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12-05-08
2012-05-15 18:34:33

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तों, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। दोस्तो, एक बार फिर हम आपको तहे दिल से थैंक यू कहना चाहते हैं न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम को पसंद करने के लिए, आपने हमें अपने दिल में जगह दी, हमें सराहा और चाहा। आप सब को बहुत बड़ा वाला थैंक यू।

न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में हम जीवन के हर पहलू पर नज़र डालते हैं। जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव आप के साथ शेयर करते हैं। सैर-सपाटे से लेकर खाना-पीना, पहनना-ओड़ना जितना संभव हो सकता है हम चीन और चीनी लोगों की जीवनशैली से आपको रूबरू करवाने की कोशिश करते रहते हैं। तो इसी कोशिश को जारी रखते हुए आज शामिल करते हैं हमारे कार्यक्रम में चीनी महिलाओं की पारंपरिक पोशाक चीपाओ जिसे विदेशी लोग चाइनीस ड्रैस के नाम से भी जानते हैं, के बारे में कुछ दिलचस्प बातें करेंगे। आज आपको बताते हैं चीन में चीपाओ बनाने वाले एक मश्हूर ब्रैंड ई बू के बारे में।

वांग झहान बचपन से ही चीपाओ पर मोहित थीं। आज वह ई बू चीपाओ की मालकिन हैं, जो अपने लोकल और विदेशी ग्राहकों के लिए टॉप क्वालिटी, मेड टू आर्डर चीपाओ उपलब्ध करवाती हैं। वांग बताती हैं कि चीपाओ एक पारंपरिक चीनी पोशाक है जो क्लोस फिटिंग गाउन की तरह होता है जिसमें बंद गला यानी हाई नेक और साइड में स्लिट खुली होती है और एक महिला के लिए शायद सबसे सुंदर पोशाक भी। चीनी महिलाओं ने पीढ़ी दर पीढ़ी चीपाओ की परंपरा को आगे बढ़ाया है। वांग का लक्ष्य है कि वे प्रत्येक महिला को चीपाओ उपलब्ध करवाना चाहती हैं जो उनकी फिगर के अनुसार उनके लिए परफेक्ट हो।

वांग को देखते ही लोग समझ जाते हैं कि वह शांगहाई की टिपीकल- मृदु भाषी और बेहद खूबसूरत महिला दिखती हैं। रेशमी कपड़े से बना क्लोस फिट चीपाओ पहने वांग अपने ब्रैंड ई बू चिंओंगसाम की ब्रैंड अम्बैसडर दिख रही थीं।

वांग ने अपना कारोबार शुरू करने से पहले फुदान विश्वविद्यालय से विज्ञापन डिजाइन में मेजर किया और ग्रेजुएशन करने के बाद एक कंपनी में 5 साल काम किया और शादी के बाद काम करना छोड़ दिया और एक बेटी को जन्म दिया। उस समय तक वांग का मानना था कि उसे भी महिलाओं के पारंपरिक रोल को निभाना चाहिए मतलब घर पर रहकर अपने बच्चे का पालन-पोषण करना चाहिए। जैसे-जैसे उसकी बेटी बड़ी होती गई उसे महसूस होने लगा कि उसे ऐसा कुछ करना चाहिए जिसमें उसकी रुचि हो। यही सोचकर परिवार और कैरियर में संतुलन बनाने के लिए वांग ने अपना खुद का बिजनिस शुरू करने का निर्णय लिया। उसने अपना ध्यान चीपाओ पर केन्द्रित किया। वांग ने बताया कि चीपाओ की तरफ उसका लगाव उसकी माँ के प्रभाव से पैदा हुआ है। उसकी माँ का मानना था कि एक महिला चीपाओ में जितनी आकर्षक नज़र आती है उतनी किसी और किसी पोशाक में नहीं। जब वह बहुत छोटी थी तब उसकी माँ ने विभिन्न तरह के कपड़े एक संदूक में उसके लिए सहेज के रखे थे यह सोचकर कि जब वह बड़ी हो जाएँगी तो वह उन कपड़ों से उसके लिए चीपाओ सिलवाएँगी। पहला चीपाओ बतौर ड्रैस उन्होंने अपने लिए तब सिलवाया जब वह तीन महीने से गर्भवती थी। शांगहाई के पारंपरिक हाथों से बने और रंगे कपड़े का बना चीपाओ देखने में सिंपल लेकिन बहुत आकर्षक था। चीपाओ बनाने के बाद वांग ने एक अलग संतुष्टि का अनुभव किया। उसने अपनी सहेलियों को अपनी ड्रैस दिखाई और उन्होंने उसकी बहुत तारीफ भी की। तब उन्हें एहसास हुआ कि हर महिला के पास औपचारिक अवसरों के दौरान पहनने के लिए एक परफेक्टली टैलरड चीपाओ तो होना ही चाहिए।

उस समय तक चीपाओ के कई स्टाइल बाज़ार में उतर चुके थे जिनमें या तो आगे या पीछे या साइड में जिप लगे होते थे जो कि पारंपरिक चीपाओ के डिजाइन से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे। वांग ने निर्णय लिया कि वह चीपाओ को खुद डिजाइन करेगी जिसमें पारंपरिक बटनों का प्रयोग किया जाएगा ताकि वह किसी भी महिला के शरीर पर एकदम फिट बैठे। वर्ष 2008 में उन्होंने ई बू चिंओंगसाम के नाम से अपना ब्रैंड रजिस्टर करवाया और अपना स्टूडियो खोला। अपने ब्रैंड के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पुराने समय में चीनी लोगों का मानना था कि चीपाओ पहने हुए महिला लंबे कदम लेकर नहीं चल सकती। उन्हें आधे-आधे कदम उठाकर चलना पड़ता था लेकिन आशा करती हूँ कि मेरे ब्रैंड के चीपाओ पहन महिलाएँ सामान्य रूप से कदम उठाकर चल पाएँगी, इसी उम्मीद से कि वे दुनिया में भी अपनी एक अलग पहचान बनाकर खुले दिमाग से आगे बढ़ पाएँगी। इसलिए मैंने अपने ब्रैंड का नाम भी ई बू रखा है जिसका पिन्यिन में मतलब है एक कदम।

वांग ने बताया कि ई बू चीपाओ केवल उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े उपलब्ध नहीं करवाता, हम जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाने पर भी जोर देते हैं। वांग ने फैसला लिया कि हमारा ब्रैंड ग्राहकों की सुविधा के अनुरूप टॉप क्वालिटी के चीपाओ सिलवाकर देगी। प्रत्येक चीपाओ की कीमत लगभग 3000 से 10,000 युवान के बीच है।

उन्होंने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि मेरी एक महिला ग्राहक बीजिंग से हैं जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुई हूँ। उन्होंने हम से 100 से ज़्यादा ड्रैसिस खरीदीं हैं। पहले तो मैं बहुत चिंतित हुई यह सोचकर कि कहीं वे हमारे कपड़ों का इस्तेमाल अपने लिए सैंपल की तरह तो नहीं कर रहीं ताकि वे हमारे डिजाइनस की नकल कर सकें। लेकिन उनके घर जाने के बाद मैं उनकी अलमारी देखकर दंग रह गई और मेरी सारी चिंता दूर हो गई क्योंकि उन्हें ड्रैसिस कलेक्ट करने का शौक था। वे सही मायने में चीपाओ की शौकीन हैं।

ई बू के अब शांगहाई, बीजिंग, छिंगदाओ और चांगशा में आउटलेट हैं। वे अब आनलाइन भी ग्राहकों को चीपाओ उपलब्ध करवाने का काम कर रही हैं। वांग ने माप के मानकों की अपनी एक श्रृंखला बनाई है। ई बू का स्टाफ कई बार अपने ग्राहकों से यह सुनिश्चित करने के लिए संपर्क करते हैं कि माप सटीक है कि नहीं। कंपनी की सिलाई, मशीन-बुनाई और हाथ की बुनाई तथा परंपरागत कढ़ाई की अलग-अलग कार्यशालाएँ हैं। वांग ने वेइबो(चीन के ट्वीटर) पर अपने चीपाओ को बढ़ावा देने के लिए कॉमेंटस में लिखा कि चीपाओ न केवल एक औरत की सुंदरता और आकर्षण का प्रदर्शन करता है बल्कि उसकी टेस्ट और रुचि को भी उजागर करता है। हालांकि महिलाओं के लिए विभिन्न परिधान हैं लेकिन चीपाओ उसके स्त्रीत्व को निखारता है और उसे परिभाषित करता है। वांग का एक ही लक्ष्य है कि वह हर महिला के लिए एक चीपाओ बनाए जो उसे एकदम फिट बैठे। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे मध्यम-आयु वर्ग की महिलाओं को पारंपरिक परिधानों में देखना अच्छा लगता है। कई लोगों को यह गलतफहमी है कि मोटे लोग चीपाओ नहीं पहन सकते। लेकिन चीपाओ बनाने का बेसिक कॉन्सेपट तो यही है कि कपड़े को एक व्यक्ति के माप के अनुसार ही इस तरह सिला जाता है ताकि उनकी सारी कमियों को छुपाया जा सके। हम अपने चीपाओ के लिए युवा माडलों को तलाशते हैं लेकिन उन्हें चीपाओ पहने देख साफ जाहिर होता है कि उनमें कुछ कमी है लेकिन जब हम महिला माडलों को चीपाओ पहने देखते हैं खासकर वे जो अब माँ बन गई हैं वे चीपाओ में बेहद सुंदर और ऐलेगेंट दिखती हैं। इतनी सारी बातें जानकर अब आप यह जानना चाहते होंगे कि चिपाओ पहनने की शुरूआत कब से हुई।

चलिए अब बात करते हैं चिपाओ के इतिहास के बारे में। ये चीनी टाइट-फिटिंग,बंद गले वाली ड्रैस जिसके साइड से स्लिट खुले हैं छिंग राजवंश के दौरान चीन की मानचू जाति की देन है जो असलियत में कुछ और थे जैसा आज हम देखते हैं।इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है वह यह कि एक युवा मछुआरिन जिंगबो झील के किनारे रहती थी। वह सुंदर होने के साथ-साथ चतुर और कुशल भी थी। लेकिन जब वह मछली पकड़ने जाती तब उसके लंबे और ढीले कपड़े उसके काम में बाधा डालते। तब उसे एक आइडिया आया और उसने सोचा कि क्यों न मैं एक ऐसी पोशाक बनाओ जो ज्यादा व्यावहारिक हो। ऐसा सोच वह बैठ गई अपने लिए एक लंबा गाउन सिलने जिसमें बहुत सारे बटन लगे थे और साइड से स्लिट खुले थे और साइड में भी ढेर से बटन लगे थे ताकि काम करते समय वह बटन बंद कर सके और आसानी से अपना काम कर सके। उस युवा मछुआरिन ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका भाग्य भी कभी ऐसा चमकेगा कि उसकी जिंदगी ही बदल जाएगी। हुआ यूँ कि उस समय जो चीन के युवा शासक थे उन्हें रात में एक सपना आया, सपने में उनके पिताजी उनसे कह रहे थे कि जिंगबो झील के किनारे रहने वाली एक बेहद सुंदर मछुआरिन जिसने चिपाओ पहना होगा वही तुम्हारी पत्नी बनेगी। नींद से जागने के बाद राजा ने अपने आदमियों को उस युवती को ढ़ूँढने के लिए भेजा और वह उन्हें मिल गई। नई रानी अपने साथ राजमहल में लाईं चिपाओ। और इस प्रकार सभी मानचू महिलाओं ने चिपाओ को अपना लिया। छिंग राजवंश के दौरान चीनी चिपाओ रायल परिवारों(शाही परिवारों) की महिलाओं में बहुत प्रचिलित हो गया। उस समय के चिपाओ बहुत ढीले और इतने लंबे होते थे कि वे पैरों के नीचे तक जाते थे। अधिकतर सिल्क (रेशम) से बने होते और कॉलर, बाजू और किनारों पर चौड़ी लेस लगी होती थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे चिपाओ के डिजाइन और स्टाइल में बदलाव होता रहा। 1920-30 तक चिपाओ की लंबाई छोटी हो गई और टाइट-फिटिंग के चिपाओ बाजारों में उतारे गए। लेकिन 1966-1976 के "सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति " के दौरान चिपाओ पहनने को पूंजीवादी कार्यवाही समझा जाता था। 1976 के बाद चीन में सुधार की किरण दिखाई देनी शुरू हुई,फिर 1980 में सुधार व खुलेपन का कार्य औपचारिक रूप से शुरू हुआ,जिसके बाद विवाह आदि समारोहों में चिपाओ पहनना आम हो गया। अब जब हम चीनी पारंपरिक पोशाक के बारे में बात कर रहे हैं तो साथ-साथ आपको चीन में रंगों का क्या महत्व है और रंग क्या दर्शाते हैं इसके बारे में भी आपको बताते हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं चीन में लाल रंग को बहुत शुभ माना जाता है, लाल रंग द्योतक है सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य का। इसलिए अधिकतर महिलाएँ अपनी शादी के समय लाल रंग का चिपाओ पहनती हैं। पीला रंग शाही परिवारों को दर्शाता है,चीन के पहले शासक का नाम भी यैलो एम्पर्र यानी पीला राजा था। नीला और हरा रंग वसंत का रंग है, नीला रंग दीर्घ आयु के लिए माना जाता है और सफेद को शोक, दुख के साथ जोड़ा जाता है।

आज केवल चीन में ही नहीं विदेशों में भी चिपाओ पहनना फैशन और स्टाइल को दर्शाता है। अपनी खूबसूरती, ऐलैगैंस और पारंपरिक होने के कारण चिपाओ कई फैशन डिजाइनरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है। महिलाओं की फिगर और सुंदरता को बेहद नजाकत से सजाता और दर्शाता चिपाओ अब हर जगह आसानी से उपलब्ध है। इसीलिए तो जो भी विदेशी महिला चीन में घूमने आती है वह अपने साथ चिपाओ ले जाना नहीं भूलती। चीन की यादों के साथ चिपाओ उनके जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है। तभी तो कहते हैं कि चिपाओ केवल चीनी महिलाओं का परिधान नहीं रहा बल्कि वह तो विश्वभर की महिलाओं की सुंदरता में चार-चाँद लगाने का काम कर रहा है।

वैसे भी चीपाओ बनाना एक ऐसा व्यवसाय है जो समय के साथ-साथ पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढता गया है और हर आने वाला समय लाता है अपने साथ कुछ बदलाव और कुछ नयापन। आपको हमारी बातें सुन एक चीपाओ तो लेने का मन कर ही रहा होगा। चलिए, चीन आने का मौका जब मिलेगा तब देखेंगे लेकिन उससे पहले आप भी अपने टेलर से अपने लिए एक चाइनीस ड्रैस सिलवाने की कोशिश ज़रूर करना और हमें बताना मत भूलना कि कैसा रहा आपका अनुभव।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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