सुंदर चाय का खेत,एक पुराना मंडप और एक छोटी लड़की,जो मंडप में खड़ी हुई चाय के खेत के सामने गीत गा रही है...
वह है "आई यो शी"बालकों की नाटक मंडली के द्वारा शूट की गयी सार्वजनिक सेवा वाली फ़िल्म "सब से बढ़िया भविष्य" का एक दृश्य है।आई यो शी का चीनी भाषा में मतलब प्यार के साथ नाटक है।इस पूरी फ़िल्म को स्वयंसेवकों और उन बच्चों ने बनाया है,जिनके मां-बाप काम करने के लिये गांव छोड़कर शहर जाते हैं।आम तौर पर वे साल भर गांव में अपने नाना-नानी या दूसरे रिश्तेदारों के साथ रहते हैं। उन्हें "घर में छोड़े बच्चे" का नाम दिया गया है।और उनके माता-पिता प्रवासी मज़दूर कहलाते हैं।
"आई यो शी" नाटक मंडली की स्थापना वर्ष 2009 में हुई।उस समय कुछ स्वयं सेवक निःशुल्क रक्त-दान के प्रचार-प्रसार के लिये एक पब्लिसिटी फ़िल्म शूट करने जा रहे थे।इसलिये उन्होंने छंगतू के युवा स्वयं सेवक संघ के "आई यो शी"सार्वजनिक सेवा वाली नाटक मंडली स्थापित की।उस फ़िल्म को बहुत प्रशंसा मिली।इसके साथ काफ़ी पेशेवर कैमरामैन और प्रेमी इस स्वयंसेवा दल में शामिल हुए।वर्ष 2010 में यह नाटक मंडली छंगतू "आई यो शी"कम्युनिटी संस्कृति विकास केंद्र के नाम से पंजीकृत हुई।इस केंद्र की निदेशक है ल्यू फ़ेई।इस मंडली के तहत बालकों की नाटक मंडली खास तौर पर "घर में छोड़े बच्चों" के लिये स्थापित की गयी।बालकों की नाटक मंडली की स्थापना का इलेक्ट्रोनिक ओर्गन से बड़ा घनिष्ठ संबंध है।
ल्यू फ़ेई सार्वजनिक सेवा के लिये काफ़ी लगाव से कोशिश करते हैं।वर्ष 2006 से उन्होंने छोंगलाई में श्यौ छिन नामक एक बची हुई लड़की को वित्तीय सहायता देना शुरू किया।श्यौ छिन को संगीत का बड़ा शौक है।इसलिये ल्यू फ़ेई ने उपहार के रूप में श्यौ छिन को एक इलेक्ट्रोनिक ओर्गन दिया।एक साल बाद जब ल्यू फ़ेई श्यौ छिन से मिलने के लिये छोंगलाई गयीं,श्यौ छिन ने खुशी से ल्यू फ़ेई के लिये एक गीत बजाया।ल्यू फ़ेई को उसे बजाते हुए देखकर पता चला कि श्यै छिन ने पूरी तरह गलत तरीके से ओर्गन बजाया।कारण यह है श्यै छिन का कोई अध्यापक नहीं था।गत एक साल में उसने खुद बजाने का अभ्यास किया।इस बात से ल्यू फ़ेई बहुत प्रभावित हुई।उन्हें लगता था कि उन बच्चों को केवल उपहार देना काफ़ी नहीं है।वे इसका विचार कर रही थीं कि उन बच्चों को किस चीज़ की आवश्यकता है।
ठीक उसी समय स्छ्वान प्रांत की चीनी कम्युनिस्ट युवा लीग की कमेटी "घर में छोड़े बच्चे"के बारे में एक फ़िल्म बनाने की योजना बना रही थी।यह खबर सुनकर ल्यू फ़ेई और दूसरे स्वयंसेवकों ने इस योजना को अपनाने की कोशिश की।अंत में उन्हें अनुमति हासिल हो गई।"आई यो शी"नाटक मंडली के तहत बालकों की नाटक मंडली स्थापित हुई।सार्वजनिक सेवा वाली फ़िल्म"सबसे बढ़िया भविष्य" की शूटिंग भी शुरू हुई।
च्या क्वैन कस्बे के यू बा गांव को शूटिंग का स्थान चुना गया।ल्यू फ़ेई और उनके साथियों को निरीक्षण करने वहां जाना था।यू बा गांव जाने से पहले वे इस तरह की समस्या का सामना करने को तैयार थे कि लंबे अरसे तक मां-बाप के साथ न रहने के कारण उन बच्चों के आचरण में कुछ समस्याएं होंगी। लेकिन वहां पहुंचने के बाद उन पर जिस बात का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा था,वह परिवार में स्नेह के प्रति बच्चों की लालसा थी।जब स्वयंसेवकों ने प्यार के साथ बच्चों के गाल थपथपाए,उन बच्चों ने स्वयंसेवकों के हाथों से अपने सिर हिलाये।वे थोड़े लंबे वक्त के लिये इस दुर्लभ स्पर्श का आनंद उठाना चाहते थे।उनमें से कुछ बच्चे चौदह-पंद्रह वर्ष के थे.जिनका स्वतंत्र व्यक्तित्व बन रहा था।स्वयंसेवकों ने बच्चों की बाहरी दुनिया से संपर्क करने की अभिलाषा महसूस की।
फ़िल्म "सबसे बढ़िया भविष्य" में "कबाड़िया" नामक एक पात्र है, जिसकी कहानी "घर में छोड़े बच्चों" के असली अनुभवों के आधार पर लिखी गयी है।कबाड़िया की अवस्था में उन बच्चों को स्कूल में पढ़ाई करनी और अपने दोस्तों के साथ खूब खेलना चाहिये था।लेकिन वह स्कूल नहीं जाना चाहता है,दूसरे बच्चों को मित्र बनाना भी नहीं चाहता है।वह सिर्फ़ खाली बोतल जमाकर बेचने जाता है।उसके मन में उस के मां-बाप पैसे कमाने के लिये उसे छोड़ कर शहर चले गये हैं।इसलिये वह मां-बाप का प्यार प्राप्त नहीं कर पाता है।वह सोचता है कि पैसा कमाने पर सब कुछ उपलब्ध हो जाएगा।मां-बाप को घर छोड़ कर काम करने के लिये दूसरे शहर जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।वह हमेशा उनके साथ रह सकेगा।यह है एक 8 वर्षीय लड़के का "सपना"।निरीक्षण के दौरान ल्यू फेई और उनके साथियों ने यह पाया कि बहुत से "घर में छोड़े बच्चे" कबाड़िया की तरह ऐसा सोचते हैं।
ल्यू फ़ेई ने कहा कि मुझे उस बच्चे की अधिक चिंता रहती है।वह उन बहुत बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है,जो हमें इस बार ग्रामीण क्षेत्र में जांच-पड़ताल की अवधि में मिले।"तुम्हारा क्या-क्या सपना है" यह सवाल पूछे जाने पर उन बच्चों में से करीब आधों ने हमें बताया कि उन का सपना है पैसे कमाना।उनके विचार में सब समस्याएं पैसे के कारण पैदा होती हैं।और पैसे कमाने के बाद सब मसलों का समाधान किया जा सकता है।वे गांवों में छोड़े जाते हैं,क्योंकि उनके परिवार गरीब हैं और उनके मां-बाप को पैसे कमाने बाहर जाना पड़ता है। कबाड़िया पैसे कमाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हो सकता है।हम अपनी फ़िल्म के ज़रिये यह दिखाना चाहते हैं कि उन बच्चों को साथ और सही दिशा दिखाई जानी चाहिये।
"घर में छोड़े बच्चों" पर ध्यान देने और मदद देने के लिये ज़्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिये स्वयंसेवकों ने एक अच्छी फ़िल्म बनाने का संकल्प किया।उस समय बालकों की नाटक मंडली में केवल बीस हज़ार य्वान की राशि और कोई भी पेशेवर उपकरण तथा अभिनेता नहीं था।अच्छी फ़िल्म बनाना असंभव मिशन जैसा था।मगर उन्होंने उस मिशन को पूरा किया।शूटिंग के दौरान स्वयंसेवक जो मदद कर सकते थे,उन्होंने बिना मांगे दी।फ़िल्म उतारने के लिये पेशेवर ओडियो उपकरण की ज़रूरत पड़ी।लेकिन बालकों की नाटक मंडली उपकरण खरीदने तथा किराये पर लेने का खर्च चुकाने में सक्षम नहीं थी ।विज्ञापन कंपनी का प्रबंधन करने वाले स्वयंसेवक थैन हाई शैन ने अपनी कंपनी से उपकरण दिए।
इस तरह की मुश्किलों के अलावा फ़िल्म शूटिंग के दौरान स्वयंसेवकों ने भारी बारिश और भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदा का मुकाबला भी किया।बावजूद इसके चाहे स्वयंसेवक हों या फ़िल्म में शामिल बच्चे,उन्होंने पूरा ज़ोर लगाकर अपना काम समाप्त किया।
इस फ़िल्म के माध्यम से और ज़्यादा लोगों का ध्यान इन बच्चों की ओर आकर्षित हुआ है।इसके साथ-साथ जो बच्चे इस फ़िल्म में शामिल हुए,उन्हें मानसिक रूप से तसल्ली भी मिली।उस वक्त उन बच्चों ने अपने पात्रों के स्वभाव और भावनाएं महसूस करके अपने प्रदर्शन में बाहरी दुनिया को गले लगाया।बालकों की नाटक मंडली ने दो मनोवैज्ञानिक रखे ।उन्होंने फ़िल्म में भाग लेने वाले बच्चों के मानसिक मुद्दों पर उन्हें निर्देशन दिया।इससे बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य पाने के लिये भी बड़ी सहायता मिली।यह "आई यो शी" नाटक मंडली का एक लक्ष्य भी माना जाता है।
ल्यू फ़ेई ने कहा कि हमने इस मंडली में कई कार्यक्रम पूरे किये हैं।अब हम कोष से सहायता हासिल करने के लिये प्रार्थना देने में जुटे हुए हैं।आशा है कि इस किस्म के कार्यक्रम को एक स्कूल या सामुदायिक क्षेत्र में दीर्घकालीन रूप से चलाया जा सकेगा।"घर में छोड़े बच्चे" के मामले का निपटारा केवल पैसे या दो-एक बार की गतिविधियों के ज़रिये नहीं किया जा सकता है।इस से निबटने के लिये एक पेशेवर दल, एक स्थिर व्यवस्था और ठोस परियोजनाओं की आवश्यकता है।
च्या क्वैन कस्बे का यू बा गांव को छोड़कर बालकों की नाटक मंडली और तीनों स्थानों में परियोजना चला रहे हैं।मंडली के कर्मचारी अधिक जगह जाने की तैयारी कर रहे हैं,ताकि ज़्यादा बच्चों को इस में शामिल कर उन की मदद की जा सके।
उन बच्चों को न केवल वित्तीय सहायता बल्कि प्यार के साथ मानसिक सहारा भी दिया जाना चाहिये।जिससे वे सही सपने और ज़िन्दगी के स्वस्थ लक्ष्यों को लेकर खुशी से आगे बढ़ सकें।यह "आई यो शी"बालकों की नाटक मंडली के सभी स्वयंसेवकों का समान इरादा है।खुशी की बात यह है कि इस फ़िल्म "सबसे बढ़िया भविष्य"में हिस्सा लेने के बाद"कबाड़िया" के जीवन में बदलाव आया है।उसके अपने मित्र हैं।बोतल जमा करने के अलावा वह दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिताता और बचपन के जीवन का मज़ा उठा रहा है।(लिली)