यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ।
कभी वो भी समय था जब चीन में काली-अंधेरी रातों के अंधकार को दूर करने के लिए लालटेनों का प्रयोग किया जाता था। कभी वो भी जमाना था जब रातों को हवा में लहराती लालटेन आसमान को प्रकाशित करती थी। इसका क्या मतलब कि क्या वे दिन लद गए, क्या चीन में लालटेन लुप्त हो गई हैं। जी नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। अभी पिछले कुछ सालों से लालटेन बहुत ही लोकप्रिय होती जा रही हैं चीन में, खासकर शादियों में, संगीत समारोहों में और किसी की अन्त्येष्टि के दौरान।
सदियों से चीन में चली आ रही है परंपरा प्रार्थनाओं के समय लालटेन का साथ होना। चीन में लालटेन द्योतक है शुभता की, समृद्धि की। लंबे समय से चीन में विशेष अवसरों का जश्न मनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता रहा है। प्राचीन समय में चाइनीस लोग खुशी और सुख-शांति की कामना से आसमान में लालटेन छोड़ते थे। लेकिन आज के आधुनिक समय में लालटेन सजावट के सामान के रूप में ज़्यादा लोकप्रिय हो रही हैं और अपनी सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व के कारण इसकी लोकप्रियता विश्वभर में बढ़ती ही जा रही है।
चीन की सबसे बड़ी माइक्रोब्लागिंग साइट (वेइबो) पर एक ब्लागर शुजियान ने अभी हाल में एक बुजुर्ग आदमी के कागज़ की लालटेन पर चित्रकला करते हुए कुछ फोटो अपलोड किए हैं। चाओशान की सफेद लालटेन, जिन पर लिखे बड़े-बड़े लाल-लाल चीनी अक्षर बरबस सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं।
दक्षिण पूर्वी चीन के प्रांत ग्वांगदोंग के पूर्वी भाग में स्थित है चाओशान(छाओजोअ और शान्तोअ)। चाओशान के निवासियों के जीवन का अभिन्न अंग हैं ये लालटेन। पुराने समय में चाओशान क्षेत्र में हर जगह इन लालटेनों को देखा जा सकता था। त्योहारों के समय, शादियों में और अंतिम संस्कार के दौरान लोग अपने घरों के बाहर इन लालटेनों को लटकाते थे। चाओशान की लालटेन चीन की परंपरागत लाल लालटेन से अलग हैं। चाओशान की सफेद लालटेन पर बड़े और बोल्ड लाल अक्षरों में परिवार का नाम लिखा होता है।
पुराने समय में कुछ लोगों की आजीविका इस तरह की लालटेन को बनाकर ही चलती थी। लेकिन अब बहुत कम लोग इस परंपरा को आगे कायम रख रहे हैं। हालांकि, चाओशान क्षेत्र में अब भी कुछ कार्यशालाएँ बाकी बची हैं लेकिन लालटेन पर पारंपरिक चित्रकला की परंपरा गायब हो रही है।
चिएनमेई, शान्ताओ शहर में स्थित एक गाँव है जो अपनी लालटेन के लिए प्रसिद्ध हैं। कई ग्रामीण लालटेन बनाकर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं। हालांकि, लालटेन निर्माताओं में अधिकतर मध्यम आयु वर्ग के लोग ही हैं, बहुत कम युवाओं को अब इस पारंपरिक लालटेन चित्रकला सीखने में रुचि है।
वेइबो पर अपलोडिड फोटो में जो आदमी हैं वे हैं चिएनमेई के लालटेन चित्रकार छन झोमाओ। लालटेन चित्रकला उनका पारिवारिक व्यवसाय है जिसे वे सदियों से करते आए हैं। वे इस लुप्त होती कला को लेकर चितिंत भी है और दुखी भी।
छन झोमाओ ने कहा कि, शायद यह पारंपरिक लालटेन पर पेंटिग करने की कला मेरे साथ ही खत्म हो जाएगी। लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि इस कला को आगे आने वाली पीढ़ी सहेजकर रखे और अगली पीढ़ी को सीखा इसे आगे बढ़ाएँ। लेकिन यह आसान नहीं होगा लालटेन पर रंगने की कला को सीखने में कई साल लग जाते हैं इसके अलावा, ज्यादातर युवा लोगों को छोटी कार्यशालाओं में बैठ लालटेन चित्रकला करने के बजाय आकर्षक लाभप्रद नौकरियाँ करना अधिक पसंद करते हैं।
छन की तस्वीरें ऑनलाइन हिट होने के बाद बहुत सारे लोगों ने इस गुम होती कला के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। इस पर एक ब्लागर मेइझी ने वेइबो पर लिखा कि कई ऐसी कलाएँ हैं जो अपना अस्तीत्व खोने की कगार पर पहुँच चुकी हैं, यह जानकर अब मैंने इस कला के बारे में और अधिक खोज-बीन करना शुरू कर दिया है। हमारी पीढ़ी इन सबसे अनजान हैं कि ऐसी कला भी कभी मौजूद थी या नहीं और जो धीरे-धीरे गायब होती जा रही हैं। जब मुझे एहसास हुआ कि आने वाली कई पीढ़ियाँ कभी इनके बारे में जान भी नहीं पाएँगी अगर हम अभी समय रहते सतर्क न रहे और इन्हें अपनी पहचान बनाए रखने में हमने कोई कारगर कदम न उठाएँ। अब मैंने इस कला के बारे में और अधिक खोज-बीन करना शुरू कर दिया है।
दोस्तों, अब जब हम बात कर ही रहे हैं लालटेन और उसकी महत्ता के बारे में। तो चलिए, चीन की एक एथैनिक जाति यी जाति के बारे में जो चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांतों में रहते हैं, उनकी बात करते हैं। यी जाति के लोगों में एक कहावत प्रचलित है कि आप अपने पुरखों को तो नाराज़ करना अफोर्ड कर सकते हैं लेकिन अपनी शादी को कभी अपमानित मत करना। यी जाति की शादियों में कई रस्में, रीति-रिवाज़ होते हैं लेकिन अभी हाल ही में हुई एक शादी के समारोह को देख यह पता चलता है कि कैसे आज के युवा जोड़े पुराने रीति-रिवाज़ों में आधुनिक तड़का मार अपनी पहचान को बनाए रखने में कामयाब हो रहे हैं।
यी जाति के लोगों का मानना है कि सगाई जिसे उनकी भाषा में वुरांगमू कहते हैं शादी की शुरुआत है। एक बार अगर सगाई हो गई यानी सगाई की रस्में पूरी हो गईं तो इस रिश्ते से कोई भी मुकर नहीं सकता। दूल्हे को सगाई की रस्म के दौरान अपनी होने वाली दुल्हन के परिवार वालों को उपहार देने पड़ते हैं। उसके बाद दोनों परिवार मिलकर शादी की तारीख तय करते हैं और शादी की तैयारियाँ शुरू कर देते हैं।
शादी से कुछ दिन पहले जो कि अधिकतर दूल्हे के गाँव या उसके घर में ही होती है, होने वाली दुल्हन को अपने भोजन का सेवन कम करने की आवश्यकता होती है। नहीं, नहीं आप जैसा सोच रहे हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है। यी जाति की लड़कियाँ मोटी नहीं होती। बात ऐसी है कि दुल्हन के घर और उसके मंगेतर के घर के बीच की दूरी दुल्हन के आहार की मात्रा निर्धारित करती है। ऐं, ये कैसी बात हुई भई। जी, मान्यताएँ अपनी-अपनी, रस्में, रीति-रिवाज़ अपने-अपने। अब अगर ऐसा माना जाता है तो ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि इसके साथ कोई-न-कोई पौराणिक कथा न जुड़ी हुई हो। तो यह कस्टम इस दंतकथा पर आधारित है कि बहुत समय पहले एक यी महिला की एक आदमी के साथ सगाई हुई थी जो उसके गांव से बहुत दूर रहता था। अपने मंगेतर के घर जाते समय वह झाड़ियों के पीछे रिलीव करने गईं(राहत पहुँचाने)। रास्ते में उनसे मिलने दूल्हे के परिवार से जो भी आया वह दूर खड़े हो उनका इंतज़ार करने लगे। इस बीच अचानक एक बाघ ने उस महिला को मार डाला और बाघ ने उस महिला का रूप धारण कर लिया। शादी के दिन भी वही बाघ जिसने महिला का रूप धारण किया था, ने दूल्हे की बहन को मार डाला। इस सच्चाई का जब दूल्हे को पता चला तो उसने आग लगा दी जिसे देख बाघ दूर कहीं जंगलों में भाग गया। बस फिर क्या तब से लेकर आज तक सभी यी जाति की दुल्हन अपनी शादी से पहले किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए कम खाना-पीना शुरू कर देती हैं। शादी से पहले, दुल्हन और उसका परिवार अपने घर के पास एक अस्थायी शेड में अपने रिश्तेदारों और मित्रों के लिए एक भोज आयोजित करते हैं। भोज के दौरान कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। जिसमें पहले छोटे बच्चों का प्रदर्शन होता है, फिर युवा पुरुषों का और अंत में दुल्हन और दूल्हे के परिवार वालों के बीच प्रतियोगिता होती है। आप सब यह सुनकर ज़रूर हँस रहे होंगे कि दुल्हन और दूल्हे के परिवार वालों के बीच कुश्ती। हमारे यहाँ अगर ऐसा हो तो.................चलिए, छोड़िए आगे बढ़ते हैं। यह अगले दिन भी जारी रहता है और इसकी शुरूआत जीतने वाले सबसे ताकतवर व्यक्ति से की जाती है। जब प्रतियोगिता खत्म होती है तब नौ आदमियों को दुल्हन से मिलने भेजा जाता है और उनमें से तीन उस दुल्हन को अपने कंधे पर उठाकर भाग जाते हैं, आपने ठीक समझा, जी हाँ, वे दुल्हन का अपहरण करने की एक तरह की रस्म निभाते हैं और दुल्हन के घर वाले भी ठीक उसी तरह अपहरणकर्ताओं का पीछा करने की रस्म निभाते हैं और नाटकीय ढंग से दर्शाते हैं कि वे डर गए हैं कि जिस लड़की की शादी होने वाली है वही गायब है। ओ मॉय गॉड, कितनी नौटंकी है भाई। चलिए, आगे सुनते हैं कि किडनैपड दुल्हन गई कहाँ आखिर। तो भई, दुल्हन के रिश्तेदार उसे दूल्हे के घर के आस-पास कहीं ठहराते हैं और दूल्हे के परिवार वाले दुल्हन और उसके के घर वालों की खूब खातिरदारी करते हैं। उस रात दूल्हा और दूल्हन को सोने की अनुमति नहीं दी जाती। इन रस्मों के बाद दुल्हन को अपने घर वापस लौटना होता है। और उसी दिन शाम को दूल्हे के परिवार वाले दुबारा बहुत सारे उपहार दुल्हन के घर लेकर जाते हैं और दुल्हन के घरवाले अपने होने वाले संबंधियों का स्वागत उनके ऊपर पानी फेंककर करते हैं। ये क्या नाइंसाफी है भई एक तो उपहार लाओ और फिर तुम नहलाओगे। कितनी खातिरदारी करवाते हैं ये लड़की वाले और बदले में घर में घुसने से पहले फेंकते हैं पानी बहुत नाइंसाफी है भई। खैर, ये तो रस्में हैं भई निभानी तो पड़ेगी और कोई चॉइस नहीं भीगने के अलावा। यी जाति के लोगों का मानना है कि पानी से बुरी आत्माएँ दूर रहती हैं और ऐसा करने से नए शादी-शुदा जोड़े के लिए खुशियों की गारंटी मिलती है। तो क्या कहना का मतलब है दूल्हे के घर वाले बुरी आत्माएँ हैं। हाहहाहाहाहाह....जस्ट जोकिंग। अच्छा और आगे सुनिए दुल्हन के घर वाले जितना ज्यादा पानी डालेंगे इसका मतलब वो दूल्हे के घरवालों का उतना ज़्यादा सम्मान कर रहे हैं। नीमोनीया करवाकर ही भेजोगे बाबूजी। दूल्हे के घर वाले भगवान के सामने एक भेड़ और बाल्टी भर शराब रखते हैं। इस पूजा समारोह के बाद यह शादीशुदा जोड़ा अपने वैवाहिक जीवन की शुरूआत करता है।
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तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार