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छिंगदाओ मेरी नज़र से........डे फोर
2012-09-05 18:18:29
दोस्तों, हमारे दिन की शुरूआत भारतीय रेस्टोरेंट फातिमा से हुई। वहाँ हमारी मुलाकात रेस्टोरेंट के मालिक शमीम जी से हुई जो छिंगदाओ में गत सात सालों से भारतीय रेस्टोरेंट चला रहे हैं। उन्होंने हमें छिंगदाओ के बारे में और वहाँ रहने वाले कुछ भारतीय परिवारों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि यहाँ का जीवन बीजिंग, शांगहाई या ग्वांग्चो की तरह तेज़ रफ्तार से नहीं चलता। यहाँ के लोग बहुत ही शांत, मददगार, कूल और पीसफूल स्वभाव के हैं। मुझे भी ऐसी ही लगा और दिल चाह रहा है कि यहीं बस जाऊँ। खैर, रेस्टोरेंट में हमारी मुलाकात दिल्ली से आए कुछ व्यापारियों से भी हुई। जिनका कहना था कि चीन के लोगों की मेहमाननवाज़ी के क्या कहने, वे हमारी चीन यात्रा को सुखद बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ते हालांकि, हमें शाकाहारी भोजन की कमी खलती है लेकिन चीनी लोग उसे भी अपनी तरफ से पूरी करने की कोशिश करते हैं। मैंने तो छिंगदाओ में भी भारतीय भोजन का मज़ा लिया और चल पड़े चीन का एक और नायाब अजूबा देखने।

छिंगदाओ ब्रिज –जिसके बारे में मैंने आपको पहले भी बताया था। यह ब्रिज झिआओझोअ खाड़ी से होकर गुज़रता है और हुंगदाओ द्वीप को आपस में जोड़ता है। इस ब्रिज पर तीन प्रवेश-निकास मार्ग हैं। हम समुद्र के पानी में 80 मीटर नीचे बनी सुरंग से होकर हुंगदाओ द्वीप पहुँचे। सुरंग से गुजरते हुए आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप पानी के नीचे है और इस पर बने ब्रिज से जा रहे हैं। यह ब्रिज 30 जून 2011 को खोला गया था और इसने छिंगदाओ और हुंगदाओ के बीच सड़क की दूरी को बहुत कम कर दिया है। इसकी लम्बाई 42.5 कि.मी है जो इसे विश्व का सबसे लम्बा समुद्री ब्रिज बनाता है। इस पुल को बनाने में केवल चार वर्षों का समय लगा और इसके निर्माण में कुल चार लाख पचास हज़ार टन इस्पात और 23 लाख घन मीटर कांक्रीट का उपयोग किया गया था। इस पुल का डिज़ाइन इस प्रकार का है कि यह भूकम्पों, चक्रवातों, और जहाज़ों की टक्कर को झेल सके। यह पुल पाँच हज़ार स्तम्भों पर खड़ा है और डॅक की चौड़ाई 35 मीटर है जिस पर कुल छः लेनें और दो शोल्डर बने हुए हैं, और इस पुल की कुल निर्माण लागत 10 अरब यूआन (1.5 अरब अमेरिकी डालर) है। हमने तीन बार 50 युआन ब्रिज टोल दिया और टैक्सी से लगभग एक घंटे का समय लगा इसे देखने में। उसके बाद जब छिंगदाओ आए तो टैक्सी चालक हमें छिंगदाओ की मुख्य सड़कों से होता हुआ गलियों से घुमाता हुआ लेकर जा रहा था जहाँ हमें असली छिंगदाओ देखने का मौका मिला। देखने में पूरा शहर ऐसे लगता है मानो आप हरे-भरे पेड़ों के बीच चल रहे हैं और कुछ दूरी पर यूरोपीयन शैली का एक बंगला दिखेगा फिर पेड़ों-झाड़ियों के झुरमुट से होते हुए कुछ दूरी पर एक और बंगला। पूरे शहर में हरियाली छाई हुई हैं। इन्हीं के बीच हमने देखा जर्मन काल में स्थापित नौसैनिक केन्द्र जो आज भी वैसा ही दिखता है। कुछ और यूरोपीयन शैली की इमारतें जिन्हें अब पोस्ट आफिस या सरकारी दफ्तरों में तब्दील कर दिया गया है। मुझे ऐसे लगने लगा मानो मैं चीन में ही यूरोप के मज़े ले रही हूँ। शाम का समय हो गया था तो हम समुद्र तट पर गए और वहाँ भी समुद्र के बीच बने एक छोटे ब्रिज पर हमने ढेरों फोटो खींचे और इसी ब्रिज पर लोग शंख-सीपों से बनी सुंदर सजावट के काम आनी वाली चीज़ें बेच रहे थे। अब मैं शॉपिंग न करूँ ऐसा तो हो ही नहीं सकता। ढेर सारी शॉपिंग करने के बाद अंजली ने कहा अब हम एक बाज़ार जा रहे हैं। एक बार फिर शॉपिंग..........हुर्रे.. हुर्रे.. हुर्रे...। टैक्सी में बैठ करीब 10 मिनट की दूरी पर था- थाई दोंग मार्केट। छिंगदाओ का विश्व प्रसिद्ध बाज़ार। यह कम से कम 8-9 कि.मी लम्बा बाज़ार था जिसकी खासियत है हर रोज़ शाम 6 से 11 बजे तक सड़क पर लगने वाली दुकानें। इसी सड़क पर कई ब्रैंडिड दुकानें, होटल, रेस्टोरेंट, सिनेमा, शॉपिंग मॉल और साथ में कुछ छोटी दुकानें और उन के बाहर लगी फुटपाथ पर दुकानें जहाँ कपडे़, जूते, सजावट का सामान, पर्स और ढेरों चीज़ें। यह ऐसा बाज़ार है जहाँ महिलाएँ अपना पूरा दिन बिता सकती हैं और उसके बाद भी कहेंगी –ओह, मैंने तो कुछ खरीदा ही नहीं। इसे देखने के चक्कर में हमने रात के दस बजे तक खाना नहीं खाया और फिर हम गए रेस्टोरेंट में जहाँ शांन्दोंग शैली का भोजन था और सी-फूड की बेइंतहा वैराइटी। अंजली को वहाँ बहुत अच्छा लगा और मैंने मज़ा लिया डम्पलिंग्स का। आज का दिन हमारा छिंगदाओ में आखिरी दिन था। छिंगदाओ- तटीय शहर जो प्रगति के पथ पर बढ़ चला है। एक तरफ आधुनिकता, तो एक तरफ लाओशान पहाड़ और एक तरफ नीला-साफ-समुद्र इन तीनों के संगम से बना छिंगदाओ चीन का एक खुशहाल इंटरनेशनल सीटी बन गया है। आधुनिक शहर के साथ प्राकृतिक वातावरण और खुशहाल लोग जहाँ कोई कमी नहीं वहाँ भला कौन नहीं रहना चाहेगा। लेकिन हमें कल जाना है वापस बीजिंग और अब आपसे अगली मुलाकात होगी........बीजिंग में। ढेरों सुनहरी यादें लिए हमने छिंगदाओ से जा रहे हैं। तो मिलते हैं बीजिंग में तब तक के लिए जाएजिएन(बॉय-बॉय)।

हेमा कृपलानी

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