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आदान-प्रदान चीनी व भारतीय युवाओं की समान अभिलाषा है
2012-04-12 09:49:39

यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, हाल ही में भारतीय युवा व खेल मंत्रालय के निमंत्रण पर लगभग पांच सौ सदस्य वाले चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल ने भारत की नौ दिवसीय मैत्रीपूर्ण यात्रा की। सी.आर.आई. के हिन्दी विभाग के संवाददाताओं ने इस यात्रा का कवरेज किया। नौ दिवसीय यात्रा में न सिर्फ़ चीनी युवा प्रतिनिधियों, बल्कि भारतीय युवा दोस्तों ने भी यह विचार प्रकट किया है कि वर्तमान में आदान-प्रदान चीन व भारत दोनों देशों के युवाओं की समान अभिलाषा है।

भारत में हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल के अगुवानी के लिए जो भारतीय दोस्त आए थे, उन में कुन्दन नामक एक भारतीय युवक शामिल है। वे भारतीय गाइडों में एकमात्र ऐसा व्यक्ति हैं, जो चीनी भाषा बोल सकते हैं। वे चीन में तीन साल काम कर चुके हैं, और उस समय उन्होंने चीन के 30 से ज्यादा शहरों का दौरा किया था। उन्हें चीन को बहुत पसंद है। उन्होंने खुलकर हमारे संवाददाता से यह कहाः (कुंदन से इन्टरव्यू)

कुंदन की बातों पर सहमति बताते हुए चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल की एक सदस्य, पेइचिंग अस्पताल की कर्मचारी सुश्री ली मिन ने भी अपना विचार पेश किया। उन्होंने कहाः

मुझे लगता है कि आम तौर पर भारतीय लोग बहुत उत्साहशील हैं। उन में से कुछ लोगों ने चीन की यात्रा की है, और वे चीन से परिचित हैं। लेकिन ज्यादातर भारतीय लोग, खास तौर पर गरीब लोगों के लिये चीन को जानने का माध्यम बहुत सीमित और एकतरफ़ा भी है। हम चीनी लोग भी ऐसे हैं। मेरे ख्याल में भारत के प्रति मेरी जानकारियां भी बहुत कम है, और जानकारियां प्राप्त करने के रास्ते भी ज्यादा नहीं हैं। इस के कारण एक दूसरे को समझने में कुछ न कुछ गलतफ़हमियां भी संभव हैं। पर भारत पहुंचने के बाद मेरे दिमाग में कुछ नये विचार पैदा हो गये। मेरे विचार में वे बहुत मेहमाननवाज़ हैं, और बाहर से संपर्क बनाना चाहते हैं। पर खेद की बात है कि दोनों पक्षों के बीच आवाजाही व आदान-प्रदान के मौके बहुत कम हैं। मुझे लगता है कि चीन व भारत दोनों देशों के बीच आदान-प्रदान बहुत महत्वपूर्ण है। केवल युवाओं के बीच ही नहीं, हर क्षेत्रों व हर तबकों के लोगों के बीच आदान-प्रदान करने की निहायत ज़रूरत है।

चीन व भारत के बीच आवाजाही व आदान-प्रदान का इतिहास बहुत लंबा है। सातवीं व आठवीं शताब्दी के स्वी व थांग राजवंशों में यह आदान-प्रदान चोटी पर पहुंच गया। इस के लिए भारत से चीन आए बौध धर्म ने अहम भूमिका अदा की थी। इस बार चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल में एक साधु भी हैं। वे हैं चीन के हनान प्रांत के चोजो शहर में स्थित पेईशान य्वानरोन मठ के मठाध्यक्ष आचार्य शी क्यो चेन। प्राचीन चीन-भारत आदान-प्रदान में महान चीनी धर्माचार्य ह्वेनसान के योगदान की चर्चा में उन्होंने भाव विभोर के साथ कहाः

महान बौध भिक्षु ह्वेनसान ने दो महान काम किये थे, जिन पर सभी चीनी लोग बहुत गर्व महसूस करते हैं। पहला काम यह है कि जब वे नालंदा बौध विश्वविद्यालय में पहुंचे थे, उस समय नालंदा बौध विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था, उस का स्थान आज के विश्वविख्यात येल व हावर्ड यूनिवर्सिटी के समान था, नालांदा में ह्वेन्सान ने दस बार पंच परिषद आयोजित किये। पंच परिषद एक ऐसी धार्मिक सभा थी, जिसमें किसी भी जगत, किसी सीभी जाति या किसी भी समुदाय के लोग, चाहे वे उच्च वर्ग के राजा हो या नीच जाति के दास व अछूत हो, सभी बराबर रूप में भाग ले सकते थे। और पंच परिषद एक खुले स्थान पर आयोजित की गयी थी। वहां उपस्थित सभी लोग ह्वेनसान से सवाल पूछ सकते थे, अगर किसी सवाल का जवाब वह नहीं दे सका, तो माना कि यह पंच परिषद विफल हुई। लेकिन नालांदा में ह्वेनसान ने कुल मिलाकर दस बार पंच परिषद आयोजित की थी। भारत में किसी भी व्यक्ति ने बौध धर्म से जुड़े सवालों या अन्य सवालों पर उन्हें पराजित नहीं किया था। इसलिये ह्वेनसान नालंदा में एक बहुत प्रसिद्ध आचार्य बन गये। दूसरा काम यह है कि महाचार्य ह्वेनसान ने चीन वापस लौटने के बाद महान थांग राजवंश के पश्चिमी क्षेत्र की यात्रा वृत्तांत नामक एक पुस्तक रची। इस पुस्तक के विषय बहुत समृद्ध हैं। इस पुस्तक में तत्कालीन भारत के इतिहास, परंपराएं, रीति रिवाज़ व इमारत आदि विषयों के संदर्भ में विस्तृत जानकारियां दी गयी हैं। अगर भारतीय लोग अपने देश के इस काल का इतिहास जानना चाहते हैं, तो उसे यह पुस्तक पढ़ना पड़ेगा। यह एक महान काम है, जो हम सभी चीनी लोगों के लिये एक बहुत गौरव की बात है।

वर्तमान में चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में बौध धर्म की भूमिका की चर्चा में आचार्य शी क्वो चेन ने कहाः

चीन की बौध जगत ने ह्वेनसान की यात्रा के तर्ज पर भारत की यात्रा करने की एक गतिविधि आयोजित की है। इस के बाद दोनों देशों ने एक फैसला किया, जिस के अनुसार चीन सरकार ने भारत के बोधगया में एक चीनी मठ का निर्माण किया। और भारत सरकार ने भी चीन के श्वेत अश्व मठ में एक भारतीय मंदिर का निर्माण किया। इससे यह साबित हुआ है कि बौध धर्म ने चीन-भारत मित्रता को बढ़ाने के लिये एक नया द्वार खोला है।

संयोग की बात है कि चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल की सेवा करने वाली भारतीय रेल सेवा व पर्यटन लिमिटेड कंपनी के एक प्रबंधक श्री केशरा वत्स बौध धर्म के पवित्र स्थान बोधगया से आये हुए हैं। उन्होंने चीनी युवा प्रतिनिधियों को उन के जन्मस्थान का दौरा करने के लिए आमंत्रित किया। उनका कहना हैः (केशरा वत्स से इन्टरव्यू) न केवल भारतीय बौध जगत, बल्कि भारत के बाबासाहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉ. विजय पंढ़ारी पाण्डेय ने भी ऐसा विचार पेश किया है कि चीन व भारत को बहुत से क्षेत्रों में आदान-प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहाः (डॉ.विजय से इन्टरव्यू)

चीन में कई उच्च शिक्षालयों में हिन्दी भाषा का कोर्स खुलने को जानकर डॉ. विजय पंढ़ारी पाण्डेय बहुत खुश हुए हैं। उन के ख्याल में किसी दूसरे देशों की भाषा सीखने से द्विपक्षीय आदान-प्रदान को बड़ा बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहाः (डॉ.विजय से इन्टरव्यू)

चीन व भारत के बीच युवा प्रतिनिध मंडलों की एक दूसरे देश में यात्रा वर्ष 2006 से शुरू हुई है, अब तक छह साल हो चुके हैं। लेकिन ऐसे आदान-प्रदान गतिविधि को कैसे गहरा किया जा सकेगा?चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल के सदस्य, शेनशी प्रांत के सामाजिक विज्ञान अकादमी के अनुसंधानकर्ता वेइ ह्वा ने अपने विचार पर प्रकाश डालाः

मैंने गत वर्ष में भारतीय पांच सौ युवा प्रतिनिधि मंडल की सेवा करने का काम किया था। और इस बार चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल के एक सदस्य के रूप में मुझे भारत का दौरा करने का मौका मिला। इन दोनों गतिविधियों से प्राप्त अनुभवों से मुझे लगता है कि हालांकि इस प्रकार की आदान-प्रदान गतिविधि से कुछ परिणाम प्राप्त हो सकता है, लेकिन वह बहुत गहरा नहीं है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार अगर हम दोनों देशों के युवाओं को एक दूसरे को और अच्छी तरह से समझने, और एक दूसरे के समाज में घुलने मिलने का मौका दे दें, तो एक दूसरे देश में पढ़ने के लिए ज्यादा छात्र और विजिटिंग स्कॉलर भेजने का तरीका ज्यादा अच्छा होगा। अगर दोनों देशों के युवा एक दूसरे के देशों में आधा या पूरा एक साल रह सकेंगे, तो इसी देश के प्रति उन का अनुभव और गहरा होगा एवं समझ और गहरी होगी। इस के बाद जब वे अपने देश वापस लौटते हैं, तो वे ज़रूर अपनी मधुर यादें व वहां से मित्रता स्वदेश लौएंगे और अपने आसपास के लोगों को बताएंगे।

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