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शिनच्यांग में स्वयंसेवक शू श्यौ यैन की कहानी
2011-11-09 13:16:16

चीन में युवा स्वयं सेवकों में कुछ कॉलेज के स्नातक हैं, और कुछ लोग एम.ए. और पी.एच.डी. की डिग्री भी लिए हुए होते हैं।उनकी अपनी स्वतंत्र सोच है।इसके अलावा वे आधुनिक तकनीक भी जानते हैं।वे पश्चिमी चीन के पिछड़े इलाकों में स्वयंसेवा प्रदान करते हैं।वे चीन के उन स्थानों में सेवा करने जाते हैं,जहां उनकी बड़ी ज़रूरत है।आज के कार्यक्रम में आप इन युवा स्वयंसेवकों की टीम की एक सदस्या की कहानी सुनेंगे।उनका नाम है शू श्यौ यैन।पूर्वी चीन के शैन डोंग प्रांत में पली-बढ़ी शू श्यौ यैन का पश्चिम चीन के शिन च्यांग के मू लेई के साथ यह घनिष्ठ रिश्ता कैसे बना।सुनिये एक रिपोर्ट।

"शिनच्यांग, मेरी प्रतीक्षा करो", यह वर्ष 2004 में शू श्यै यैन के लिखे गये निबंध का नाम है।उस वक्त वह तटीय शहर छिंगताओ में रहती थी, जो बहुत लोगों को आकर्षित करता है।लेकिन छिंगताओ में रहने वाली शू श्यौ यैन ने अपने लेख में लिखा कि मेरे दिल का सबसे कोमल भाग दूसरे स्थान पर रह गया है।वह स्थान शिनच्यांग है।

वर्ष 2005 में स्नातक होने के समय शू श्यौ यैन ने छिंगताओ शहर में कई नौकरियां छोड़कर बिना किसी झिझक के "कॉलेज विद्यार्थियों के लिये पश्चिमी क्षेत्रों में स्वयंसेवक सेवा कार्यक्रम" में हिस्सा लेने के लिये आवेदन दिया।आम तौर पर अपने कॉलेज में शिनच्यांग जाने के लिये लड़कियों के आवेदन पारित नहीं किए जाते ।यह बात सुनकर उसने अपना शिनच्यांग जाने का इरादा जताने के लिये बार-बार कॉलेज में संबंधित कर्मचारियों से बात की। आखिरकार छिंगताओ कृषि विश्वविद्यालय ने शू श्यौ यैन का आवेदन स्वीकार कर लिया।इस तरह वह उस साल अपने विश्वविद्यालय में पश्चिमी इलाके में जाने वाले स्वयंसेवकों में एकमात्र लड़की थी।

उस समय अपने इस संकल्प की चर्चा करते हुए शू श्यौ यैन ने कहा कि मैं कभी नहीं पछताती हूं।कुछ लोगों ने मेरे इस संकल्प पर सवाल उठाया होगा।मगर मैं जानती हूं कि पश्चिम इलाकों में स्वयंसेवा की परियोजना की भागीदार होने के नाते हमारा मूल्य अपने अस्तित्व के ज़रिये दिखाई पड़ता है।इस परियोजना में भाग लेने से और बहुत से लोगों का ध्यान पश्चिम चीन तथा पश्चिम चीन के विकास के समर्थन पर आकर्षित हुआ है।जब तक हम इस ज़मीन को प्यार करते हैं और यथार्थ काम करते हैं, तब तक दूसरे लोग हमारी कोशिश देख सकेंगे।

वर्ष 2006 की जुलाई की 25 तारीख की रात शु श्यौ यैन शिनच्यांग की मू लेई काउंटी के सिजिर कस्बे में गयीं और अपनी एक साल की स्वयंसेवा शुरू की।सिजिर कस्बा मू लेई काउंटी के पश्चिम में 23 कि.मी. की दूरी पर स्थित है,जिसमें कुल चार गांव हैं।इस बंजर क्षेत्र में आम तौर पर पहाड़ सड़कें दिखाई पड़ते हैं।साथ ही यहां पर यातायात और दूरसंचार की सुविधा भी कम है।अपने घर में शू श्यौ यैन ने कम आटे से बना भोजन खाया।लेकिन सिजिर कस्बे में पहुंचकर शू श्यौ यैन करीब रोज़-रोज़ रोटियां और मटन खाती है।एक लड़की के रूप में शू श्यौ यैन सफ़ाई और स्वास्थ्य पर बड़ा बल देती है।लेकिन पूरे कस्बे के निवासियों को वहां की इकलौती नदी से पानी मिलता है,जो पिघले बर्फ़ से बनता है।नहाने की बात छोड़ें पीने के पानी और सिंचाई की मांग पूरी करने के लिये भी वह काफ़ी नहीं है।शू श्यौ यैन के मन में स्थानीय खाने की आदि न होना और नहाने के कम मौके मिलना समस्याएं नहीं हैं।शिनच्यांग जाने से पहले वह इस तरह की कठिनाई का मुकाबला करने को तैयार थी।उसके लिये सबसे बड़ी समस्या भाषा की है।उस इलाके में वेवुर, ह्वेई और तिब्बती आदि जातियों के लोग रहते हैं।इसलिये उनकी सेवा करते समय मुश्किलें आना स्वाभाविक है।

सिजिर कस्बे में चीनी कम्युनिस्ट युवा लीग की सचिव होने के नाते शू श्यौ यैन लगभग प्रत्येक सप्ताह कस्बे की विभिन्न गतिविधियों का निर्देशन करने के लिये चार गांवों में जाती थी।सिजिर कस्बे में काम करते-करते शू श्यौ यैन को ऐसा लग रहा था कि दैनिक कामकाज करना काफ़ी नहीं है।इसलिये वर्ष 2006 में उसने एक संगठन स्थापित किया,जिसका नाम धूप जमाना है यानि कलेक्ट सन्शाइन।यहां पर सन्शाइन का मतलब है गरीबी वाले क्षेत्र में लोगों खास कर बच्चों के प्रति ध्यान और स्नेह।शू श्यौ यैन के मुताबिक बच्चे देश का भविष्य हैं।ट्युइशन देने की बात छोड़ें सिजिर कस्बे में रह रहे बहुत से बच्चे प्रयाप्त खाना भी नहीं खा पाते हैं।मैं उनकी मदद करना चाहती हूं।लेकिन मेरी ताकत कम है।इसलिये मैंने ज़्यादा से ज्यादा लोगों को इस में शामिल करने के लिए इंटरनेट का प्रयोग सुझाया।इस तरह से मैं पश्चिम चीन में गरीब बच्चों के लिये अपना योगदान दे सकती हूं।

इस संगठन की स्थापना के बाद बड़ी संख्या में नेटीजन आकर्षित हुए।शू श्यौ यैन आदि कर्मचारियों के प्रयास के तहत सिजिर कस्बे में 6 करीब विद्यार्थियों को दीर्घकालीन वित्तीय सहायता मिली।इसके अलावा इस संगठन के माध्यम से सिजिर कस्बे के लिये देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से नये या पुराने कपड़े और पुस्तकें भी दान किये जाते हैं।

गुली इस संगठन से लाभ पाने वालों में से एक है।वह कज़्जाक जाति की एक लड़की है।मां-बाप की सेहत ठीक न होने के साथ साथ उसका बड़ा भाई कम बुद्धि का है।उसके परिवार की वित्तीय स्थिति खराब है।शू श्यौ यैन के संगठन की सहायता से गुली ने मीडिल स्कूल में पढ़ाई समाप्त करके हाई स्कूल में प्रवेश किया है।

शू श्यौ यैन के ख्याल में स्वयंसेवा उसका कैरियर है।ऐसा नहीं है कि उसने इसलिये स्वयंसेवा चुनने का फ़ैसला किया कि उसे स्वयंसेवा से कुछ मिल सकता है।शू श्यौ यैन के शब्दों में वह केवल शिनच्यांग से एक झुंड फूल चाहती है,मगर उसे पूरा वसंत दिया गया है।मू लेई के प्रति अपने गहरे प्यार के कारण एक साल के लिये स्वयंसेवा का काम खत्म होने के बाद बिना झिझके शू श्यौ यैन ने सेवा का समय बढ़ाने की प्रार्थना की।कुछ भौतिक वजह से यह नहीं हो पाया।वह शैनडोंग वापस गयीं।

शैनडोंग लौटने के बाद शू श्यौ यैन ने ज़िबो 618 रेडियो स्टेशन में प्रवेश किया।अपनी मेहनत से उसे लगातार दो साल में "आदर्श कर्मचारी" के सम्मान से सम्मानित किया गया।लेकिन उसे शिनच्यांग और मू लेई की याद आती रही ।शैनडोंग में काम करते समय उसने कई लेख लिखे,जिनमें शिनच्यांग और मू लेई के प्रति उसका स्नेह अभिव्यक्त हुआ है ।मू लेई काउंटी की कम्युनिस्ट पार्टी की समिति के सचिव याओ च्यैन चून एक बार काम करने के लिये शैनडोंग गये।शू श्यौ यैन के लेख पढ़कर वे काफ़ी प्रभावित हुए।विशेष मशविरे के बाद मू लेई काउंटी सरकार ने शू श्यौ यैन को शिनच्यांग वापस जाने का न्यौता दिया।

वर्ष 2010 की शुरूआत में शू श्यौ यैन अपने मां-बाप की सहमति हासिल करके शैनडोंग में आरामदेह जीवन छोड़ कर फिर एक बार मू लेई पहुंची। मू लेई काउंटी की कम्युनिस्ट पार्टी की समिति के सचिव याओ च्यैन चून ने कहा कि सबसे पहले मैं उसके शिनच्यांग के प्रति गहरे प्रेम से प्रभावित हुआ।उसे देखकर मू लेई के बच्चों के दिल में उम्मीद की चिन्गारी पैदा होती है।दूसरा, कॉलेज से स्नातक हुए स्वयंसेवकों की ओर से मू लेई को बौद्धिक और मानसिक समर्थन मिलता है।शायद इस तरह का समर्थन पैसा चुकाने से नहीं मिल सकता ।

शू श्यौ यैन जैसे स्वयंसेवक की भावना से प्रभावित हो कर वर्ष 2011 में पूरे चीन में शिनच्यांग की स्वयंसेवा करने के लिये कुल 2500 स्वयंसेवक चुने गये।जो वर्ष 2010 की तुलना में दोगुने हैं।पिछले कई सालों में इस साल स्वयंसेवकों की संख्या सबसे अधिक रही है।वर्ष 2003 से लेकर पश्चिम क्षेत्रों के लिये स्वयंसेवकों में से कुल 6263 लोगों ने शिनच्यांग में सेवा की है।निश्चित वक्त के लिये सेवा समाप्त करने के बाद 1600 से ज़्यादा स्वयंसेवकों ने काम जारी रखने के लिये शिनच्यांग में रहने का निर्णय लिया।इस तरह से शिच्यांग के विकास के लिये नयी शक्ति हासिल हुई है।(लिली)

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