न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ।
दोस्तों, हम अक्सर कहते हैं आजकल की युवा पीढ़ी एकदम अलग है। उन्हें किसी की चिन्ता नहीं, फिक्र नहीं, वे किसी की परवाह नहीं करते, केवल अपने बारे में सोचते हैं। तो चलिए, आज हम आपको एक ऐसी चीनी युवा लड़की की कहानी सुनाते हैं जिसे बचपन क्या होता है, बचपन में खेले जाने वाले खेल-खिलौने कैसे होते हैं। उनसे खेलने का मौका तो दूर उन्हें देखना तक नसीब नहीं हुआ। कम उम्र से ही अपनी बीमार माँ की तिमारदारी में लगी ये नन्ही-सी जान कब बड़ी हो गई उसे खुद नहीं मालूम।
मंग शिशिआन काउंटी, शांक्सी प्रांत में नवम्बर 1991 में पैदा हुई थी। जब वह पाँच साल की थी, उसके पिता की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी और उसकी गरीब माँ को उसे लियू फंगयिंग के पास उनकी दत्तक पुत्री बनाकर भेजना पड़ा। लियू, अपनी दयालुता और गुणों के कारण बहुत मानी जाती थी लेकिन उसकी अपनी कोई औलाद नहीं थी। सौभाग्य से उस समय लियू एक बच्चा गोद लेने के बारे में सोच रही थी और मंग के बारे में जानकर उसे खुशी-खुशी अपने घर ले आई। शुरुआत में उसे इस बात की चिंता थी कि मंग उसके साथ कैसे एडजस्ट कर पाएगी और दोनों एक-दूसरे के साथ कैसे रहेंगी लेकिन उसकी चिंता उसी रात दूर हो गई जब मंग ने उसे माँ कहकर बुलाया और वह नन्ही-सी परी अपने दत्तक माता-पिता के लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर आई। एक पुरानी कहावत है न, बुरा वक्त कभी बताकर नहीं आता। 1998 में, लियू को स्पाइनल स्टेनोसिस (एक तरह की बीमारी जिसमें स्पाइनल कैनाल संकुचित हो जाती है) हो गया था। वह उपचार के कारण तो बच गई, लेकिन बैसाखी के सहारे चलती थी। एक साल बाद उसका पति, जो एक विकलांग पत्नी के साथ रहने की कठिनाइयाँ नहीं सहन कर सका, उसने अपने परिवार का त्याग कर दिया। पहले से ही गरीबी से जूझते परिवार को इस फैसले ने और भी अधिक कठिनाई में डाल दिया।
उस वर्ष, मंग केवल आठ साल की थी। उसके सहपाठी जो अपने माता-पिता के प्यार और दुलार के साथ खुशहाल बचपन व्यतीत कर रहे थे, वहीं उसके विपरीत मंग ने एक वयस्क की भांति अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर ले लिया। सर्दियों के महीनों के दौरान, सुबह जल्दी उठकर वह लोहे के ओवन में आग जलाती, वह इतनी लम्बी भी नहीं थी कि चूल्हे तक पहुँच पाती इसलिए एक स्टूल पर खड़े होकर वह खाना पकाती। कितनी बार वह फर्श पर गिरती, उसे याद तक नहीं है, लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की।
हर दिन वह अपनी दत्तक माँ को नहाने-धोने कपड़े बदलने में मदद करती, मंग गंदी चादरें धोती और लियू के मल-मूत्र बाहर फेंकती। मंग सब्जियों को पहचान कर खरीदना सीख गई और लियू के कम वेतन से, जो उसकी बीमारी के कारण सेवानिवृत्त होने के बाद मिलता था उससे गुजारा करने लगी। कभी कभी, हालांकि, मंग को पड़ोसियों से पैसे उधार लेने पड़े। ऐसी कठिनाइयों के बावजूद, वह बालिका जीवन के प्रति आशावादी बनी रही। धर्मपरायणता और दृढ़ता के साथ, उसने पूरा आकाश ही अपने कंधों पर उठा लिया था। इससे भी अधिक आश्चर्य की बात है, उसने स्कूल जाना कभी नहीं छोड़ा, बल्कि वह हमेशा अच्छे अंक प्राप्त करती थी।
नन्ही बालिका के उत्साहवर्धन से प्रोत्साहित, लियू मजबूत बनी रही और उसने लड़ना नहीं छोड़ा। "पहले कुछ वर्षों तक जब मैं बीमार पड़ी, मेरा मूड बहुत खराब रहता था और हमेशा अपना आपा खो देती लेकिन मेरे साथ मेरी बेटी ने कभी झगड़ा नहीं किया और वह मुस्कुराते हुए मुझे कहानियाँ सुनाती। कभी-कभी अलग-अलग चेहरे बनाकर, मुझे हँसाती थी।
"मेरे सामने उसने एक आंसू भी कभी नहीं बहाया और वह हमेशा मुस्कुराती रहती थी। वह अक्सर मुझे यह कहकर प्रोत्साहित करती, चिंता मत करो। कम से कम मैं तुम्हारे पास हूँ। हम किसी भी तरह कठिनाइयों का समाधान खोज लेंगे। जब वह मंग के प्रयासों के बारे में बताती, लियू का गला भर आता, मैंने केवल तीन साल तक उसकी देखभाल की, लेकिन वह मेरा ख्याल जीवन भर रखना चाहती है।"
2007 में, मिडिल स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद मंग ने शांक्सी सामान्य विश्वविद्यालय के लिंफन कॉलेज में दाखिला लिया। दुर्भाग्यवश, लियू की तबीयत पहले से भी बदतर हो गई। उसे लकवा हो गया और उसने अपनी देखभाल करने की भी क्षमता खो दी। मंग ने शिशिआन काउंटी में कॉलेज के परिसर में अध्ययन करना चुना ताकि वह लियू की देखभाल कर सके। अगले दो वर्षों तक, मंग ने अपनी पढ़ाई और लियू का ख्याल रखने के बीच संतुलन बनाए रखा। 2009 में, मंग को अपनी तीन साल की पढ़ाई पूरी करने के लिए लिंफन कॉलेज के मुख्य परिसर में स्थानांतरित होना पड़ा। उस उम्र में जब उसे बाहरी दुनिया में कदम रख अपने लिए सुनहरे भविष्य के सपने देखने चाहिए, मंग लियू का किस प्रकार ख्याल रखना चाहिए उस लेकर चिंतित थी और कैसे वह अपने घर से दूर शहर में जाकर पढ़ाई करेगी।
मंग दुविधा में थी। कुछ दिनों के सोच-विचार के बाद उसने लियू को अपने साथ लिंफन ले जाने का फैसला लिया। मंग और लियू लिंफन पहुँचे और उन्होंने वहाँ कॉलेज के पास एक छोटा-सा कमरा किराए पर लिया। उसने कॉलेज से अनुमति ली कि वह केवल दिन की कक्षाओं में आएगी ताकि रात के समय वह लियू की देखभाल कर सके। उनका कमरा छोटा था, कम से कम 10 वर्ग मीटर का, इतना छोटा कि केवल एक बिस्तर दीवार के साथ सटा कर रखा जा सके। मंग ने बिस्तर पर एक बोर्ड रखा ताकि बिस्तर बड़ा बन जाए और वे दोनों एक बिस्तर पर सो सकें। मंग ने गद्दे पर एक बड़ा-सा प्लास्टिक भी बिछा दिया ताकि लियू अगर बिस्तर गंदा भी करें तो वह खराब न हो। एक छोटी-सी मेज पर टी.वी रखा और एक साधारण-सी मेज़ रसोईघर का काम देती थी।
मंग के पास समय की कमी रहती थी, वह सुबह 6 बजे उठकर, नहाकर, लियू को तैयार करती, उसे नहलाती, ब्रश करवाती और उसके बाल सवांरती। मंग सुबह 9बजे से दोपहर तक कक्षा में जाती और फिर दोपहर बाद जल्द घर लौटकर लियू के लिए खाना पकाती और उसे खिलाती।
लंच ब्रेक के दौरान, मंग लियू के हाथ-पैर धुलवाकर मसाज करती और उसकी मांसपेशियों को व्यायाम करवाती। वह लियू के शरीर पर प्लास्टर दवाई लगाती और मल- मूत्र साफ कर लियू को साफ करती। दोपहर 2 बजे वह अपनी कक्षा के लिए चली जाती। हर रात, वह भोजन पकाती, घर के काम करती थी और होमवर्क पूरा करने से पहले लियू की देखभाल करती।
लियू की बेहतर देखभाल करने के लिए, मंग ने नर्सिंग पर आधारित कुछ किताबें खरीदीं। जैसे-जैसे समय बीतता गया मंग एक कुशल "शौकिया नर्स बन गई।" हर दिन, मंग समय निकाल कर लियू से बातें करती। लियू मंग की सेवा के बारे में बताते हुए सुबक-सुबक कर रोती है और कहती है कि अगर आज मैं जिंदा हूँ तो उसके पीछे केवल मंग के प्रयास हैं। मंग विचारशील और समझदार बेटी है, बहुत शांत व्यवहार है उसका। मंग ने शायद ही कभी स्वादिष्ट भोजन खाया है या उसने अपने लिए नए कपड़े खरीदे हैं। जब उसकी उम्र के साथी अपने लिए महंगे सौंदर्य प्रसाधन खरीदने में पैसे गंवाते, वह साधारण कपड़ों और बालों वाली साधारण लड़की का जीवन व्यतीत करती है। वह लियू की चिकित्सा के लिए पैसे बचाती है। 2010 में गर्मी की छुट्टी के दौरान, मेंग और लियू लिंफन में ही रुके हुए थे, मंग ने पर्चे बाँटने की पार्ट टाइम नौकरी कर ली। उस दौरान उसने 1300 जो कि लगभग 200 अमरीकी डॉलर होते हैं, कमाए। उसने इन पैसों से लियू के लिए पोर्क खरीदा।
लियू की कहानी सुनने के बाद तीसरा पीपुल्स अस्पताल ने लियू को मुफ्त पुनर्वास उपचार प्रदान किया। मंग प्रत्येक दिन उसकी 240 बार सिट अप और 200 बार पैर खींचकर व्यायाम करने में मदद करती है। वह लियू के हाथ,पैर और पैरों की उंगलियों की मालिश करती है। मंग और मेडिकल स्टाफ के सावधानीपूर्वक प्रयासों के कारण लियू की तबीयत में बहुत सुधार आया है। डॉक्टरों का कहना है अब यह संभव है कि लियू फिर खड़ी हो सकती है। मंग एक साधारण लड़की है लेकिन उसके इतने सालों की सेवा, दृढ़ता और निष्ठा इतनी असाधारण रही है जिसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। चीनी नेटीजन अब उसे सबसे सुंदर लड़की कहते हैं। इस साल सितंबर में मंग को राष्ट्रीय नैतिक मॉडल के रुप में नामित किया गया। चीन में एक कहावत है कि जब बच्चों के माता पिता दीर्घकालिक बीमारी का सामना कर रहे होते हैं तो बच्चों का प्रेम खत्म हो जाता है। मंग ने साबित कर दिया है कि यह गलत है।
दोस्तों, आप सब को मंग की कहानी बताने का मकसद बस इतना है कि काउंट यौअर बलैसिंगस यानि ईश्वर के दिए उपहारों का हमें हमेशा शुक्रियादा करना चाहिए। जहाँ आज के मटिरिलिस्टिक(भौतिकवादी) दुनिया में हम कभी संतुष्ट नहीं होते जो हमारे पास है,शिकायत करते रहते हैं कि हमारे पास केवल लैपटॉप है, आई पैड नहीं, आई फोन नहीं, रहने को घर है, पर बंगला नहीं। वहाँ अपने आस-पास नज़र घुमाकर ज़रा देखे तो मंग जैसी एक बच्ची जिसे जीवन ने संघर्षों के अलावा कुछ दिया ही नहीं। हिम्मत की दाद दीजिए ऐसे जिंदादिल, हिम्मती, साहसी लोगों को जो जीना क्या होता है, सीखा देते हैं।
श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।
तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार