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11-12-13
2011-12-19 17:04:40

न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। दोस्तो, देखते-ही-देखते 87 हफ्ते बीत गए इस न्यूशिंग स्पेशल के सफर में आप सब के साथ और पता ही नहीं चला वक्त कैसे बीत गया। न्यूशिंग स्पेशल के सफर में हमारी मुलाकात कला, साहित्य, गीत-संगीत, फिल्म जगत से जुड़े कई जानी-मानी हस्तियों के साथ हुई तो साथ-साथ एड्युकेशन फिल्ड से जुडे़ लोग भी मिले, तो कई लोग ऐसे भी मिले जो खुद को पूरी तरह से भूल समाज सेवा के साथ जुड़ गए हैं जिनका एक मात्र लक्ष्य है सबको शिक्षित करना। हर मुलाकात हमें कुछ नया सिखा गई, जीवन को जीने का नया-निराला ढंग बता गई और बस, यह कहते हुए आगे बढ़ना सीखाया कि रुक जाना नहीं तू कहीं हार के कांटों पे चल के मिलेंगे साए बहार के। जी और दोस्तो आपके सहारे, लगातार मिलते आपके प्यार, दुलार के सहारे हमें बहारें ही देखने को मिली और आगे भी उम्मीद करते हैं कि कभी न देखें पतझड़, कभी न देखें पतझड़, जहाँ भी कदम रखें वहाँ बिछे हो केवल फूल ही फूल। बना रहे यूँ साथ आपका हमारा जैसे माला में गुँथा हुआ फूल।

चलिए, दोस्तो आज के कार्यक्रम में हम बात करने जा रहे हैं ममता की मूर्त, इस धरती पर अपने बच्चों के लिए भगवान का रूप जो खुद हर गम, हर तकलीफ बर्दाश्त कर लेगी बिना एक शब्द कहे लेकिन अपने बच्चों पर कभी कोई आँच न आने देगी ऐसी होती है माँ। एक ऐसी माँ की कहानी जो केवल अपने बच्चों के लिए जीती है, एक ऐसी कहानी जो मैं आप सब के साथ साझा करना चाहती हूँ।आज हम आपको पूर्वी चीन के आनहुई प्रांत के चियुन पहाड़ों पर रहने वाली एक ऐसी माँ की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसे सुन आपकी आँखें भी नम पड़ जाएंगी। यहाँ चीन में लोग उनकी कहानी को माँ के निःस्वार्थ बलिदान और प्रेम की कहानी कहते हैं। हर रोज़ 4000 सीढ़ियाँ चढ़ती-उतरती हैं क्यों करती है वह भला ऐसा आइए जानते हैं।

पूर्वी चीन स्थित आनहूई प्रांत के हुआंगशान गाँव में रहने वाली 48 वर्षिय वांग मेईहोंग हर दिन तड़के सुबह जागकर खाना पकाती हैं जब ज्यादातर गाँववासी सो रहे होते हैं। नाश्ता करने के बाद शुरू होता है उनका दैनिक कार्य, जिसमें गैस टैंक, पेय और सब्जियों समेत 70 किलो से भी ज्यादा का सामान अपने कंधों पर उठाकर पहाड़ों पर एक दिन में 2 से 3 राउंड लगाती हैं जहाँ एक राउंड 10 किलोमीटर से भी अधिक का होता है। सुनकर चौंक गए न आप। उनके मेहनतकश जीवन की शुरूआत हुई 1990 में, जब वांग ने स्थानीय गाँववासी शुहुआ से शादी की। शादी के एक साल बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, उसका नाम रखा वांग लिझंग। लेकिन प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था। बच्चे को जन्मजात रंगहीनता एल्बनीसम नामक रोग का सामना करना पड़ा और वह लगभग नेत्रहीन था। चीन की परिवार नियोजन-नीति के अनुसार, अगर कोई महिला एक विकलांग बच्चे को जन्म देती है तो वह एक दूसरे बच्चे को जन्म दे सकती है। उसके एक साल बाद वांग मेईहोंग ने जुड़वाँ बच्चों, एक लड़का और एक लड़की को जन्म दिया। स्वस्थ, और सुंदर जुड़वाँ बच्चों के आने से परिवार में खुशियाँ फिर लौट आईं। लेकिन परिवार पर एक बार फिर दुख का पहाड़ टूट पड़ा और भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। 1994 में वांग शुहुआ मछली पकड़ते समय नदी में डूब गया और उसकी मृत्यु हो गई। वांग मेईहोंग के लिए तो जैसे सारी कायनात ही उस पर टूट पड़ी और उसकी दुनिया में काला अंधेरा छा गया। वांग मेईहोंग के लिए यह किसी भारी झटके से कम नहीं था। अब उसके ऊपर जिम्मेदारी थी तीनों बच्चों के पालन-पोषण की और परिवार द्वारा मित्रों और पड़ोसियों से घर बनाने के लिए, 5000 युआन कर्ज लौटाने की। उसके साथ-साथ उस साल बाढ़ में उनकी सारी फसलें भी बह गईं थी।

अक्तूबर 1994 में चियुन पर्वत पर प्रमुख ताओइस्त मंदिर की पुनर्निर्माण-परियोजना शुरू हुई, कई मजबूत ग्रामीण पुरुष कुली का काम करने लगे।वे पहाड़ पर मंदिर के निर्माण में लगने वाली सामग्री जैसे ईंटों और सीमेंट को ले जाने वाला काम करने लगे। वांग ने कुली बनना चाहा, हालांकि उसे याद था कि अपने हनीमून के दौरान वह अपने पति के साथ पहाड़ पर चढ़कर कितना थक गई थी और उसके पैर भी काँपने लगे थे।अंत में उसने निर्णय लिया कि उसके पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उसे अपने बच्चों का पेट भरने के लिए पैसे कमाने थे।मजबूत इरादों वाली वांग उस क्षेत्र की एकमात्र महिला कुली बन गई। कभी-कभी जब वह बहुत व्यस्त रहती तो अपने माता-पिता के घर में बच्चों को छोड़ देती थी ताकि कोई उनका ध्यान रख सके लेकिन उनका घर भी 20 किलोमीटर दूर था। वांग के बुजुर्ग माता-पिता ने उससे पुनर्विवाह का आग्रह किया ताकि उसके जीवन में कठिनाइयों का बोझ कम हो सके। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और अपने बच्चों को खुद अकेले पालने का फैसला लिया। इतना समय बीत जाने के बावजूद आज भी वांग को याद है 21 अक्तूबर 1994 की सुबह जब अपने कंधों पर कहारों की तरह डंडे की दोनों ओर सामान बांधकर उसने कुली का काम करना शुरू किया। चीनी भाषा में ऐसे लोगों को थियाओ फू के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर एक आदमी को 50 किलो सामान डंडे पर ढोकर ले जाने के लिए पाँच युआन मिलते थे जो लगभग 77 अमरीकी सेंट होता है। वांग ने ज्यादा पैसे कमाने के लिए 90 किलो सामान डंडे पर ढोकर ले जाने का फैसला लिया। उसे गंतव्य तक पहुंचने के लिए 4,000 से अधिक सीढ़ियों पर चढ़ना था और चट्टानें जो एक सीधी दीवार की तरह खड़ी थी के सहारे छह या सात किलोमीटर की यात्रा करनी थी। उसके लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी। दोनों उसकी दृढ़ता और शारीरिक क्षमता का इम्तहान था। पहले तो वांग को लगा कि वह कर लेगी लेकिन आधे रास्ते में ही वह पसीने से तर हो गई और रास्ते में ही उसकी सांस फूलने लगी जबकि दूसरे कुली पहाड़ की चोटी पर पहुंच गए थे। उसे थकान के कारण चक्कर आने लगे और वह बेहोश होकर चट्टान पर गिर पड़ी। उसने एक मन तो काम छोड़ने का बना लिया लेकिन जब उसकी आँखों के सामने उसके बच्चे बिना खाना खाए सोते हुए दिखाए दिए तो वह फिर उठ खड़ी हुई। उसकी शक्ति और दृढ़ संकल्प ने उस की आगे बढ़ने में मदद की। 9 घंटों के संघर्ष के बाद उसने अपने पहले दिन का काम पूरा किया।जैसे ही उसने कंधों से माल उतारकर रखा उसके कंधों में चुभन के साथ टीस उठी और भयानक दर्द महसूस किया। जब उसने अपने जूते उतारे तो पैरों में छाले पड़ गए थे और उनसे खून बह रहा था। लेकिन जब उसने अपने हाथों में अपने पहले दिन की कमाई 9 युआन देखे तो सारा दर्द भूल गई। घर पहुँचने तक उसके शरीर में जान ही नहीं बची और सोचने पर मजबूर थी कि, "क्या मैं यह काम कर पाऊँगी" लेकिन अपने बच्चों को चैन की नींद सोते हुए देखकर उसे महसूस हुआ कि उसकी मेहनत सार्थक है। पहले दिन थकावट के कारण बिस्तर पर सिर रखते ही उसे नींद आ गई। अगले दिन सुबह कंधे में औषधीय जड़ी बूटियाँ मलकर वह निकल पड़ी अपने काम पर। एक पुरानी कहावत है न खुदा भी उसकी मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं। एक महीने के भीतर वांग ने अपने काम में कुछ महारत हासिल कर ली थी ताकि उसका काम कुछ आसान हो सके। इस तरह लगातार वह अपना काम करती रही धूप हो या बारिश या हो कड़कड़ाती सर्दी,या बर्फबारी। काम के बीच मिले समय में अपने बच्चों के लिए गैस, चावल ,पानी आदि भी खरीद लाती। किसी-किसी दिन तो सामान लादे तीन फेरी भी लगाती ताकि उसके ग्राहकों को अपना सामान समय पर मिले। कभी-कभी तो रात को भी काम करती थी क्योंकि कम्पनी रात को काम करने वालों को डबल पैसे देती थी। जून 2004 में कई दिनों तक लगातार बारिश हो रही थी और वांग भारी बोझ लिए पहाड़ों पर चढ़ रही थी। बारिश के कारण सीढ़ियाँ गीली थी और उन पर फिसलन थी। उसने चलने में बहुत कठिनाई हो रही थी। अचानक से उसका पैर सीढ़ी पर जमी काई पर पड़ा और वह फिसल गई और गिर गई। कुछ दयालु राह चलते लोगों ने उसकी मदद की, लेकिन वांग केवल माल के बारे में चिंतित थी। पोल एक चीड़ के पेड़ की शाखाओं के बीच फंस गया था यह देखकर उसे राहत मिली। कुछ कुलियों, ग्रामीणों द्वारा सहायता मिलने पर उसे अस्पताल पहुँचाया गया जहां उसके टूटे टखने का इलाज किया गया। एक महीने के बाद वह फिर अपने काम पर वापस आ गई हालांकि वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं थी। लेकिन बच्चों की खातिर उसे काम करना था। भले उसकी आय कम थी लेकिन उसकी मेहनत के कारण परिवार की माली हालत में सुधार होने लगा और दो साल के भीतर धीरे-धीरे उसने कर्ज भी चुका दिया। वांग के बच्चे भी समझ गए थे कि उनकी माँ जो भी कर रही है उनके भले के लिए ही कर रही है। वांग की बेटी कभी-कभी उससे पूछती है कि क्यों लोग पहाड़ों पर रहते हैं जिनके कारण मेरी माँ को उन्हें सामान पहुँचाने के लिए ऊँची चोटी तक जाना पड़ता है और इतना दर्द और तकलीफ़ सहनी पड़ती है। वांग के कंधों पर भूरे रंग की मोटी परत बन गई है जो लगातार डंडों को कंधे पर रखने के कारण सूज गए हैं। वांग की बेटी अपनी माँ के जख्मों पर मलहम लगाते हुए सिसक-सिसक कर रोती है। बच्चे अब बड़े हो रहे हैं और यह सब देखकर अपनी माँ के प्यार और देखभाल का कर्ज चुकाने का प्रयास करते हैं। अपने स्कूल की छुट्टियों के दौरान दोनों भाई-बहन छोटे-मोटे काम करके अपनी माँ की मदद करते हैं। बेटे ने किसी होटल में डोरमैन का काम किया और बेटी किसी पर्यटन स्थल पर साफ-सफाई का काम करती। वांग के 44 वें जन्मदिन पर दोनों बच्चे मिलकर अपनी माँ के लिए एक बड़ा केक लेकर आए। वांग ने कहा कि क्यों इस केक पर पैसे बर्बाद किए तो बच्चों ने कहा कि हम इसके द्वारा आपके किए बलिदानों और हमें प्यार करने के लिए धन्यवाद कहना चाहते हैं।

वांग की अब बस एक ही तमन्ना है कि उसके बच्चे पढ़-लिखकर अपना जीवन बेहतर बनाए क्योंकि उसे गरीबी के कारण पढ़ने का मौका नहीं मिला और अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। जब वांग को पता चला कि उसके जुड़वां बच्चों ने विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा पास कर ली तो उसे लगा कि उन दोनों ने उसकी आजीवन इच्छा पूरी कर दी थी। उसकी बेटी को आनहुई चिकित्सा विश्वविद्यालय में प्रवेश मिला जबकि उसके बेटे को आनहुई प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में।दोनों प्रांत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में आते हैं। अब वांग का बड़ा बेटा पूर्वी चीन के शांगहाई नगर पालिका में मैनुअल काम करता है। वह अक्सर अपनी माँ को पैसे भेजता है ताकि वो जुड़वाँ बच्चों की शिक्षा के खर्च को कवर कर सके। वांग की कहानी सुन कई लोग उसकी मदद करने के लिए आगे आए। लगातार इतने लंबे समय तक इतनी मेहनत करने के बाद आज वांग को कई स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। उसे गठिया की तकलीफ है और वह कमर से नीचे झुक नहीं सकती और जब बारिश होती है या मौसम नम है तो वह बिस्तर में करवट नहीं ले पाती। अब तो पहाड़ों पर सामान ले जाने के लिए केबल बन गई हैं। कई कुलियों ने अपना काम छोड़ कोई दूसरा काम तलाश लिया है। लेकिन चियुन पर्वत पर आज भी वांग एकमात्र महिला कुली है जिसे अपने कंधों पर सामान ढोते हुए देखा जा सकता है।

श्रोताओ, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। इसी के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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