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मैत्री की आवाज़ - 130528
2013-05-29 17:31:11

26 मई शाम को भारतीय दूतावास में स्वामी विवेकानंद के कृतित्व पर पूर्व राजदूत पी.ए. नाजरथ का व्याखान था। वे 14 अलग-अलग देशों में राजदूत और काउंसल जनरल के पद पर रह चुके हैं। उनके करीब सवा घण्टे के व्याखान में स्वामी विवेकानंद के जीवनवृत, उपलब्धियां, योगदान, और आदर्शों पर प्रकाश रहा। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद एक भारतीय धर्म गुरू थे। वो एक ऐसे इंसान थे जिसने पश्चिमी दूनिया को वेदों और योगा के भारतीय तत्व-ज्ञान से परिचित कराया। पूर्व राजदूत पी.ए. नाजरथ ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने अपना जीवन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।

उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"

पी.ए. नाजरथ ने अपने व्याखान मे बताया कि विवेकानन्द पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था।

उन्होंने बताया कि स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी ज्यादा जरूरत है।

उनका व्याखान समाप्त हो जाने के बाद जब हमारे सीआरआई संवाददाता अखिल पाराशर ने उनसे सवाल किया कि आज के समय में आप स्वामी विवेकानंद के योगदान और शिक्षाओं को किस प्रकार देखते है और आज के समय में कितना औचित्य हैं, तो उन्होंने बताया:

"यह पुरा साल सम्पूर्ण भारत में और दूनिया के अलग-अलग कोनों में स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती मनाई जा रही हैं क्योंकि उन्होंने अन्य भारतीय की तुलना में धार्मिक क्षेत्र में कई महत्वपुर्ण योगदान दिया हैं। वह न केवल एक धार्मिक गुरू थे, बल्कि एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। वे एक ऐसे महान हस्ती थे जिन्होंने पश्चिमी दुनिया को योग और वेदांता का भारतीय तत्व-ज्ञान का परिचय दिया था और 19वीं सदी के अन्त में आपसी जागरूकता पैदा करने और हिंदू धर्म को एक प्रमुख विश्व धर्म की स्थिति में लाने का श्रेय दिया गया।"

उन्होंने अपनी बात को पूरा करते हुए यह भी कहा कि स्वामी विवेकानंद जी ने सभी को संदेश दिया कि सच एक ही हैं, पर उसका नाम अलग-अलग हैं। अर्थात् धर्म कोई भी हो, सब सच्चाई का मार्ग-दर्शन करते हैं।

जब हमने उनसे अगला प्रश्न किया कि हम सभी जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने भारत को एक पुन:विश्व गुरू बनाने के लिए भरपूर प्रयास किया था, तो हमें उनके किन-किन संदेशों को समझने की जरूरत हैं, जिससे भारत एक विश्व गुरू बना था, तो उन्होंने कहा:

"मुझे नहीं मालुम कि भारत विश्व गुरू बना या नहीं पर मैं इतना कह सकता हूँ कि स्वामी विवेकानंद विश्व-गुरू हैं, जिन्होंने हर जगह वेदांता सोसाइटी की स्थापना की। सबसे पहले वेदांता सोसाइटी की स्थापना न्यूयार्क में की, जो आज अमेरिका में 20 वेदांता केन्द्र हैं। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, युरोप आदि जगहों में वेदांता सोसाइटी हैं। मेरा मानना हैं कि इनके माध्यमों से स्वामी विवेकानंद विश्व-गुरू बनें।"

जब हमने यह पूछा कि चीनी लोग किस हद तक उनके विचारों और आदर्शों को जानने में रूचि रखते हैं, तो उन्होंने कहा:

"इसका जवाब देना मेरे लिए थोड़ा कठिन होगा क्योंकि चीन आये मुझे केवल 4 दिन हुए हैं, पर जहां तक मैने देखा कि इस व्याखान समारोह में काफी संख्या में चीनी लोग आए हुए थे और मुझसे प्रश्न भी कर रहें थे, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि चीनी लोग स्वामी विवेकानंद को पढ़ने और उनको जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं।"

जब उनसे पूछा गया कि क्या स्वामी विवेकानंद आज भी हमारे युवा आइकन हैं, तो उन्होंने कहा:

"मैं ऐसा मानता हूँ क्योंकि कई सालों से भारत में हर वर्ष स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस पर 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, तो यह उस महान आध्यात्मिक व्यक्तित्व के लिए एक उपयुक्त श्रद्धांजलि है, जिसने हमारी युवा शक्ति में विश्वास भरा और एक सम्पूर्ण देश को और खुद को बेहतर बनाने के लिए भारतीय युवाओं को प्रेरित किया। हमारी युवा पीढी जानती हैं कि स्वामी विवेकानंद हमेशा से युवाओं के लिए आइकन रहें हैं और उनको हमेशा से युवा आइकन के रूप में पेश किया जाता हैं।"

अन्त में साक्षात्कार खत्म हो जाने के बाद पूर्व राजदूत पी.ए. नाजरथ ने सभी करोड़ों भारतीय युवाओं को और हमारे सीआरआई हिन्दी श्रोताओं को एक संदेश दिया। उन्होंने अपने संदेश में कहा:

"मेरा संदेश यह हैं कि आप सही भाव और सही निष्ठा से देश की और समाज की सेवा करें। देश प्रेम यह नहीं कहलाया जाता हैं कि आप भारत की भूगोल को प्यार करें, सही मायने में देश प्रेम वो हैं जो भारत के लोगों से किया जाता हैं। आप प्यार करों उनसे जो निम्न रेखा में रहने वाले हैं, जिन्हें मदद की जरूरत हैं, जो समाज द्वारा नकारे हुए हैं। आप यकीन कीजिए, आप स्वामी विवेकानंद के विचारों और आदर्शों की राह पर चलेंगे।"

फिर हमने भारतीय दूतावास के पोलिटिकल और कल्चरल काउंसलर अरूण साहू से मुलाकात की और उनका इण्टरव्यू लिया।

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