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12-05-01
2012-04-30 19:15:00

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ।

बीजिंग अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की तृतीय वर्ष की 20 वर्षीय छात्रा झांग पिंग की चिन्ताएँ बढ़ती जा रही हैं जैसे-जैसे परास्नातक यानी पोस्ट ग्रेजुएशन की परीक्षाएँ समीप आती जा रही हैं, उसका कहना है कि मैं अपने भविष्य को लेकर पूरी तरह से कन्फ्यूसड हूँ क्योंकि मैं अभी तक कुछ ठीक से सोच नहीं पा रही हूँ कि मैं आखिर भविष्य में करना क्या चाहती हूँ। फिलहाल तो मैं पोस्ट ग्रेजुएशन की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रही हूँ लेकिन अगर मुझे इस बीच कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी तो मैं उसके बारे में भी सोच सकती हूँ। इसके साथ-साथ छिंगदाओ, शांगदोंग प्रांत से 20 वर्षीय वांग झ़ुशिंग और हनान प्रांत की वांग श्याओयू पहली बार अपने घर से दूर दूसरे शहर में रहने का प्रैशर झेल रही हैं। वे दोनों बीजिंग अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की प्रथम वर्ष की छात्राएँ हैं और दोनों अपने परिजनों और मित्रों को मिस कर रही हैं। दोनों ने यह भी माना कि उन्हें बीजिंग की लाइफस्टाइल के अनुसार खुद को ढालने में भी दिक्कतें आ रही हैं।

19 वर्षीय वांग श्याओयू ने बताया कि बीजिंग अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय(बि आई एस यू) में उन्होंने कल्चर शॉक अनुभव किया है, हर जगह का अपना कल्चर होता है, यहां आकर मैंने ऐसा ही महसूस किया उदाहरण के लिए बीजिंग के लोग ज्यादा खुले विचारों के हैं मेरे प्रांत के लोगों की अपेक्षा। मैं जहां से आई हूँ, वहाँ के लोग ज़्यादा ट्रैडिशनल हैं।

प्रैशर, जीवन का कड़वा सच जिसे आज हर कोई अपने जीवन में कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी मोड़ पर ज़रुर झेल रहा है। ज़्यादातर बच्चे इसका सामना करते हैं जब वे किसी महत्वपूर्ण या निर्णायक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होते हैं। कॉलेज के छात्र भी इसका सामना करते हैं क्योंकि वे खुद को भविष्य में वर्कफोर्स में शामिल करने के लिए तैयार करते हैं। और बड़ों के साथ तो प्रैशर का साथ ऐसा है जैसे चोली-दामन का साथ हो। काम और निजी जीवन के बीच सामंजस्य बैठाते-बैठाते कब जीवन गुजर जाता है पता ही नहीं चलता। आप सब सोच रहे हैं कि हम सब अच्छी तरह जानते हैं- प्रैशर के बारे में। आप हमें क्या बता रही हैं। पर क्या हम ये समझ पाते हैं कि आखिर ये हैं क्या? क्या हम ये समझ पाए कि हम अपनी वजह से कभी-कभी दूसरों पर प्रैशर डालते हैं तो उन पर क्या गुजरती होगी?आज हम बात करते हैं चीनी अभिभावकों की - जो अपने बच्चों पर बेइंतहा प्रैशर डालते हैं। क्या वे कभी ये जान पाते हैं कि जब वे अपने बच्चों को परीक्षाओं में कम अंक लाने पर डाँटते, मारते हैं तो उनके बच्चों पर इसका क्या असर पड़ता है। उससे ज़्यादा वे ये नहीं जान पाते कि ऐसा कर वे अपने बच्चों पर ऐसे इमोशनल अत्याचार करते हैं जिनके निशान आजीवन तक उनके साथ रहते हैं जब वे उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। जी हाँ, आज के कार्यक्रम में हम बात करने वाले हैं इसी प्रैशर के बारे में जो बच्चों पर इतना बढ़ चुका है जिसे देख लगता है कि हर बच्चा प्रैशर कुकर बन गया है। इस तथ्य की पुष्टि तब हुई जब 459 विश्वविद्यालयों और माध्यमिक स्कूलों के छात्रों के सर्वे द्वारा यह पता चला कि 7 प्रतिश्त माध्यमिक स्कूलों के छात्र मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। यह संख्या 20 प्रतिश्त तक पहुँचेगी अगर हम मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अनिद्रा, मूडस का बदलना, मेमोरी लॉस(याददाश्त कमज़ोर) होना, शार्ट अटेंशन स्पेन और जीवन को लेकर उदासीनता को भी शामिल करें। इन सब समस्याओं के कारण बच्चों के अकादमिक प्रदर्शन पर, उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है और साथ-साथ कई व्यवहार संबंधी समस्याएँ भी जन्म ले लेती हैं। हंगजोउ म्युनिसीपल मेंटल इन्स्टीट्यूट के अध्ययन के अनुसार 3.76 प्रतिश्त जुनियर हाई स्कूल विद्यार्थी और लगभग 18.79 प्रतिश्त सीनियर हाई स्कूल विद्यार्थी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। केवल मनोवैज्ञानिक समस्याओं का ही सामना नहीं करना पड़ता शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। प्रैशर की अधिकता दृष्टि पर भी बुरा असर करती है। 1988 में किए गए अध्ययन ने यह दर्शाया कि सारा-सारा दिन किताबों में आँखें गड़ाने का असर यह पड़ता कि 18 प्रतिश्त प्राथमिक स्कूल के विद्यार्थी की नज़र कमज़ोर हो गई हैं। खतरे की बात तब सामने आई जब यह संख्या हाई स्कूल विद्यार्थियों में 49 प्रतिश्त तक और 73 प्रतिश्त तक कॉलेज के छात्रों में बढ़ गई। कुछ साल पहले पेइचिंग विश्वविद्यालय के मानसिक स्वास्थ्य संस्था द्वारा बताया गया कि 17 साल से कम आयु वाले 30 मिलियन चीनी छात्र भावनात्मक विकारों जैसे अवसाद या मानसिक उन्माद से पीड़ित हैं। क्या सच में चीनी अभिभावक अपने बच्चों पर इतना विनाशकारी असर डाल रहे हैं। पुराने समय से आज तक जो प्रमाण मिलते हैं उनसे जाहिर होता है कि यह वास्तविकता है। 2010 में किए गए सर्वे में 87 प्रतिश्त चीनी छात्रों ने कहा कि उन पर बहुत ज्यादा प्रैशर है अपने सहपाठियों से आगे निकलने की होड़ में और अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरना। कुछ छात्रों का यह भी मानना है कि अब पहले की तरह माता-पिता अपने बच्चों पर उतना दबाव नहीं डालते। अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का समर्थन करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि आजकल के बच्चे अपने भविष्य को लेकर काफी सजग रहते हैं। हाँ, लेकिन प्राथमिक तथा माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर उनके अभिभावक काफी प्रैशर डालते हैं।

वांग श्याओयू और वांग झ़ुशिंग ने कहा कि हमारे पैरेंटस हमें बहुत सपोर्ट करते हैं। अगर हम किसी विषय को ठीक से नहीं कर पा रहे हैं तो वो हम पर दबाव नहीं डालते या डाँटते नहीं। लेकिन फिर भी अगर हम लिन और छिन के द्वारा बताए गई एक घटना के बारे में सुने तो हमारा नज़रिया कुछ और ही होगा। ली 10 वीं कक्षा का छात्र है और अपने माता-पिता के द्वारा थोपे गए अत्याधिक पढ़ाई का बोझ न सह सका और घर छोड़कर भाग गया। ली ने अपने एक रिश्तेदार को पत्र भेजा जिसमें लिखा था कि मुझे लगता है कि मैं एक गधे की तरह हूँ जिसकी आँखों पर पट्टी लगाकर पीसने वाले पत्थर के साथ बाँधकर गोल-गोल घुमाया जाता है जैसे मुझे अच्छे ग्रेडस के इर्द-गिर्द घुमाया जाता है। बचपन से मुझे ऐसा लगता आया है कि मैं हाई-स्पीड से दौड़ने वाली मशीन की तरह हूँ जिसके पीछे ग्रेडस का भारी बोझ बँधा हुआ है और मैं एक अंधेरे रास्ते पर दौड़ता जा रहा हूँ। मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि कुछ और ही हूँ।

भला क्यों चीनी अभिभावक अपने बच्चों पर इतना दबाव डाल रहे हैं। उनका मानना है कि उनके बच्चे के लिए एक सफल कैरियर और सुखी जीवन पाने का सबसे अच्छा तरीका गुड एडयूकेशन ही है। प्राथमिक स्कूल में बच्चों पर प्रैशर डाला जाता है ताकि अच्छे अंक प्राप्त कर वे टॉप के हाई स्कूल में जगह प्राप्त कर सकें। जब वे हाई स्कूल में होते हैं तो फिर माता-पिता का दबाव होता है कि वे कॉलेज की प्रवेश परीक्षा जिसे यहां गाओखाओ कहा जाता है, उसमें सफलता प्राप्त करें। चीन में जो छात्र 3 दिन तक चलने वाले गाओखाओ परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं उन्हें टॉप के विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त होता है और जो सफल नहीं होते उन्हें दो या तीन साल के कुछ अन्य कॉलेज प्रोग्रामों के साथ समझौता करना पड़ता है। और जो फेल हो जाते हैं वे अगले साल दुबारा परीक्षा दे सकते हैं या तो फिर कुछ निजी संस्थानों में कोई कोर्स करते हैं।

जैसे-जैसे चीनी अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है। नौकरियों के लिए लगी होड़ क्रूर होती जा रही है और प्रतिष्ठित डिग्री पाने के लिए लगातार दबाव बढ़ता असहनीय होता जा रहा है। हर साल, चीनी अखबार परीक्षा के समय हो रही दुखद आत्महत्याओं की कहानियों से भरने लगे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कई चीनी छात्र अपने ऊपर बढ़ते जा रहे दबावों से बचने के लिए आत्महत्या करने जैसे खतरनाक कदम उठाने लगे हैं। 2006 में समाचार पत्र में एक ऐसी खबर पढ़ सबके रौंगटे खड़े हो गए जब 16 वर्षीय वू वेनवेन ने एक लेक में डूब कर अपनी जान दे दी जब स्कूल के अधिकारियों ने उसे एक महत्वपूर्ण परीक्षा में बैठने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसने अपने बाल ठीक से नहीं बाँधे थे और जब तक वह अपने बाल बाँध कर वापस लौटी तो उसे परीक्षा कक्ष में प्रवेश नहीं करने दिया गया क्योंकि परीक्षा शुरू हो चुकी थी। जाहिर है कि वह उस परीक्षा में फेल हो गई। उसके बाद उसने रोते हुए अपनी मां को फोन किया और वह अचानक गायब हो गई। बाद में उसकी लाश झील में पाई गई।

शांगहाई रुजिन अस्पताल के युवा मनोवैज्ञानिक परामर्श केन्द्र के चिकित्सक का कहना है कि चीनी युवाओं में मनोवैज्ञानिक समस्याओं के बढ़ने का मुख्य कारण पढ़ाई और परीक्षाओं के कारण होने वाला दबाव है।

एमी चुआ, दो बेटियों की चीनी मूल की अमेरिकन माँ का मानना है कि अगर दबाव को ठीक और सही रुप से लागू किया जाए तो उसका प्रभाव इस नतीजे तक नहीं पहुँचेगा। पिछले साल उनके द्वारा आनलाइन लिखे गए एक आर्टीकल टाइगर मॉम ने चीन के नेटीजनों के बीच तूफान खड़ा कर दिया था। उनके अनुसार एक बच्चे को शिक्षित करने का सबसे बढ़िया तरीका है कि उसे शर्मिंदा महसूस करवाया जाए फिर उससे कड़ी मेहनत करवाई जाए और उसे समझाया जाए कि वह बेहतर कर सकता है। चुआ का मानना है कि बच्चा यदि सही ग्रेडस प्राप्त करने में विफल रहता है तो उसे शर्मिंदा कर, दंडित किया जाए।

चुआ ने अपने संस्मरण टाइगर मॉम की जंग में यह लिखा कि कई चीनी माता-पिता का मानना है कि जब तक आप किसी भी काम में श्रेष्ठ नहीं तब तक आप केवल अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। किसी भी काम में श्रेष्ठ होने के लिए मेहनत करनी पड़ती है और बच्चे अपने आप अपने दम पर किसी भी चीज़ को सीखना नहीं चाहेंगे इसलिए ज़रूरी हो जाता है कि हम उनकी तहजीह को ओवरराइड करें। चुआ ने अपने आर्टिकल में यह भी लिखा कि अगर कभी किसी चीनी बच्चे को बी ग्रेड मिलता है- अव्वल तो ऐसा होगा नहीं और अगर हुआ तो पहले उस बच्चे के माता-पिता खूब चीखेंगे-चिल्लाएँगे, उनके घर का माहौल ऐसा हो जाएगा मानो कहीं बम विस्फोट हुआ है। उदासीनता से भरी उसकी चीनी माँ अपने बच्चे के लिए हज़ारों नहीं शायद सैकड़ों प्रैक्टिस पेपरस लाकर अपने बच्चे के साथ तब तक उसे पढ़ाती रहेगी जब तक उसके बच्चे के ग्रेडस बी से ए तक न आएँ।

इस आर्टीकल का विरोध करते हुए एक चीनी स्कूल के प्रधानाचार्य ने लिखा कि क्या माता-पिता जो कर रहे हैं क्या वह सही है। ऐसा करके क्या वे अपने बच्चे को नीचा नहीं दिखा रहे। माता-पिता को इस बात पर अधिक ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे को क्या करना पसंद है।

अभी हाल में जारी एक अध्ययन से यह पता चला है कि अब अमेरिकी माता-पिता की भी बढ़ती संख्या चुआ की तरह सोचने लगी हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि 6 में से 10 अमेरिकियों को लगता है कि माता-पिता अपने बच्चों पर स्कूल में बेहतर प्रदर्शन के लिए पर्याप्त दबाव नहीं डालते। मात्र 11 फीसदी अमेरिकियों ने कहा कि माता-पिता अपने बच्चों पर बहुत अधिक दबाव डालते हैं। विडंबना तो यह है कि चीनी माता-पिता ठीक इसके विपरीत हैं। लगभग दो तिहाई – वास्तव में 68 प्रतिश्त चीनियों ने कहा कि उनके माता-पिता स्कूल में टॉप करने के लिए उन पर बेइंतहा प्रैशर डालते हैं।

दिलचस्प, बात यह है कि बी आई एस यू कि तीनों छात्राएँ अपने आप पर प्रैशर डाल रही हैं और तनाव ले रही हैं। एक जपानी भाषा में सर्वश्रेष्ठ होना चाहती है तो दूसरी बिजनिस इंग्लिश में और तीसरी फाइनेंनस में मेजर कर रही है। तीनों अपने भविष्य को लेकर तनाव में रहती हैं कि हमारा आगे क्या होगा हम खुद नहीं जानते।

दोस्तों, यही जीवन की सच्चाई है। हमारी पहचान हमारी डिग्री से होती है। हम कितने सफल हैं ये हमारा पे चैक बताता है। तभी तो आमिर खान की फिल्म थ्री इडियटस में कहा गया है- गिव मी सम सनशाईन, गिव मी सम रेय, गिव मी अनदर चांस तो ग्रो अप वन्स अगेन। काश हम समय का पहिया उल्टा घूमा सकते ताकि इस जीवन की रेस में दौड़ती दुनिया की स्पीड थोड़ी धीमी कर पाते और बचपन को बचपन रहने देते और वो कर पाते जो हमारा दिल चाहता। ग्रेडस और मार्कस की फैक्टरी में बने कल-पुर्जे न होते। इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप सबसे विदा लेती हूँ। इस उम्मीद और अभिलाषा के साथ कि आप सब के जीवन से तनाव रहे कोसो दूर और हम बने रहे आपकी आँखों के नूर।

श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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