स्कूली छात्र-छात्राओं को गर्मियों में एक लम्बी छुट्टियां मिलती हैं। लेकिन दोपहर बाद दक्षिण-पूर्वी चीन के चांग सू प्रांत के शिंग ह्वा शहर के दबाओ कस्बे के काओली गांव के एक क्लासरूम में बीस से ज्यादा छात्र-छात्राएं कक्षा में जोर-जोर से पढ़ाई करते हैं। इस गांव में रहने वाली 24 वर्षीय शेन फिंग उनकी अध्यापिका हैं। शेन फिंग विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद अपने गांव में युवा लीग के अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं और साथ ही अध्यापिका भी।।
वर्तमान में चीन के कई अन्य गांवों की तरह चांग सू प्रांत के शिंग ह्वा शहर के दबाओ कस्बे के काओली गांव में कई"ल्योशो अरथुंग"हैं। चीन में अर्थव्यवस्था के तेज विकास के साथ "ल्योशो अरथुंग"नामक एक विशेष शब्द ईजाद हुआ है, जिसका मतलब है माता-पिता या परिवार में से एक व्यक्ति गांव छोड़कर शहर में मज़दूरी करता है, जबकि बच्चे गांव में रहते हैं। ये बच्चे या तो अपने दादा-दादी या मां-बाप में से एक के साथ गांव में रहते हैं। ऐसे ही बच्चों को लोग आम तौर पर "ल्योशो अरथुंग"कहते हैं। "ल्योशो अरथुंग"के माता-पिता या परिजन अक्सर अन्य दूर व बड़े शहर में मजदूरी करते हैं। दादा-दादी के साथ रहते हुए उन्हें मां-बाप से मिलने का मौका भी कम मिलता है। इन बच्चों के लिए फ़ोन पर अपने मां-बाप से बात करना या दूसरे शहर से पैसे मिलना माता-पिता का प्यार महसूस करने का सिर्फ एक ज़रिया है।
सर्वेक्षण के अनुसार अब तक चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में "ल्योशो अरथुंग"की संख्या 5 करोड़ 80 लाख से भी अधिक है, जिनमें लगभग 57 प्रतिशत "ल्योशो अरथुंग"के घर में माता या पिता बाहर मजदूरी करता है और बाकी 43 प्रतिशत बच्चों के मां-बाप दोनों बाहर रहते हैं। 80 प्रतिशत "ल्योशो अरथुंग"अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहते हैं, 13 प्रतिशत के बच्चे रिश्तेदारों और अपने मां-बाप के दोस्तों के साथ रहते हैं और 7 प्रतिशत बच्चों के अभिभावक नहीं हैं। काओली गांव में 30 "ल्योशो अरथुंग" हैं। इन बच्चों के माता-पिता अक्सर हर साल वसंत के दौरान एक बार घर वापस जाते हैं और कुछ बच्चों के माता-पिता हर दो या तीन साल में सिर्फ एक बार घर वापस जाते हैं। बचपन में अपने माता-पिता के साथ रहने का समय कम होने की वजह से उन बच्चों की शिक्षा एक बड़ा व गंभीर सवाल बन गई है। उन बच्चों को अपने परिवार से ज्यादा प्यार नहीं मिल सकता है, अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहने के समय वे अच्छी तरह उन बच्चों को शिक्षा मुहैया नहीं करा पाते हैं, जिससे उनके जीवन व मानसिक विकास पर बुरा असर पड़ता है। कई"ल्योशो अरथुंग" का जीवन नाजुक, संवेदनशील व अकेलेपन में गुजरता है। अब चीन के समाज के विभिन्न जगतों के लोग "ल्योशो अरथुंग"की व्यावहारिक समस्याओं पर बड़ा ध्यान देने के साथ-साथ उनके विकास पर ध्यान दे रहे हैं , काओली गांव के युवा लीग के अध्यक्ष शेन फिंग उनमें से एक हैं।
वर्ष 2009 में विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग से स्नातक होने के बाद शेन फिंग काम करने के लिए किसी बड़े शहर नहीं गयी। उसने काओली कांव में युवा लीग की अध्यक्ष का काम करना शुरू किया। वर्ष 2010 में गर्मी की छुट्टियों से अध्यक्ष का काम करने के अलावा उसने "ल्योशो अरथुंग"को छुट्टियों में खुशियां देने के लिए एक आशा शीर्षक नामक अंग्रेजी अनिवार्य परामर्श केंद्र की स्थापना की। हर साल गर्मी व सर्दियों की छुट्टियों में वह अंग्रेज़ी के अनिवार्य परामर्श स्टेशन में अपनी अंग्रेजी की स्थिति उन्नत करने वाले छात्रों की गिनती करती है। बाद में स्कूल के हर केंद्र के छात्रों की स्थिति के अनुसार वह अंग्रेजी अनिवार्य परामर्श का विषय तैयार करती हैं।
शेन फिंग ने कहा कि वर्तमान में मेरे अंग्रेजी अनिवार्य परामर्श केंद्र में कुल पच्चीस छात्र हैं। रोज शाम को ढाई बजे से साढे पांच बजे तक सीखने के लिए उन छात्रों को संगठित करती हूं। मुझे विश्वास है कि ज्ञान लोगों का भाग्य बदल सकता है और शिक्षा में भविष्य की आशा देखी जा सकती है। हालांकि यह काम आसान नहीं है, लेकिन बच्चों के सुन्दर चेहरों को देखकर मुझे बहुत खुशी होती है। छुट्टियों में मुक्त अनिवार्य परामर्श केंद्र के ज़रिए बच्चों के सीखने की गारंटी की गई है और उनके परिजनों के लिए छुट्टियों में बच्चों की सुरक्षा का सवाल भी हल हो गया है। मुझे उम्मीद है कि बच्चे स्वस्थ व खुशी के साथ बड़े होंगे, जिससे बाहर मजदूरी करने वाले उनके माता-पिता को आश्वासन दिया जा सकेगा और स्थानीय आम लोगों को भी इससे लाभ मिलेगा।
रोज छात्र अनिवार्य परामर्श केंद्र में सीखते हैं। कक्षा लेने के अलावा शेन फिंग अक्सर उन्हें अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों की स्थिति भी बताती है, जिससे छात्रों को ज्यादा जानकारी मिल सकती है। इसके अलावा शेन फिंग उन्हें उनके माता-पिता के बाहर मजदूरी करने की मुश्किलों से भी अवगत कराती हैं, जिससे उन बच्चों को ज्ञान मिलने के साथ साथ अपने मां-बाप की मेहनत का भी पता चलता है।
14 वर्षीय च्यो वन थिंग इस साल जूनियर हाईस्कूल के तृतीय वर्ष की एक छात्रा है। उसके मां-बाप पूरे साल बाहर मजदूरी करते हैं और वह अपने दादा-दादी के साथ रहती है। शेन फिंग के अनिवार्य परामर्श केंद्र में शिक्षा पाने के बाद उसके परिजनों को उसके बारे में चिंता नहीं है। च्यो वन थिंग ने कहा कि इस केंद्र की शिक्षा से मुझे ज्यादा जानकाली मिली और अपने मां-बाप की मुश्किलें भी पता चली हैं। अब मैं अक्सर दादा जी के लिए कुछ काम करती हूं।
अपने अनिवार्य परामर्श केंद्र के छात्रों की चर्चा करते हुए शेन फिंग ने कहा कि कई छात्रों ने यहां के शिक्षा के बाद प्रगति की है, जैसे च्यो छिन नामक एक लड़की अब अपने आप अंग्रेज़ी शब्दकोश का उपयोग कर सकती है। मध्यावधि परीक्षा में उसने परीक्षण स्कोर में बेहतर परफार्मेंस दी और वह एक खुश लड़की बन गई है। छ्ओ च्युन ह्वा नामक एक लड़के को भी प्रगति प्राप्त की।
शेन फिंग की मेहनत से काओली गांव में "ल्योशो अरथुंग"का जीवन पूरी तरह बदल चुका है। कुछ छात्रों के माता-पिता ने बाहर से फोन से शेन फिंग के प्रति आभार जताया। बच्चों के चेहरों पर शेन फिंग ने अपनी मेहनत की उपलब्धियां भी देखी। इस गांव में रहने वाले लोग उसके काम का समर्थन करने के साथ-साथ प्रशंसा भी करते हैं। पिछले नवंबर में आयोजित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के काओली गांव की कमेटी व इस शहर की कमेटी के चुनाव में शेन फिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के काओली गांव की कमेटी की उपाध्यक्षा और इस गांव की कमेटी के प्रधान का पद संभाला। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के काओली गांव की कमेटी के अध्यक्ष च्यो ली ह्वंग ने कहा कि हमारे गांव में शेन फिंग का काम अच्छा है, उपाध्यक्षा व काओली गांव की कमेटी के अध्यक्षा के पद की वह हकदार है।