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तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रबंधन कार्य में परिवर्तन
2012-04-02 16:44:42
चीन के सछ्वान, छिंगहाई, कानसू और युन्नान आदि प्रांतों के तिब्बती बहुल क्षेत्रों व तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में कई हज़ार बौद्ध मठ हैं, जिनमें हज़ारों भिक्षु व भिक्षुणी रहते हैं। ये मठ और भिक्षु-भिक्षुणियां तिब्बती बौद्ध धर्म अनुयायियों की धार्मिक मांग पूरा करने , बौद्ध धर्म की संस्कृति के विकास में योगदान दे रहे हैं।

आधी शताब्दी पूर्व तिब्बत में भिक्षु व कुलीन वर्ग के विशेष प्रशासन वाली सामंती भूदास व्यवस्था कायम थी। पुराने तिब्बत में सभी खेती योग्य भूमि, घास के मैदान, वन, जंगल, नदियां और अधिकांश पशु पांच प्रतिशत से कम जनसंख्या वाले कुलीन लोगों, मठ के भिक्षुओं और अधिकारियों के हाथों में थे। इसके साथ ही उनके पास बड़ी संख्या में भूदास होते थे। तिब्बत के बौद्ध धर्म कॉलेज के उप प्रधान डोर्के छाइरांग ने कहा:

"प्रशासनिक और धार्मिक मिश्रित सत्ता प्रणाली की स्थिति में मठों का प्रबंधन अधिकार जीवित बुद्धों व उच्च स्तरीय कुलीन लोगों के पास थे। अधिकांश आम भिक्षुओं के पास प्रबंधन का कोई हक नहीं था।"

वर्ष 1959 में 14वें दलाई लामा सशस्त्र विद्रोह विफल कर भारत भाग गया। चीन की केंद्र सरकार ने तिब्बत में भूदास व्यवस्था व प्रशासनिक और धार्मिक मिश्रित सत्ता प्रणाली को रद्द कर दिया। तब 95 प्रतिशत जनसंख्या वाले भूदासों को जमीन समेत उत्पादन सामग्री मिली। वहां स्वतंत्र धार्मिक नीति लागू की जाती है, तिब्बती लोग स्वतंत्र रूप से भिक्षु बन सकते हैं और स्वेच्छा से मठ से इहलौकिक भी बन सकते हैं। विभिन्न मठों में तिब्बती बौद्ध धर्म के भिन्न-भिन्न संप्रदायों की राजनीतिक समानता होती है और मठों की सार्वजनिक राशि व संपत्ति का लोकतांत्रिक रूप से प्रबंधन किया जाता है।

लोकतांत्रिक सुधार किए जाने के बाद तिब्बत के विभिन्न मठों में प्रबंध समिति चुनी गई, जो लोकतांत्रिक प्रबंध करती है। इसकी चर्चा में डोर्के छाइरांग ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रबंधन व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता स्वप्रबंधन है। उनका कहना है:

"मठों में लोकतांत्रिक प्रबंधन एक ऐतिहासिक प्रगति मानी जा सकती है, जिसके मुताबिक मठों के औपचारिक भिक्षु इस में भाग ले सकते हैं और उनके पास सुझाव पेश करने का हक भी है।"

पचास से ज्यादा सालों में तिब्बती बौद्ध धर्म वाले मठों का पूर्ण विकास हो रहा है। वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में विभिन्न संप्रदाय वाले 1700 से अधिक मठ उपलब्ध हैं, जिनमें 46 हज़ार भिक्षु व भिक्षुणी रहते हैं।

डोर्के छाइरांग के अनुसार सामंती भूदास व्यवस्था से समाजवादी व्यवस्था तक परिवर्तित तिब्बती बौद्ध धार्मिक मठों के विकास को भी समाज के अनुकूल होना है। उनके विचार में गत शताब्दी के 80 के देशक के बाद मठों के भिक्षु अधिक से अधिक गांवों व पशुपालन क्षेत्र से आते थे। वे स्वयं किसान व चरवाहे थे, और उन्हें ऐतिहासिक व धार्मिक प्रशिक्षण कम मिले थे। भिक्षु बनने के बाद इन लोगों के वस्त्र बदल गए, लेकिन वैचारिक परिवर्तन नहीं हुआ। इसकी चर्चा में डोर्के छाइरांग ने कहा:

"ऐतिहासिक व आधुनिक काल के प्रति उनके पास जानकारी कम थी। इस तरह मठों के प्रबंधन के वक्त वे पुराने जमाने की व्यवस्था का प्रयोग करते थे। लेकिन तिब्बत के इतिहास में प्रशासनिक व धार्मिक मिश्रित सत्ता प्रणाली लागू की जाती थी, इस तरह उनका प्रबंधन तरीका आधुनिक समाज की प्रबंधन व्यवस्था से अनुकूल नहीं हो सकता था।"

डोर्के छाइरांग ने कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रबंधन व्यवस्था व तरीका का युगानुरूप प्रगति के साथ विकास होना चाहिए, न कि इतिहास के अनुभवों का प्रयोग। कानूनों व नियमावलियों तथा बौद्धिक सूत्रों का सम्मान करने वाली लोकतांत्रिक प्रबंधन व्यवस्था सही विकसित रास्ता है। इसकी चर्चा में डोर्के छाइरांग ने कहा:

"आजकल मठ में लोकतांत्रिक प्रबंध व्यवस्था लागू की जा रही है, जिसका देश के कानूनों, नियमों, नियमावलियों तथा धार्मिक सूत्रों के अनुसार प्रबंधन किया जाता है। इस प्रकार की व्यवस्था तिब्बती बौद्ध धर्म की विकसित दिशा ही नहीं, विकास का रूझान भी है।"

डोर्के छाइरांग ने जानकारी देते हुए कहा कि अब तिब्बती मठों में दो तरफ़ा लोकतांत्रिक प्रबंधन किया जा रहा है। मठ व भिक्षु कानून के अनुसार प्रबंधन करते हैं, जबकि सरकारी कार्यकर्ता भी कानून के मुताबिक काम करते हैं। डोर्के छाइरांग द्वारा चर्चित कानूनों में संविधा और राष्ट्रीय धार्मिक ब्यूरो द्वारा बनाया गया धार्मिक मामला नियमावली आदि शामिल हैं। धार्मिक मामला नियमावली में भिक्षुओं व मठों के लिए ठोस मांग पेश की गई है, जो मठों में प्रबंधन का महत्वपूर्ण आधार माना जाता है।

डोर्के छाइरांग के विचार में लोकतांत्रिक प्रबंधन में सुयोग्य व्यक्तियों की कमी सबसे गंभीर सवाल है। उनका कहना है:

"सरकार उन्हें मार्गदर्शन देने और नई प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने के लिए उन्हें मदद देती है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का तिब्बती बौद्ध धर्म कॉलेज, जिसमें मैं पढ़ रहा हूँ, कई जिम्मेदारियां भी उठाता है, जिनमें तिब्बती बौद्ध धर्म के जीवित बुद्ध अवतारों, तिब्बती बौद्ध धर्म के उच्च स्तरीय प्रतिभाओं तथा मठों की प्रबंधन समिति के सदस्यों का प्रशिक्षण आदि शामिल है।"

डोर्के छाइरांग के अनुसार मठ की प्रबंधन समिति के सदस्य के प्रशिक्षण में धार्मिक संस्कृति और प्रबंधन तकनीक शामिल हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म कॉलेज मठ के प्रबंधकों के प्रशिक्षण के लिए विशेष तौर पर विशेषज्ञों का आमंत्रण करता है, ताकि मठों के लिए ज्यादा से ज्यादा सुयोग्य प्रबंधकों का प्रशिक्षण किया जा सके।

इसके साथ ही अधिकांश भिक्षुओं की धार्मिक कार्रवाइयों व रोज़मर्रा के जीवन के लिए सरकार मठों में बिजली, पानी और मार्ग आदि सुविधापूर्ण वस्तुएं मुहैया करने वाली परियोजना लागू करती है। डोर्के छाइरांग के विचार में सरकार के संबंधित कदमों का अधिकांश भिक्षु स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा:

"अधिकांश मठ पहाड़ की चोटी पर स्थापित किए गए हैं, जहां पहुंचने के लिए यातायात की सुविधा अच्छी नहीं है। मठ के पास इसे सुधार करने की वित्तीय क्षमता नहीं है। वर्तमान में कई मठों को इस प्रकार के सवालों का सामना करना पड़ रहा है। मेरा विचार है कि यह जीवन का मूल सवाल है और जन जीवन सुधार से इसका घनिष्ठ संबंध होता है।"

बताया जाता है कि तिब्बत की स्थानीय सरकार मठों के भिक्षुओं व भिक्षुणियों के चिकित्सा व पेंशन सवाल हल करने में जोर देती है। आम तौर पर चिकिस्ता व पेंशन बीमा व्यक्ति के घरेलू रजिस्टर के अनुसार दर्ज किया जाता है। लेकिन मठों में सन्यास लेने वाले भिक्षु शायद अपने घरेलू रजिस्टर में अपनी जानकारी दर्ज नहीं करते हैं। इस सवाल के समाधान में सरकार ने विशेष दस्तावेज़ जारी किए, ताकि मठों में संन्यास ले रहे भिक्षु व भिक्षुणियां सुविधापूर्ण ढंस से चिकित्सा व पेंशन बीमा का उपभोग कर सकें।

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