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पांडा का घर छंगदू
2013-05-14 19:40:55

दुनिया भर में कई ऐसे पशु-पक्षी हैं, जिनका अस्तित्व खतरे में है, पांडा भी उनमें से एक है। इसे विशालकाय पांडा( जायंट पांडा) के नाम से भी जाना जाता है। इसके शरीर में सफेद और काले रंग की धारियां होती हैं, जो कि भालू की प्रजाति का होता है। मध्य और दक्षिण-पश्चिम चीन में सबसे अधिक संख्या में पाया जाता है। इसमें भी स्छवान प्रांत का छंगदू और आसपास के क्षेत्र प्रमुख हैं।

पांडा के बारे में बचपन में किताबों में पढ़ा करता था और बीजिंग के चिड़ियाघर में पहली बार अपनी आंखों से देख भी चुका था, फिर मन में ख्वाहिश थी कि कभी इस आलसी और गोल-मटोल से पांडा को उसके होम टाउन जाकर देखूं। इस बार मई दिवस की छुट्टियों में छंगदू जाना हुआ, और वहां उपनगर स्थित पांडा बेस में करीब से देखने का मौका भी मिला। वर्ष 1987 में स्थापित पांडा बेस करीब 106 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला है, यहां पहुंचकर लगता है मानो आप किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए हों। पांडा की पूरी लाइफ साइकल यहां आकर समझी जा सकती है, बेबी से लेकर वयस्क पांडा मस्ती करते हुए दिख जाते हैं।

बड़े पांडा जहां पेड़ों में लटके हुए रहते हैं या फिर आदतन अधिकतर पांडा आराम फरमा रहे होते हैं। कहा जाता है कि पांडा या तो बांस खाने में व्यस्त रहता या फिर नींद या आराम करने में। इस तरह यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है, पांडा की हर एक हरकत यानी मूवमेंट पर लोग खुश हो जाते हैं, और बच्चे भी इसे देखने के लिए उत्सुक रहते हैं।

वैसे छंगदू स्थित पांडा बेस पूरी तरह से एक नेशनल पार्क जैसा है, यहां पर रिसर्च सेंटर, किचन, म्यूज़ियम और हॉस्पिटल आदि पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। इसके साथ ही झील, बांस का पूरा जंगल और हैबीटाट भी यहां पांडा की खातिर बनाया गया है। वैसे पांडा ठंडे प्रदेश का प्राणी है, और इन दिनों मौसम जरा गर्म है, ऐसे में बचाव के लिए ठंडे पानी का छिड़काव और अन्य उपाय किए गए हैं, साथ ही कुछ ऐसी जगहें भी हैं, जहां लेटकर पांडा को ठंडक का अहसास होता है। जबकि पांडा खुद भी छायादार वृक्षों के आसपास या ठंडी जगह पर चले जाते हैं।

 

100 ग्राम का होता है बेबी पांडा

वर्ष 1987 में जब यह पांडा बेस स्थापित हुआ था, उस समय जंगलों से महज 6 वयस्क पांडा बचाकर इस बेस में रखे गए थे। लेकिन अब यह संख्या सौ के करीब पहुंच गई हैं। वर्ष 2008 तक लगभग 124 नन्हे पांडा पैदा हो चुके हैं। लेकिन शिशु पांडा को बचाए रखना आसान काम नहीं होता। वैसे पहली बार यह पता चला कि यह गोल-मटोल शरीर पांडा का बेबी पांडा पैदा होते वक्त महज 50 से 100 ग्राम वजनी होता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे इममैच्योर बेबी भी कहते हैं। अभी तक यह नहीं पता लग सका है कि आखिर पांडा का नन्हा मेहमान इतना छोटा क्यों होता है।

बेबी पांडा को दूध, सेब व अन्य पोषक आहार दिया जाता है, एक या दो वर्ष तक इसकी विशेष देखभाल की जाती है। पैदा होते वक्त बेबी के शरीर में कोई बाल नहीं होता और रंग भी नहीं। कुछ महीने के बाद उसके शरीर में काली व सफेद रेखाएं दिखने लगती हैं।

इस सब चुनौतियों के बावजूद पांडा बेस के कर्मचारियों का दावा है कि पिछले दो दशक से भी अधिक समय से जंगल से कोई पांडा नहीं लाया गया है। वैसे पूरे में 250 से अधिक पांडा बताए जाते हैं, हालांकि यह आंकड़ा पुराना है, वहीं 1590 जंगलों में निवास करते हैं। हालांकि दूसरी स्टड़ी में पांडा की संख्या 2 हज़ार से 3 हज़ार के बीच बतायी जाती है। बचपन की मुश्किल समय को गुजारकर जब पांडा जवान होते हैं तो उनका लगभग 4 से 6 फीट लंबा हो जाता है, जिसमें 13 सेमी. की पूंछ भी शामिल होती है। मेल पांडा का वजन करीब 160 किलो तक हो सकता है, जबकि फीमेल पांडा 75 से 125 किलो तक होती है। वैसे औसतन वयस्क पांडा का वजन 100 से 115 किलो के बीच होता है। वैसे फूड की बात करें तो पांडा का मुख्य फूड बैबू यानी बांस होता है। रोजाना एक वयस्क पांडा 9 से 15 किलो बैंबू शूट खा लेता है।

 

पांडा के लिए पार्टनर ढूंढना चुनौती

वैसे पांडा एकांत या अकेलेपन में रहना पसंद करते हैं, लेकिन जवान होने पर उन्हें भी प्रेमी की ज़रूरत महसूस होती है। लेकिन इंसानों की तरह पांडा भी बहुत सोच-समझकर अपना पार्टनर ठूंढते हैं। कई बार तो पार्टनर खोजना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि पांडा आसानी से किसी दूसरे को पसंद नहीं करते। पांडा पार्क और चिड़ियाघरों के कर्मचारियों के लिए यह सबसे बड़ा सवाल होता कि कैसे उसे उचित और पसंद का साथी दिलाया जाय।

पांडा डिप्लोमेसी

पांडा बेस जाकर लगा कि चीन में पांडा के संरक्षण को लेकर कितना काम हो रहा है, चीन के प्रयासों का ही नतीजा है कि पांडा अब एक राजनयिक दूत के तौर पर भी काम आने लगा है, हाल के वर्षों में चीन ने मलेशिया सहित कई देशों को पांडा भेंटकर अपनी दोस्ती प्रगाढ़ की है। सत्तर के दशक में चीन ने अमेरिका व जापान के चिड़ियाघरों को लोन के तौर पर पांडा दिए। इसे पांडा डिप्लोमेसी का नाम दिया गया।

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(अनिल आज़ाद पांडेय)

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