शानान में रात बिताई और सुबह आज हम लोग तिब्बती लघु उद्योग करघा देखने गए जहां लगभग चालीस कर्मचारी काम करते हैं।तिब्बती पौशाक एक पारंपरिक पौशाक है जिस का प्रचलन आज भी वैसा ही है।गर्म कोट,टोपी,जुराबें,कालीन और इसी तरह की तिब्बती पौशाक और अन्य वस्तुएं भी यहां हाथ से बनाई जाती हैं।तिब्बती चाय एक बार फिर यहां पीने का मौका मिला।मालूम हुआ कि एक कर्मचारी एक दिन में चार मीटर गर्म कपड़े की पटटी बुन लेता है और इस के लिए उसे लगभग 120 य्वान मिलते हैं,इस तरह एक माह में उस की तीन हज़ार से अधिक की आय हो जाती है।
खाना खाने के बाद लाह्सा जाने से पहले हमें एक तिब्बती विवाह समारोह देखने का मौका भी मिला।पारंपरिक तिब्बती विवाह भारतीय और चीनी पारंपरिक विवाह की तरह ही खूब रस्मों वाला होता है,लेकिन अब विवाह की रस्में बहुत आसान हैं।आपस में दोस्तों,रिश्तेदारों के साथ एक साथ मिल बैठ कर खाना खाना है मुख्य रस्म रह गई है जो आसान भी है और सस्ती भी।दोपहर बाद हम लोग लाह्सा के लिए रवाना हो गए।अब दो तीन दिन लाहसा में ही रहेंगे और उम्मीद है कि लाह्सा को और करीब से देखने का मौका मिलेगा।आज अन्य दो समूह जो शिकाजे और लिंच् गए हैं,वे भी वापिस आ जाएंगे।