तिब्बत हमेशा से मन में बहुत करीबी जगह रहा है,शायद इसलिए कि बचपन से अपने आसपास तिब्बतियों को देखने का मौका मिला है,और जब कभी किसी तिब्बती से मैंने छुटपन में पूछा कि तिब्बत कहां हैं तो उस ने सामने खड़े पहाड़ की ओर उंगली कर के कहा उस के पीछे।और शायद सच भी है...उन पहाड़ों के उपर से यदि उड़ान भरें तो तिब्बत ही आएगा।बड़े होने पर तिब्बत के बारे में जानकारी भी मिली और दुनिया में इसे ले कर कैसी राजनीति हो रही है इस के बारे में भी पता चला।
आज के नौ साल पहले जब पहली बार चीन आना हुआ तो कहीं न कहीं मन में यह बात भी आई कि तिब्बत जो मेरे मन और पहाड़ के उस पार है,उसे वास्तव में देखने का मौका मिल सकता है।और इतने सालों के बाद आज जब तिब्बत जाने का मौका मिला है तो मन में न केवल उत्सुकता है बल्कि कहीं न कहीं बचपन से जुड़ी यादें भी हैं।तिब्बत का मेरे लिए वो अर्थ नहीं है जो किसी पर्यटक के लिए होता है।तिब्बत के बारे में झूठ-सच इतनी बार सुना है लेकिन उसे अपनी आंखों से देखने का मौका आज पहली बार मिल रहा है।
आज सुबह विमान से बेजिंग से पहले छंदू पहुचें वहां से फिर लाह्सा।अभी तक बेजिंग से लाह्सा तक सीधी उड़ान नहीं है लेकिन मालूम हुआ है कि जल्द ही शुरु होने वाली है।तिब्बत जाने से पहले कुछ तैयारी करनी पड़ती है,यह भी मालूम हुआ।क्योंकि तिब्बत समुद्री तल से बहुत ऊंचा है इसलिए एकदम वहां पहुंचने पर शरीर को वहां के वातावरण के अऩुकूल होने में समय लगता है और चूंकि वहां ऑक्सीजन कम है इसलिए शरीर को उतना मजबूत बनाना जरुरी है कि इस बदलाव को झेल सके।कुछ लोगों को वातावरण में तुरंत ऐसे बदलाव के कारण सिरदर्द,मतली और चक्कर आदि आ जाते हैं।इसलिए हमें यात्रा से दस दिन पहले शरीर को मजबूत बनाने के लिए कुछ चीनी दवा और जड़ी-बूटी दी गई जिसे रोज खा कर अपने शरीर की क्षमता को मजबूत बनाया जा सकता है।
हमारे समूह में कुल सात भाषाओं के विभाग हैं हिंदी के अलावा बंगला,चेक,नेपाली,अंग्रेजी,जर्मनी,इटली और तमिल.और लाहसा पहुंच कर पहले दो दिन वहीं रहने का कार्यक्रम है,उस के बाद दो-दो के समूह में हम लोग तिब्बत के पूर्व,दक्षिण,पश्चिम भागों को दौरा करेंगे।हिंदी और अंगेजी विभाग दक्षिण की ओर जाएगा।
हमारी इस यात्रा का मकसद तिब्बत के विभिन्न इलाकों में जा कर वहां के आम लोगों के जीवन को देखना और उन से बातचीत कर के मालूम करना है कि पिछले साठ साल के विकास में तिब्बत में और उन के जीवन में क्या और कैसा परिवर्तन हुआ है।
छंदू हम अढ़ाई घंटे की उड़ान के बाद पहुंच गए,एक घंटे के इंतजार के बाद दो घंटे से कम समय की छंदू-लाह्सा उड़ान शुरु हुई।दोपहर बाद लाह्सा हवाई अडडे पर पहुंच गए.विमान जब लाह्सा के करीब था,तो बर्फ की चोटियों वाले पर्वतों के नीचे अदभुत रोमांचकारी दृश्य देख कर यात्रियों से रहा नहीं गया और हर कोई इन दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करने की लोभ संवंरण नहीं कर सका।