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छठा दिन(तिब्बत की यात्रा)
2011-08-07 19:49:56

आज सुहब लाह्सा से शा नान के लिए रवाना हुए।रास्ते में पहाड़ों में सुंरगें निकाल कर सारे रास्ते को समतल और राजमार्ग की तरह बनाया गया है और आप आराम से एक सौ पचास किलोमीटर की रफ्तार से गाड़ी चला सकते हैं।शानान लाह्सा से बहुत दूर नहीं है।हमें शानान पहुंचने में कोई अढ़ाई घंटे लगे होंगे।

लाह्सा और नाछ्यु की यात्रा के बाद शानान की ओर जाना बहुत सुखद इसलिए भी रहा क्योंकि अब सरदर्द वगैरह की शिकायत दूर हो चुकी है और कई साथियों ने तो पहली बार आज सुबह स्नान करने का लाभ भी उठा लिया।लाह्सा आने पर दो चार दिन स्नान करने की मनाही ही रहती है।रास्ते में यांग पा चिंग नामक नदी का दृश्य देखने लायक था। वास्तव में तिब्बत प्रांत कई देशों को जल मुहैय्या कराने वाली भूमि भी है।रास्ते में हम एक ऐसे गांव को देखने के लिए रुके जो चीन सरकार की सब से गरीब लोगों के पुनर्वास योजना के तहत बसाया गया गांव हैं।मालूम हुआ कि इस गांव में 183 परिवारों का पुनर्वास किया गया है जिन में कुल मिला कर 798 लोग रहते हैं।पहले ये लोग अति गरीबी की हालत में वर्तमान स्थान से कोई 5 किलोमीटर दूर रहते थे।सन 2001 में सरकार ने इन्हें सड़क के करीब जमीन दी और मकान बनाने के लिए आर्थिक मदद भी।हम दो ऐसे परिवारों में गए और उन से बातचीत की।गांव में एक सामुदायिक केंद्र भी है जहां पुस्तकालय,स्वास्थ्य केंद्र,विचार विमर्श करने के लिए एक हाल और कसरत करने के लिए छोटा सा जिम भी।लोगों का जीवन सरकार की इस योजना से पूरी तरह बदल गया है।शायद उन्होने पहले कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उन के जीवन में खुशी और आधुनिक जीवन की सुख सविधाएं इस तरह आ सकती हैं।सरकार ने उन्हें उपग्रह टी वी भी दिया है जिस से वे लगभग 48 टी वी चैनल देख सकते हैं।

शानान तिब्बती संस्कृति का जन्मस्थान माना जाता है।यह प्राचीन यारलुंग जांगपो नदी के द्वारा निर्मित यारलुंग नदी के मध्य और निचले भाग में स्थित है। उत्तर में यह लाह्सा,पूर्व में लिंग्च,पश्चिम में शिकाजे के साथ जुड़ा हुआ है और दक्षिण में भारत और भूटान के साथ इस की अंतरारष्ट्रीय सीमा लगती है।इस की विशेषता इस की खेती योग्य उपजाऊ भूमि,तिब्बत के पहले बुद्ध मंदिर का और पहले महल का स्थल होने के कारण है।यह तिब्बत के प्रथम ऑपेरा का जन्मस्थान भी है।इस की कुल जनसंख्या कोई 4 लाख है जिस में 98 प्रतिशत तिब्बती और बाकी 4 प्रतिशत में हान,हुई,मोंबा,लोबा और

अन्य जातियों के लोग रहते हैं।शानान का केवल ऐतिहासिक महत्व ही नहीं है बल्कि तिब्बत में यह सब से सम्पन्न जगह भी मानी जाती है।

दोपहर बाद हम शानान के मेयर से मिलने गए और बातचीत में उन्होने शानान के विकास के बारे में हमें बताया।शानान में भी चीन की अन्य जगहों की तरह विशाल सड़कें,विशाल इमारतें बनी हुई हैं।लेकिन इमारतों में तिब्बती शैली की और कहीं कहीं पोटाला पैलेस की झलक दिखाई पड़ती है।हम ने जानना चाहा कि शानान के विकास में सरकार के सामने सांस्कृतिक,सामाजिक और वित्तीय समस्यांए किस तरह की रहीं और सरकार ने सांस्कृतिक ताने-बाने को बिना तोड़े कैसे इन का हल किया।मेयर ने बताया कि आसपास के शहर मुख्यतः वूहान और अन्य मुख्यभूमि के शहरों ने वित्तीय मदद दे कर यहां के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है।उन से बातचीत समाप्त कर के हम लोग शानान से कोई दस किलोमीटर दूर युम्बु लाखांग बुद्ध मंदिर देखने गए जो एक पहाड़ी पर स्थित है।इस की महत्ता तिब्बत के प्रथम महल और तिब्बती शैली के प्रथम उदाहरण के रुप में भी है।इस का निर्माण आज से 2200 साल तिब्बत के प्रथम राजा नित्री जांपो ने करवाया था।यह अब सांस्कृतिक धरोहरों की संरक्षण सूची में शामिल है।इस मंदिर में आज भी पूजा होती है और दूर दूर से लोग इसे देखने आते हैं।वापिसी पर एक और बुद्ध मंदिर साम्य मंदिर देखने गए जिस के जीर्णोद्वार का काम हो रहा है। इस का निर्माण 8वीं सदी में हुआ था।इस में तिब्बती इतिहास,संस्कृति,मूर्तियां और सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित है।

तिब्बत में आ्रज भी लोगों के धार्मिक विश्वास और परंपराएं पहले की तरह सुरक्षित हैं फर्क सिर्फ इतना पड़ा है अब लोग अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए सिर्फ ईश्वर पर निर्भर नहीं हैं,लोगों की मदद से सरकार के ठोस कार्यों ने उन के जीवन में परिवर्तन संभव किया है और पहले जहां उन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी, वहां अब वे जीवन की वे अन्य सुख सुविधाएं भी भोग रहे हैं जो पहले सिर्फ उच्च वर्ग को ही उपलब्ध थीं।

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