी ख़ुशी के साथ आपको यह बात बोलना चाहता हूँ की, जब 1985 साल में मैं सी आर आई का हिंदी रेडियो प्रसारण सुनना शुरू किया तब मैं हिंदी विभाग की उद्घोषक और उद्घोषिका की मीठी आवाज से बड़ी प्रभावित हुआ था और मैं चीनी इतिहास व संस्कृति के प्रति और भी आकर्षित हुई। बाहरी दुनिया को जानने के लिए सी आर आई मेरे लिए खुली खिड़की जैसा है। फिर चीन मेरे लिए अनजान देश नहीं रहा। सी आर आई हिंदी सेवा , श्रोता वाटिका पत्रिका और सी आर आई हिंदी वेब साईट मुझे चीन के बारे में विस्तृत ज्ञान देता है । यह हमारे सामने वास्तविक चीन को लाता है।
आज मेरे लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है, आज मैं चीन की महान धरती पर आया हूँ और यहाँ आकर मुझे स्वर्ग जैसा अनुभव होने लगा। हमारे देश की कवि Dwijendralal Ray अपनी मातृभूमि भारत की वन्दना करके बंगला में एक संगीत लिखा था, मैं संगीत को अंग्रेजी में आप लोगों को बोल रहा हूँ :
Blessed with wealth, adorned with flowers
This Mother Earth of ours,
In her midst is a nation
Most famed of all nations,
Oh that nation is made of dreams
Wrapped in memories,
You won't find a nation like this anywhere
Oh she is the queen of all nations,
She who is my motherland.
मैं भी कवि की तरह बोलना चाहता हूँ -
"सभी देशों से अच्छा
मेरा दूसरा जन्मभूमि चीन
सबसे प्यारा मेरा,
स्वप्नों से सजाया हुआ
जिसका प्रतीक मेरे मन में भरा
नहीं मिलेंगे दूसरे कही
वह तो मेरा दूसरा जन्मभूमि।"
चीन और भारत की आबादी संसार में सब से ज्यादा है । दोनों देशों का इतिहास बहुत पुराना होने के साथ साथ, उनके बीच आवाजाही का इतिहास कम से कम 2200 साल लम्बा है। दोनों देशों के सांस्कृतिक आदान प्रदान मानव जाति की समृधि और दुनिया की प्रगति के लिए बड़ा योगदान दिया है। चीन और भारत -इन दोनों देशों के बीच मित्रता की आवाज बढ़ने के लिए चाइना रेडियो इन्टरनेशनल ( पुराना नाम रेडियो पेकिंग) वर्ष 1959 साल के 15 मार्च हिन्दी प्रसारण शुरू किया जो आज हमारी मैत्री का पुल है, और इसी हिंदी विभाग की द्वारा आयोजित "तिब्बती बौद्धधर्म के प्रमुख मठ" पर सवाल-जवाब प्रतियोगिता के विजेता की रूप में आज मैं मेरा दूसरा जन्मस्थान चीन की महान धरती पर कदम रखा हूँ, और यहाँ आने के बाद मेरा 27 वर्ष का स्वप्ना साकार हो गया एबं इसके साथ ही सी आर आई हिंदी सेवा के प्रति मेरा दायित्व और भी बढ़ गया। मैं यह बोलना चाहूँगा: "गाता रहे मेरा दिल / चीन, तुम ही मेरा मंजिल / आती जाती सांस जाने / कब से गा रही है / चीन , तुम ही मेरी मंजिल..."|
आज मेरे लिए यह बहुत ही गौरव की बात है की, हमारे देश के महान साहित्यकार विश्व कवि रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने 1924 में चीन की यात्रा की थी। चीन और भारत के पुराने मैत्रीपूर्ण आवाजाही के इतिहास में इस महान कवि की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अपनी 50 दिन चीन यात्रा से भारत लौटने के बाद चीन औऱ भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान कदम ब कदम बढ़ता गया। चौदह अप्रेल उन्नीस सौ सैंतीस में शान्तिनिकेतन के विश्व भारती में चीनी भवन की स्थापना हुई। चीनी विद्वान श्री थेन य्वन शेन (Tan Yun-shan) चीनी भवन के प्रथम महा निदेशक था। श्री थेन य्वन शेन चीन भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाने में जो महत्त्पूर्ण योगदान किया वह बहुत ही सराहनीय थी। आज चीनी भवन चीन औऱ भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान साथ ही चीनी भाषा, साहित्य की पढ़ाई व अध्ययन का एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया।
मैं कोई खास आदमी नहीं हूँ। मैं भारत की एक छोटी सी गाँव में रहने वाला एक बेरोजगार आदमी हूँ, जहा गाँव की लड़किया आज भी अपनी माथे पर मिटटी की कलश लेकर दूर की तालाब से पानी लाते है, मछुआरो ने जाल फेक् कर मछलिया पकड़ते है। जहा आधुनिक भारत नहीं पंहुचा वहा पर सी आर आई की हिंदी रेडियो कार्यक्रम पंहुचा। मेरा बिचार है की चीन और भारत-दोनों देशो की साधारण जनता के बीच पारस्परिक समझ और मैत्री को आगे बढ़ाना मेरा कर्तव्य है । सी आर आई के नाम को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच और अधिक प्रसिद्ध करना मेरा और मेरा क्लब न्यू हरैजन रेडियो लिस्नेर्स क्लब की मकसद है। पिछले 8 अक्टूबर,2012 को जब मैं और मेरा क्लब की सक्रीय सदस्य मिस्टर देवशंकर चक्रबर्ती चाइना रेडियो इन्टरनेशनल के हिन्दी विभाग की नाम पर रक्तदान शिबिर का आयोजन किया था तब हमलोग स्वप्नों में भी नहीं सोचा था की इतना आदमी सी आर आई या चीन के नाम पर रक्त प्रदान करेंगे। मैं विश्वास करता हूँ कि रक्तदान जैसा इस जातीय मानविक कार्यक्रम के जरिये सी आर आई को बहुत ही मनुष्य के दिलो में पहुँचाने में सक्षम हुआ । जब कोई संकटजनक आदमी को हमारे इस रक्त के बिनिमय में मिलेगी उनकी पुन:-प्राण, तब याद करेगी सी आर आई हिंदी विभाग के नाम। मैं मानता हूँ की चीन-भारत मैत्री की प्रचार में हमारे तरह साधारण श्रोता को भी जोर कदमो से आगे आना चाहिए। चीन-भारत की मैत्री बंधन तब ही कदम कदम पर आगे बढेगा जब सभी श्रोता सही मायने में सी आर आई हिंदी विभाग के नाम पर प्रचार अभियान करेंगे।
आज चीन की इस पवित्र जमींन पर खड़ा होकर मैं सी आर आई की सभी उद्घोषक एबं उद्घोषिका को मेरा ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ। मैं विशेष रूप से विकास सिंह-जी एबं चंद्रिमा-जी की नाम लेना चाहूँगा , जिनके सहयोग के बिना मैं कभी इस मुकाम पर आ नहीं सकता एबं जिनकी बड़ी प्यार से मुझे और करीब खीच लाया। बिदाई के वक़्त पर रबीन्द्रनाथ ठाकुर की भाषा में बोलना चाहता हूँ-
"जाते वक़्त इस बात को बोल कर जाते है
जो देखा है, जो पाया है, तुलना इसका नहीं है
इस प्रकाश-समुद्र के बीच जो कमल खिला है
उसका भी मीठास पान किया है,
हो गया धन्य मेरा जीवन का
आभारी रहा प्यारा देश चीन का
जाते वक़्त इस बात को बोल कर जाते है....."