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12-10-16
2012-11-08 18:28:25

स्वीकार कीजिए नमस्कार, हेमा कृपलानी का। भाषाविदों का कहना है कि छोटे बच्चे किसी भी भाषा को आसानी से और जल्दी सीख लेते हैं। अगर हम कोई नई भाषा सीखना चाहते हैं तो इसकी शुरूआत जल्द करनी चाहिए। लेकिन हमारे बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि कुछ भी नया सीखने की उम्र नहीं होती। पर क्या सच में हमारे बड़े-बुजुर्ग अपनी कही बातों पर अमल करते हैं। जी हाँ, यहाँ बीजिंग के उपनगर छावयांग जिले के बड़े-बुजुर्ग, जिनमें से अधिकतर 60 वर्ष या उससे भी अधिक उम्र के हैं, ने साबित कर दिखाया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, और जहाँ तक नई भाषा सीखने की बात है तो वो भी कोई मुश्किल नहीं इन सीनियर सीटीजनस के आगे। ज़रूरत है तो सिर्फ इच्छाशक्ति की। जिसने प्रभावित किया है उनके विदेशी भाषा सीखाने वाले शिक्षक और शिक्षिकाओं को। तभी तो उनके शिक्षक कहते हैं- हमने इतने उत्साही छात्र पहले कभी नहीं देखे। जब एक संवाददाता उनकी कक्षा में गई तो एक बुजुर्ग अंकल के चेहरे पर खिली मुस्कान साफ दर्शा रही थी कि वे नई भाषा यानी अंग्रेजी भाषा जो उनके लिए विदेशी और द्वितीय भाषा सेकेंड लैग्वेज है, को सीख कितना संतुष्ट महसूस कर रहे हैं और फिर उन्होंने संवाददाता से अंग्रेजी भाषा में बात की- "हैलो, नाइस टू मीट यू, मॉइ इंग्लिश नेम इज समर विच इस द मीनींग ऑफ माय चाइनीज सरनेम शिया, शिया फंगज़, a retired communications technology engineer from air traffic management bureau." 70 वर्षीय शिया, Foreign language association of Tuanjiehu community. मई 2002 में जब घोषित हुआ कि 2008 में ओलम्पिक गेम्स बीजिंग में आयोजित किए जाएँगे, तब बीजिंग नगरपालिका के आह्वान पर कि स्थानीय लोगों को अंग्रेजी भाषा सीखनी चाहिए इसे ध्यान में रखते हुए छावयांग कम्युनीटी ने ओलम्पिक इंग्लिश क्लास के नाम से अंग्रेजी भाषा की कक्षाएँ चलानी शुरू कीं। शिया ने भी अंग्रेजी भाषा की कक्षा में दाखिला ले लिया और तब अंग्रेजी के साथ-साथ ओलम्पिक गेम्स के बारे में भी जानना शुरू किया। उन्हें तीन साल लगातार क्लास का मॉनिटर नियुक्त किया गया, उस दौरान वे तवान्जेहू में रहने वाले अपने कई सीनियर सीटीजनस को कक्षा में दाखिला दिलवाने के लिए लेकर आए। जुलाई 2005 में ओलम्पिक इंग्लिश एसोसिएशन ऑफ तवान्जेहू की स्थापना हो चुकी थी। इस बीच शिया को उनके उत्साह और जोश को देखते हुए इस एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया। वे अक्सर अपने सहपाठियों को एक-दूसरे से सीखने के लिए प्रोत्साहित करते और कहते कि आप सब एक बीज की तरह बन अंग्रेजी भाषा और ओलम्पिक गेम्स की जानकारी की नींव डाल सबको इससे फायदा पहुँचाए और अपनी जानकारियाँ साझा करें। 2008 बीजिंग ओलम्पिक गेम्स में शिया के साथ उनके अन्य 60 अंग्रेजी भाषा के सहपाठियों ने छावयांग जिले में बतौर स्वयंसेवी काम किया। उस दौरान आए पर्यटकों के पूछने पर वे उन्हें दिशा-निर्देश देते। शिया और उनकी टीम ने तवान्जेहू का नक्शा बनाकर उसमें वहां के प्रसिद्ध स्थलों के साथ-साथ सानलीटून बार स्ट्रीट जैसे पर्यटक स्थलों को और मार्गों, सड़कों के नाम चीनी और अंग्रेजी भाषा में मार्क किए और लिखे। 2004 को इन सब में शामिल हुए 70 साल के वांग योंगझ जो तवान्जेहू की पुरानी बाशिंदी हैं। उनका कहना है कि शुरूआत में उन्हें अंग्रेजी भाषा के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। हमारे कितने सहपाठियों ने शुरू से शुरू किया। हम सब तवान्जेहू पार्क में इकट्ठा होकर पेड़ के नीचे साथ बैठकर किताब पढ़ते थे। बीजिंग ओलम्पिक गेम्स के दौरान एक अच्छे स्वयंसेवी बनने के लिए हम अपनी अंग्रेजी अध्यापिका के हर दिशा-निर्देशों का पालन करते और घर जाकर बहुत मेहनत करते। हमें क्रीडा-स्थलों के अंग्रेजी नाम याद करने में बहुत तकलीफ़ होती थी। वांग ने बताया कि जब हमें नगरपालिका शिक्षा आयोग से बीजिंग ओरल इंग्लिंश के लेवल 1 और 2 के जब प्रमाणपत्र मिले तो हमें बहुत खुशी हुई। 2008 बीजिंग ओलम्पिक गेम्स के समापन के बाद ओलम्पिक इंग्लिश एसोसिएशन ने अपना नाम बदलकर फॉरेन लैग्वेज एसोसिएशन रख लिया। हाल के वर्षों में इस कम्युनीटी ने प्रशासनिक संस्थाओं के साथ मिलकर 25 अंग्रेजी कक्षाएँ और दो अंग्रेजी कार्नर जो अधिकतर सेवानिवृत लोगों के लिए हैं। 1000 से ज्यादा लोग जो तवान्जेहू से दूर रहते हैं वे भी इन कक्षाओं में आकर पढ़ने लगे हैं। एसोसिएशन की सैकरेटरी ने बताया कि हर हफ्ते सोमवार से रविवार हम सीखने के इच्छुक लोगों के लिए अलग-अलग स्तर की कक्षाएँ चलाते हैं। लगभग 40 छात्र हर दिन यहाँ पढ़ने आते हैं, उनमें से अधिकतर लोगों की आयु 60 वर्ष से ज्यादा है। ये कक्षाएँ मुफ्त में चलाई जाती हैं, इनकी कोई फीस नहीं लगती और हमारे सारे शिक्षक स्वयंसेवी हैं। वे भी अधिकतर या तो रिटायर हो चुके हैं या विश्वविद्यालयों, हाई-स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाते हैं या तो चीन में रहने वाले विदेशी भी यहाँ आकर भाषा सीखाते हैं। एक और ऐसी ही छात्रा हमें मिलीं छन गुईरोंग, उन्होंने बताया मेरा अग्रेंजी नाम एन्ना है और मैं विदेश में एक साल रह कर आई हूं। उस समय मैं अंग्रेजी वर्णमाला को पहचानती तक नहीं थी। मेरा सौभाग्य है कि, मैं कोई भी नई चीज़ जल्दी सीख लेती हूँ और नई भाषा बोलने से घबराती या शर्माती नहीं। बीजिंग वापस लौटने के बाद मैंने इन कक्षाओं में आना शुरू किया और बीजिंग ओरल इंग्लिंश प्रमाणपत्र परीक्षा के लेवल 2 में उत्तीर्ण हुई। रिटायरमेंट के बाद इन अग्रेंजी कक्षाओं की वजह से हमारे जीवन को नई दिशा और मकसद मिला है। हम यहाँ आकर केवल अपने अध्यापकों से भाषा नहीं सीखते बल्कि एक-दूसरे के निजी जीवन के अनुभवों को भी साझा करते हैं और अपने हम उम्र के साथ बैठकर पढ़ने और सीखने का भी लुत्फ उठाते हैं। हमने कक्षाओ में जाकर देखा दो अमेरिकन अध्यापक सुबह के लगभग 30 मिनट अपने छात्रों के साथ बिताते हैं। यह कक्षा इन दोनों अध्यापिकाओं के लिए बेहद खास हैं क्योंकि गोल्डबर्ग अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए ताएपे जा रही है और ली पहली बार 30 बड़े बच्चों की कक्षा में आईं। गोल्डबर्ग ने यहाँ 2011 में पढ़ाना शुरू किया। उसे इन कक्षाओं के बारे में यूँ ही एक दिन अचानक पता चला जब वह "के एफ सी" में एक दिन बैठी थी और उसकी मुलाकात एक युवा चीनी लड़की से हुई जो खुद के लिए भाषा-साथी तलाश रही थी। उसने उन्हें जोर देकर कहा कि तुम इन कक्षाओं में जाकर पढ़ाओ। पिछले एक साल से गोल्डबर्ग हर बुधवार सुबह 10 से 11 बजे तक यहाँ पढ़ाती है, हालांकि, उसे अपने घर से तवान्जेहू पहुँचने में एक घंटे का समय लग जाता है। उन्होंने बताया कि मैं जैसे ही कक्षा में आती हूँ, मेरे सभी उत्साही बुजुर्ग छात्र मेरा प्यार से स्वागत करते हैं और मुझे घेर लेते हैं और पिछले एक हफ्ते मैंने क्या किया,कहाँ गई सब पूछते हैं। वे सब इतने उत्तेजित, उत्साही हैं कि उन्हें देख मैं भी प्रोत्साहित होती हूँ और शायद यही कारण है कि मैं पिछले एक साल से यहाँ पढ़ाने आती हूं। वे कहती हैं कि मैं उम्मीद करती हूँ कि ताएपे से अपनी पढ़ाई खत्म कर मैं जल्द बीजिंग वापस लौट सकूँ। इसी कक्षा में हमारी मुलाकात हुई ली से। ली, जो इन छात्रों की अमेरीकन टीचर हैं, पिछले कई वर्षों से किंडरगार्टन से लेकर विश्विद्यालय के छात्रों को पढ़ाती आई हैं ने बताया कि उनकी मुलाकात पिछले साल एक दिन इन वरिष्ठ नागरिकों के समूह से तवान्जेहू पार्क में हुई जहाँ वे सब अंग्रेजी कार्नर में अपनी इंग्लिश क्लास के लिए आए थे। उन्होंने उनकी मुलाकात समर से करवाई और समर से इन कक्षाओं के बारे में पता चला। इस तरह छात्रों को पढ़ाना किसी भी अध्यापक का सपना होता हैं क्योंकि वे सब अपनी इच्छा से प्रेरित होकर यहाँ पढ़ने आते हैं उन पर किसी का दबाव नहीं होता कि आपको प्रदर्शन करके दिखाना है। उनके लिए कोई गाओखाओ जैसी परीक्षा नहीं या उन्हें कोई नौकरी नहीं ढ़ूँढ़नी। वे बस पूरा मज़ा लेकर इस भाषा को सीखते हैं। ली बताती हैं, मैंने इनके जैसे उत्साही लोग पहले कभी नहीं देखे। क्लास के दौरान कभी-कभी वे अपनी कुर्सियों से कूद कर उठते हैं और जो़र-ज़ोर से अभ्यास करना शुरू कर देते हैं या गाना शुरू कर देते हैं, जो भी उन्होंने अपनी क्लास में सीखा होता है। अपनी पहली कक्षा के बाद ली ने सोचा कि क्यों न मैं अपने चाइनीस मिडल स्कूल के विद्यार्थियों को इस कक्षा में आमंत्रित करूँ और यह दिखाऊँ कि देखो ये तुमसे कितने बड़े हैं लेकिन इन्होंने साबित कर दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और तुम सबको इनके जोश और उत्साह से कुछ सीखना चाहिए। ली कहती हैं कि आवासीय समुदाय में इस तरह की रंगीन गतिविधियाँ एक आवश्यक औषधि का काम करती हैं जो एक व्यक्ति को हमेशा युवा बनाए रखता है। हमें समाज में हर किसी के साथ घुल-मिल कर रहना सीखाते हैं और जब हम अपने इन्टरेस्ट को दूसरों के साथ साझा करते हैं तो वो हमें, हमारे जोश-उत्साह और बचपन को हमेशा जिंदा रखता है। ली यहाँ अमेरीका के लोगों के साथ तुलना करते हुए बताती हैं कि वहाँ के लोग इस उम्र में अकेले और तन्नहा रह जाते हैं उसके बनीसबत यहाँ के सीनियर सीटीजन सब एक साथ मिलकर रहते हैं, कम्युनीटी स्पिरीट उनमें जिंदा है ना केवल अंग्रेजी कक्षा के दौरान बल्कि रोजमर्रा के जीवन में भी जहाँ वे सब रोज़ एक साथ मिलकर पार्क में या सार्वजनिक स्थानों पर मिलकर व्यायाम करते हैं या नृत्य। हम सब एक दिन उम्र के उस पड़ाव पर होंगे जहाँ आज से सब हैं लेकिन हमें इन सब से बहुत कुछ सीखना होगा और उम्मीद करती हूँ कि हम भी इस कम्युनीटी के लोगों की तरह अपना जीवन बिता सकें। अपने लक्ष्य को पाने का सबसे अच्छा तरीका तो यही है कि हम सबके साथ अपने अनुभव साझा करें और सबके साथ समय बिताएँ। सीनियर सीटीजनस के साथ 2 घंटे व्यतीत करने बाद मैं इनके जोश-उत्साह को समझ पाई और इस कारण मैं तहे दिल से इन्हें प्यार करती हूँ और इनका सम्मान भी।

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तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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