Web  hindi.cri.cn
12-07-31
2012-08-22 19:22:36

मैं हेमा कृपलानी आपकी दोस्त फिर लेकर हाजिर हूँ, आपका अपना साप्ताहिक कार्यक्रम न्यूशिंग स्पेशल। दोस्तों, भारत से चीन घुमने आईं मेरी एक सहेली चीन को देखकर उसकी तारीफ करते हुए नहीं थक रहीं। क्या ऊँची-ऊँची बिल्डिंगस, लंबी-चौड़ी, साफ-सुथरी सड़कें, आलीशान मकान, रात को चमचमाती लाइटों से रोशन शहर। सड़कों पर सुंदर-सुंदर कपड़े पहने लोग। क्या अनुशासन मेंटेंन किया है, इस देश ने। यहाँ रहकर यह सभी बातें बड़ी आम-सी लगती हैं, क्योंकि ये सब तो हम रोज़ ही देख रहे हैं। लेकिन मेरी सहेली का एक वाक्य जो मेरे दिमाग मैं बार-बार घूम रहा था- सड़कों पर सुंदर-सुंदर कपड़े पहने लोग। जी, आपको भी अजीब लग रहा है न। क्या कोई उत्सव, त्योहार था जो सभी सजे-धजे सड़कों पर निकले। ना जी, ऐसा कुछ नहीं था, तो? सस्पैंस जैसी कोई बात नहीं। यहाँ सड़क पर, ट्रेन में, बस में, शॉपिंग मॉल में, किसी भी पब्लिक प्लेस पर आपको सभी लोग संवरे बाल, साफ-सुथरे, इस्त्री किए कपड़ों में नज़र आते हैं। सभी आर्थिक संपन्न हो ऐसा तो नहीं है, इसलिए तो यहाँ सड़कों पर, ट्रेनों में या बसों में किसी को भी देखकर आप पहचान नहीं सकते कि ये कोई अधिकारी है या सफाई कर्मचारी। शायद यहीं कारण भी है कि यहाँ किसी काम को छोटा-बड़ा के ब्रैकेट में नहीं रखा जाता। हर काम को इज़्जत दी जाती है और हर काम करने वाले को भी। आबादी और अमीरी-गरीबी के आकड़े लेकर बैठे तो चीन-भारत एक-दूसरे के आगे-पीछे चलते हैं। तो फिर क्या अंतर है, ऊँची-ऊँची बिल्डिंगस, लंबी-चौड़ी सड़कें, आलीशान मकान तो भारत में भी हैं। ज़रूरत है, अपनी छवि को बनाए रखने की। अपने आप को मेंनटेन करने की, अब सवाल उठता है लोगों के पास पैसे नहीं मेंनटेन क्या खाक करेंगे। ऐसा नहीं की यहाँ गरीबी नहीं, यहाँ परेशानियाँ, दुःख-तकलीफ नहीं। उसके बावजूद यहाँ के लोगों को देखकर आपको इसका एहसास नहीं होता। बड़े-बुजुर्गों का कहना है- सूरत से ज्यादा सीरत मायने रखती है। सीरत देखो सूरत मत देखो। लेकिन क्या आपको नहीं लगता सीरत जानने के लिए सूरत से होकर गुजरना पड़ता है। प्रैसंटेशन बहुत मायने रखती है। और वैसे भी कहा जाता है न अगर आप खुद को बना-संवार कर रखते हैं तो आप खुद से प्यार करने लगते हैं आप में एक अलग तरह का आत्मविश्वास जागता है और इसे फील गुड फैक्टर कहते हैं। यू फील गुड यू थिंक गुड। अच्छा दिखोगे तो अच्छा सोचोगे। देश उसके लोगों से बनता है और लोग देश की छवि बनाते हैं। आज चीन में आने वाले पर्यटक यहाँ के लोगों को देखकर समझते हैं कि यहाँ सब संपन्न हैं। ये उन्हें भले ही उनके साधारण,सस्ते लेकिन साफ-सुथरे, इस्त्री किए कपड़े देखकर उसका अंदाजा लगाते हैं। यहाँ चाहे घर में काम करने वाली आई हो या दफ्तर में, सड़क पर सफाई कर्मचारी या दफ्तर में काम करने वाले क्लर्क, सैकरेटरी या अधिकारी सब खुद को अप-टू-डेट रखते हैं। यह है फर्स्ट इम्प्रैशन की बात, लोगों का स्वभाव कैसा है..... ये सब बाद की बातें हैं। मैं चाहूँगी कि मेरी सहेली इस समय मेरी बात सुन रही हो और वो जैसा बढ़िया फर्स्ट इम्प्रैशन चीन का लेकर गई है वैसा ही पर्यटक भारत का बढ़िया इम्प्रैशन लेकर अपने घर लौटे। चलिए, अब कार्यक्रम में आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं। दोस्तों, कार्यक्रम में आगे बात करते हैं इस खबर के बारे में...................................................

मां बनने के लिए सही जगह नहीं भारत

एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में माओं की स्थिति से संबंधित सूचकाक में 80 विकासशील देशों में भारत 76वें स्थान पर है। भारत से नीचे के पायदान पर अफ्रीका महाद्वीप के कुछ गरीब देशों ने अपनी जगह बनाई है।

बाल अधिकार से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था सेव द चाइल्ड ने अपनी सालाना रिपोर्ट द स्टेट ऑफ व‌र्ल्ड्स मदर 2012 पेश की है। माओं की स्थिति के मामले में भारत पिछले साल के मुकाबले इस साल एक पायदान नीचे खिसक कर 76वें स्थान पर आ गया है। यहाँ 140 महिलाओं में से एक की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। वहीं चीन में 1,500 और श्रीलंका में 1,100 महिलाओं में से एक की मौत प्रसव के दौरान होती है।

सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में आधे से भी कम यानी महज 49 प्रतिशत महिलाएं गर्भ निरोधक का इस्तेमाल करती हैं और महज 53 फीसदी मामलों में प्रसव के दौरान किसी कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ता की सहायता ली जाती है। इन आकड़ों के साथ भारत तेजी से उभरते विकासशील देशों में निचले पायदान से पाचवें स्थान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सबसे चिंताजनक स्थिति तो बच्चों में कुपोषण की है। यहाँ पाच वर्ष से कम आयु के बच्चों का वजन औसत से कम है। वे कुपोषण के शिकार हैं। सेव द चाइल्ड इंडिया के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी थॉमस कैंडी ने कहा कि हालांकि भारत माओं के स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में काफी प्रयास कर रहा है, लेकिन ये सहूलियतें किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाने में सफल नहीं हो पाई हैं।

चलिए, चलते हैं आगे और बात करते हैं। मोनीहेय के बारे में। इस शब्द का मतलब होता है कि आप खुद को काले रंग में रंगों। जितना अजीब ये सुनने में लग रहा है, उतना ही अजीब ये त्योहार है जो युनान प्रांत की चंगयुआन वा स्वायत्त प्रांत में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार उस क्षेत्र में रहने वालों के लिए खुशहाली और समृद्धि लेकर आता है। वा लोग सांवला रंग पसंद करते हैं, उनके लिए सांवली त्वचा का मतलब लगन और अच्छा स्वास्थ्य है। अगर कोई वा पुरुष किसी गोरी लड़की से शादी करता है तो लोग उसका मज़ाक उडा़ते हैं और सुस्त पत्नी कहकर चिढ़ाते हैं। वा लोगों की पारंपरिक पोशाक का रंग भी काला होता है। प्राचीन समय में तो वा लोग अपने दाँतों को भी काले रंग से रंगते थे क्योंकि उनका मानना था कि उनके काले दाँत उनकी सांवली त्वचा से मिलते-जुलते होने चाहिए। वा लोगों के यहाँ एक प्रसिद्ध कहावत है- साथ में नाचने के लिए कदम-से-कदम मिलाना ज़रुरी है और साथ में हंसने के लिए सबके दांत काले होना भी ज़रुरी है। इसलिए मोनीहेय त्योहार के दौरान जो जितना काले रंग से रंगा होता है उसे सबसे ज़्यादा सुंदर माना जाता है। लोंग-ला-लेई वा जाति की भाषा में एक वाक्य है जिसका मतलब होता है- आप जितने काले उतने ही आप खूबसूरत। अब अगर ये त्योहार है तो जाहिर है कि इसके पीछे कोई न कोई इतिहास और कहानी जुड़ी होगी और ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हम आपको उसके बारे में न बताएँ। तो इस त्योहार के पीछे ये कहानी है कि प्राचीन काल में वा जाति के लोग अक्सर जानवरों की खाल को उतार कर अपने शरीर को ढकने के लिए इस्तेमाल करते थे या फिर जंगली जानवरों से बचने के लिए नग्न ही दौड़ते थे। लेकिन जब वे नग्न रहते थे तो उनके लिए सूरज की तेज़ रोशनी को सहना और मक्खियों से बच पाना नामुमकिन हो रहा था और इस कारण उन्हें बहुत तकलीफ झेलनी पड़ रही थी। अपनी इस परेशानी का समाधान ढ़ँढूने के लिए उन्होंने बैल को देखा वह किस तरह पानी में लोट-पोट करती गीली रेत में सन जाती। वा जाति के लोगों को झट इसका समाधान मिल गया और वे जान गए कि वे किस तरह मिट्टी की मदद से अपनी रक्षा कर सकते हैं। और इस तरह उन्होंने यह भी खोज निकाला कि उनके क्षेत्र में कहाँ सुगंधित मिट्टी मिलती है जिसमें खास औषधीय गुण हैं। जैसे पीड़ा हरने वाले, सूजन को कम करना और शरीर को पूरी तरह साफ कर विषाक्त पदार्थों से मुक्त करना। इसके बाद तो ये सुगंधित मिट्टी वहाँ के लोगों के लिए परम आवश्यक हो गई। पुराने समय में इस सुगंधित मिट्टी को काला करने के लिए इसमें काला कार्बन मिलाया जाता था जिसे बर्तनों के नीचे होने वाली कालीख से खुरचा जाता और साथ में बैल का खून मिलाया जाता। लेकिन अब इसमें कुछ चमत्कारी जड़ी-बुटियों को मिलाया जाता है जिसमें मुख्य है नियांग बू लो यह एक तरह का जंगली पौधा है जो माना जाता है कि इसमें ऐसी शक्ति है जो मुर्दा को भी दुबारा जिंदा कर सकता है और साथ में चावल का पाउडर, और कोको पाउडर मिलाया जाता है। वा जाति के लोगों का मानना है कि अगर कोई लड़की इस मड को अपने चेहरे पर लगाती है तो वह बहुत खूबसूरत दिखती है। उन लोगों का यह भी मानना है कि बच्चों के लिए ये मड शांति और गुड लक लाती है और बड़े-बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य और दीर्घायु।

वा लोग मानते हैं कि पूरी तरह काले रंग में रंगा चेहरा खुशहाली लाता है। उनकी नज़रों में जो जितना काला वो उतना खुश। वाह री परंपराएँ, तेरा क्या कहना। सही कहा है किसी ने रहीमन इस संसार में भाँति-भाँति के लोग।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040