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12-08-07
2012-08-22 19:33:40

दोस्तों, अगस्त का महीना, पड़े सावन के झूले, आया तीज का त्योहार, आज है तारीख सात, दिन मंगलवार और आपका हमारा साथ न्यूशिंग स्पेशल पर हेमा कृपलानी के साथ। वाह-वाह, क्या कहना हैं न मेरा। दोस्तों, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। बिजली गुल होकर आई वापस, अन्ना जी ने किया खत्म अनशन, ओलम्पिक पर है सबका ध्यान, यहाँ बीजिंग ने भी देखी 60 सालों बाद भारी बरसात, मौसम ने भी ली अंगड़ाई और जहाँ हो रहे इतने बदलाव वहाँ क्यों न करें हम कुछ खट्टी-मीठी बातें। ओह हो, आप सोच रहें होंगे कि आज ज़रुर मेरी तबीयत खराब है जो मैं ऐसी बातें कर रही हूँ। दोस्तों, न्यूशिंग स्पेशल के जरिए आप सब के साथ एक रिश्ता बन गया है, आप सब मुझे अपने से लगने लगे हैं और शायद मैं भी, इसलिए अब आप से दिल खोल कर बातें करने का मन करता है। आपका भी करता होगा न, कभी-कभी किसी अपने के साथ दिल खोल कर, जी भरकर बातें करने का। सुनने में, कहने में बड़ा अजीब-सा लगता है और हम यहीं सोचकर खुद को भी कभी-कभी बहला लेते हैं कि हम तो अपने जीवन साथी या माता-पिता या बहन-भाई या दोस्त-सहेली से अपने दिल की बात कह देते हैं या बेझिझक कह सकते हैं। लेकिन एक बार फिर से गौर कीजिए और सोचिए क्या सच में ऐसा है, नहीं शायद हमेशा नहीं। कई बार हम कुछ बातों को अपने अन्दर ही रखते हैं, किसी के साथ शेयर नहीं करते, हमारा दिल चाहता है कि हम सब कुछ कह दें लेकिन इसे झिझक कहिए, डर, संकोच या कुछ और लेकिन कई बार हम जिसे अपना सबसे अच्छा साथी मानते हैं, उससे भी सब कुछ नहीं कह पाते। और हम में से कितने ऐसे लोग भी हैं जिनके कहने को तो कई दोस्त हैं, लेकिन वे फिर भी तन्नहा हैं। मनोविशेषज्ञों का कहना है, हर इंसान के मानसिक स्वास्थ्य, संतुलन के लिए बहुत ज़रुरी है कि वह किसी ऐसे अपने से दिल खोलकर सारी बातें कहें जिस पर वह पूरा विश्वास करता हो। अब सवाल यह उठता है कि क्या आज के समय में हम वाकई किसी पर पूरी तरह विश्वास कर सकते हैं। क्या आज भी ऐसे लोग हैं जो हमारे सिक्रेटस को अपने तक ही रखेंगे, क्या हमारी दिल की बातों या सिक्रेटस या मन की उलझनों को सुन मज़ाक नहीं बनाएँगे। दूसरा सबसे बड़ा सवाल उठता है क्या आजकल इतना समय या सब्र है किसी अपने के पास भी जो किसी की बातों को सुने, समझे और केवल इतना ही करें क्योंकि कभी-कभी सिर्फ ज़रुरत होती है किसी के दो कोनों की जो सिर्फ सुनें और कोई सलाह नहीं-मशविरा नहीं सिर्फ सुनें। आए दिन अखबारों, टी.वी न्यूज़ चैनलों में ऐसी खबरें पढ़ने, सुनने, देखने को मिलती हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अपने ही माने जाने वाले करीबी दोस्तों ने उनके सिक्रेटस का खुलासा किया और 90 प्रतिशत से ज़्यादा क्राइम केसिस में किसी अपने करीबी का ही कोई-न-कोई कनेक्शन निकलता है क्योंकि वे आपको जितना अच्छे से जानते हैं उतना और कोई नहीं। अजनबियों से दूर रहो, उनसे बात मत करो, ऐसा हमें कहा जाता है लेकिन फिर भी सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाने वाला कोई अपना ही करीबी निकलता है। तो किस पर करें विश्वास, दुनिया की जनसंख्या लगातार तेज़ गति से बढ़ रही है और हम उतनी ही तेज़ गति से अकेले पड़ते जा रहे हैं। एक में भी तन्नाह और लाखों में भी अकेले रह गए हैं, हम। आप सब को यह गीत तो याद ही होगा, देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान। तो क्या करें ऐसा जो आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ कर जाएँ,एक बेहतर समाज बनाकर जाँए, ज़रुरत है खुद को बदलने की, हम अपने आप से शुरुआत कर सकें किसी ऐसे अपने की बात सुनकर उसकी मदद करें, न की मुखौल करें, न मज़ाक उड़ाएँ और न ही नमक-मिर्च लगा हँसी-ठिठोला करें। किसी अपने को अपने दो कान दे सकें मतलब केवल सुन सकें, निस्वार्थ रुप से दिल हल्का करने का मौका दें किसी अपने को। कहीं से शुरुआत होती है, तो क्यों न वो हम बनें। देखा मैंने अभी कुछ देर पहले कहा था ना आप सब मुझे अपने लगते हैं और आप सब से मैं अपने दिल की बात बेझिझक कह सकती हूँ। तो लो मैंने कह दी। चलिए, बढ़ते हैं आगे और बात करते हैं।

'मीठी' बीमारी से कैसे बचें। हर दस सेकेंड में दुनिया भर में किसी न किसी की डायबिटीज़ यानी मधुमेह से मृत्यु हो जाती है। उन्हीं दस सेकेंड में किन्हीं दो लोगों में इसके लक्षण पैदा हो जाते हैं। जी हां , नाम बेशक शुगर है लेकिन यह बीमारी धीमे जहर की तरह शरीर को खोखला करती है। डायबिटीज़ जानलेवा है लेकिन समय रहते इस पर क़ाबू पाया जा सकता है। लाइफस्टाइल में सुधारकर इस बीमारी को खुद से दूर रखा जा सकता है।डायबीटीज या शुगर लाइफस्टाइल संबंधी या वंशानुगत बीमारी है। जब पैंक्रियाज नामक ग्लैंड शरीर में इंसुलिन बनाना कम कर देता है या बंद कर देता है , तो यह बीमारी हो जाती है। इंसुलिन ब्लड में ग्लूकोज को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसकी मदद के बिना सेल्स शुगर ( ग्लूकोज ) को एनर्जी के लिए इस्तेमाल नहीं कर पाते और यह बढ़ा हुआ शुगर लेवल डायबीटीज के रूप में सामने आता है। आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण प्रकट होने में 10-15 साल लग जाते हैं। वैसे , 45-50 फीसदी मरीज वे होते हैं, जिनके परिवार में पहले से किसी को डायबीटीज रही हो। डायबीटीज के मरीजों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि ब्लड शुगर को कम करती है- दालचीनी। सामान्यतः दालचीनी का प्रयोग मसालों के रूप में किया जाता है| दालचीनी एक मसाला ही नहीं, बल्कि एक औषधि भी है। दालचीनी कैल्शियम और फाइबर का एक बहुत अच्छा स्रोत है। दालचीनी मधुमेह को सन्तुलित करने के लिए एक प्रभावी औषधि है, इसलिए इसे गरीब आदमी का इंसुलिन भी कहते हैं। दालचीनी ना सिर्फ खाने का जायका बढ़ाती है, बल्कि यह शरीर में रक्त शर्करा को भी नियंत्रण में रखता है। जिन लोगों को मधुमेह नहीं है वे इसका सेवन करके मधुमेह से बच सकते हैं। और जो मधुमेह के मरीज हैं वे इसके सेवन से ब्लड शुगर को कम कर सकते है। यह बात एक रिसर्च में निकलकर आई है|

रिसर्च में कहा गया है कि अगर आप मधुमेह रोगी हैं तो प्रतिदिन सुबह चाय के बजाय 1 कप पानी में दालचीनी पाउडर को उबालकर, छानकर पियें। इसे कॉफी में भी मिलाकर पी सकते हैं। इसे सेवन करने से मधुमेह में लाभ होगा। ध्यान रहे दालचीनी की मात्रा कम होनी चाहिए क्योंकि ज्यादा नुकसानदेह हो सकती है| अगर आपको भूख नहीं लग रही है तो रोजाना तीन ग्राम दालचीनी लेने से न केवल रक्त शर्करा की मात्रा कम होती है, बल्कि सही से भूख भी लगने लगती है। दालचीनी का सेवन करने से पहले एक बार चिकित्सक से परामर्श जरूर ले लें, क्योंकि जिसका लीवर कमजोर होता है उसके लिए दालचीनी काफी नुकसानदेह होती है|

दोस्तों, आज आपको एक मज़ेदार खबर सुनाती हूँ। आप सबने तो शादी-विवाह के मौके पर कई जोकस पढ़े होंगे, सुने होंगे जैसे कि दुल्हन की माँ विदाई के समय क्यों रोती है, वह इसलिए कि वह अपनी बेटी को रो-रो कर बताती हैं, बेटी तूने भी आज वहीं गलती कर ली जो कुछ साल पहले मैंने की थी। पर क्या आपने कभी सुना है कि दुल्हन अपनी शादी से पहले दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेती है और उसमें जीतना चाहती है। आप सोच रहे हैं न दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेती है ताकि शादी के बाद शादी से भागने के लिए काम आ सकें। जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। दुल्हनों की दौड़ कम खर्च के लिए होती है। जी, क्या ईस्ट क्या वेस्ट, सभी जगह लोग शादी के खर्चे से त्रस्त हैं। शायद यही वजह है कि इस खर्च से बचने के लिए लोग कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। सर्बिया के एक शहर में हर साल एक अनोखी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें लड़कियों को दुल्हन के लिबास में सज-धज कर दौड़ लगानी होती है। बड़ी संख्या में लड़कियां इस समारोह में भाग लेती हैं। इस प्रतियोगिता को जीतने वाली लड़की की शादी का खर्च आयोजकों द्वारा उठाया जाता है। हर साल इस दौड़ प्रतियोगिता में सैकड़ों लड़कियां भाग लेती हैं।

जो लड़कियां यह प्रतियोगिता जीत नहीं पातीं, वे अपनी शादी को अगले साल तक टाल देती हैं। रेस जीतने के लिए साल भर कड़ी मशक्कत करती हैं, जिससे वे भी मुफ्त में भव्य शादी कर सकें। है न बढ़िया आइडिया। अब अगर आप भी ऐसा कुछ करना चाहते तो देर मत कीजिए, लेकिन हाँ, हमें बताना मत भूलिएगा कि शादी में कम खर्चा हो इस के लिए आपने अपनी तरफ से क्या किया और हम बताएँगे अपने सभी श्रोताओं को आपकी कहानी आपकी जुबानी।

चलिए, अब बात करते हैं फैशन की। आपको याद है 80 के दशक में महिलाओं के बीच कफतान बहुत मश्हूर था। कफतान गाउन जिसकी बाहें ढीली-ढीली होती थी और कमर पर गाउन के कपड़े की बेल्ट बाँधी जाती थी। देखने में बिल्कुल ऐसा लगता था कि बस किसी कपड़े में गर्दन डालने के लिए गोल कटिंग की गई है और बाहों की जगह खुला रखकर बाकी दोनों तरफ से सीधे-सीधे सिलाई लगा दी है। बस-बस बिल्कुल ठीक सोच रहे हैं आप। जी, वही कफतान अब वापस लौट आया है। गाउन के रुप में नहीं बल्कि जीन्स-पैंट या लैगिंग के ऊपर पहने जाने वाले कुर्ते के रुप में, या छोटे टॉप की तरह। और कमर पर बेल्ट चाहे तो बाँधे चाहे न भी। कफतान में सिल्क और नेट का प्रयोग अधिक दिख रहा है। कफतान में गाढ़े रंगों का प्रयोग हो रहा है जैसे महरून, गाढ़ा नीला और नारंगी आदि। वहीं सूती में भी हल्के रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जैसे हलका गुलाबी, नीला, सफेद। और प्रिंट में तो बहुत बोल्ड प्रिंटस दिख रहे हैं कभी-कभी तो देखने में लगता है घर की कोई रेशमी चादर उठाकर उसका कफतान बना दिया गया है। लेकिन पहनने वालों पर खूब फब रहा है-कफतान। मुझे याद है मेरी दादी को अपने पुराने कपड़ों को सहेज कर रखना अच्छा लगता था, पूछने पर वे कहा करती थीं- बेटा घूम-फिर कर पुराना फैशन वापस आता ज़रुर है। इसलिए जो कपड़े मैंने कभी पहने थे वो तुम भी कभी फैशन के नाम पर ज़रुर अपनाओगी।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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