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पहली रात(तिब्बत की यात्रा)
2011-08-02 19:49:56
हवाई अडडे पर पहुचं कर हर कोई उत्साहित था लेकिन सब के मन में यह भय भी बैठा हुआ था कि पहली रात ठीक ठाक बिना अधिक परेशानी के बीत जाए।हवाई अडडा शहर से काफी दूर है।होटल तक पहुचंने में काफी समय लग गया। हर कोई चाहता था कि जल्दी से अपने –अपने कमरे में जा कर आराम करे।

लेकिन प्रबंधकों ने जो होटल बुक किया था,वहां विदेशियों को नहीं ठहराया जा सकता था।दूसरा होटल बुक करने में और बहस मुहाबिसे में तीन-चार घंटे निकल गए,और जब दूसरे होटल पहुंचे तो वह भी बहुत दूर निकला।करते-कराते रात हो गई और कहीं न कहीं सब के मन में शंका थी कि दोपहर के बाद की लाह्सा में यह मशक्कत रात को कहीं रंग न लाए।होटल कर्मचारियों ने चेतावनी दे दी थी कि पहली बार यहां आ कर आराम करना जरुरी है।रात दस बजे खाना खा कर सब अपने-अपने कमरों में मन में शंका लिए चले गए।जब मैं बेजिंग में था और यह बात बताई जा रही थी कि तिब्बत बहुत उंचाई पर है और वहां जाने से पहले तैयारी करना जरुरी है तो मै इस बात को बड़ी आसानी से ले रहा था ,मुझे जरा भी अंदाज नहीं था कि वास्तव में स्थिति कितनी नाजुक होगी। बारह बजे के बाद सिर में चक्कर आना शुरु हुआ.बढ़ते-बढ़ते दर्द सारे सिर में इस कदर फैल गया और ऐसा लगने लगा जैसे सिर में हजार टुकड़े एक दूसरे से टकरा रहें हों।दो घंटे के बाद मतली का मन बनना शुरु हुआ,घंटा भर इंतजार कर के बाथरुम मे जा कर सारा दिन जो खाया पिया था उगल दिया,शरीर पसीने से नहा उठा और ऐसा लगा जैसे शरीर में खड़े होने की शक्ति भी नहीं है।सारी रात इसी तरह दर्द झेलते बीती और मुझे लगने लगा कि लोगों की बात न मान कर मैंने अच्छा नहीं किया और जो दवा दी गई थी वह खानी चाहिए थी।ऐसा भी लगा कि अगले दिन कहीं जाने की ताकत अब शरीर में नहीं है।मतली थी कि रुक ही नहीं रही थी।करवटें बदलते-बदलते सुबह हुई।

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