हर साल चौदह सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, ऐसे आयोजन लगभग छह दशक से हो रहे हैं। और इस मौके पर हिंदी को लेकर तमाम दावे किए जाते हैं, पुरस्कारों का भी ऐलान किया जाता है। लेकिन वैश्वीकरण के इस युग में क्या हिंदी वाकई आगे बढ़ पा रही है। क्या यही है हिंदी दिवस की सार्थकता ?बस एक दिवस मनाने के बाद हम सब भूल जाते हैं, राजभाषा हिंदी को। क्यों हमारे यहां सिर्फ अग्रेज़ी को ही महत्व दिया जाता है। यह पीड़ा मेरे मन में ही नहीं है, बल्कि एक आम हिंदी भाषी भारतीय को भी कचोटती है। जिस देश में पचास करोड़ से अधिक हिंदी बोलने वाले हों, वहां हिंदी साहित्य की एक पुस्तक को महज पांच सौ से हज़ार पाठक मिल पाते हैं, ऐसा क्यों होता है?यह दर्द वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल की बातों में झलकता है। क्या इस तरह का व्यवहार कोई अन्य देश अपनी भाषा के साथ करता है, चीन, जापान, कोरिया व यूरोप का उदाहरण ले लीजिए।
आज भारत में कहा जाता है, अच्छे स्कूलों में दाखिला लेने और बेहतर नौकरी पाने के लिए अग्रेज़ी जानना ही होगा। हालांकि प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षा के लिए हिंदी में विकल्प ज़रूर होता है, मगर अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाएं अंग्रेज़ी में ही आयोजित की जाती हैं। साइंस, बिजनेस मैनेजमेंट आदि विषयों में अंग्रेज़ी के बिना कुछ नहीं किया जा सकता है, मानते हैं कि भारत बहुभाषी देश हैं, दक्षिण वाले उत्तर भारत के लोगों को हिंदी में नहीं समझ सकते हैं, इसके लिए अंग्रेज़ी एक लिंक के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है। भारत में हिंदी के साथ जैसा व्यवहार किया जाता है, वैसा किसी और के साथ बहुत कम होता है। हमारे यहां आधुनिक होने का मतलब, अग्रेज़ी ज्ञान से भी जोड़कर देखा जाता है, अगर ऐसा है तो फिर जापान और चीन जैसे देशों को क्या कहा जाए। वहां की कितनी फीसदी आबादी अंग्रेजी जानती है और उसे अपने रोज़मर्रा के काम में इस्तेमाल करती है?भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कहा था कि कोई देश विदेशी भाषा से महान नहीं बन सकता, लेकिन क्या आज भारत में अंग्रेज़ी विदेशी भाषा है?शायद मैं तो ऐसा कहने की हिमाकत नहीं कर सकता।
मंगलेश जी की बात को आगे बढ़ाते हुए, हिंदी की समस्या यह है कि, यह किसी की मातृ भाषा नहीं है, क्योंकि अवधी, बृज, बिहारी, गढ़वाली और कुमाउंनी आदि हमारी कई मातृ भाषाएं हैं।
तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि आज भारत में हिंदी के अखबारों की प्रसार संख्या सबसे अधिक है। भारत के कुल अखबारों का 25 प्रतिशत सर्कुलेशन हिंदी के अखबारों का है। जो कि अंग्रेज़ी से तीन गुना अधिक है। इतना ही नहीं भारत में हिंदी के आठ हज़ार से अधिक समाचार पत्र हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, यानी हिंदी का अधिक प्रसार हो रहा है, इसमें कुछ हद तक विज्ञापन व बाज़ार की भी भूमिका है। आज तमाम विज्ञापन हिंदी या हिंग्लिश में जारी होते हैं, क्योंकि उपभोक्ता तो हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में ही सबसे अधिक हैं।
वैसे दिवस मनाए जाने की बात करें तो आज दुनिया भर में न जाने कितने डे मनाए जाते हैं, मदर्स डे, फादर्स डे ।....पर आलोचक कहते हैं कि क्या किसी भी चीज़ को याद करने के लिए सिर्फ दिवस मनाया जाना ही काफी होता है। बेहतर हो कि इसके लिए कुछ ठोस प्रयास भी किए जाए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री व तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1978 में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर वाहवाही जरूर लूटी थी, कुछ लोग कहने लगे थे कि यह हिंदी के वैश्विक होने की दिशा में एक कदम है। पर सिर्फ भाषण देने भर से हिंदी का उत्थान नहीं होने वाला है। वरिष्ठ पत्रकार गोविंद सिंह भी यही कहते हैं।
जबकि वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल मानते हैं कि हिंदी को बाज़ार के साथ जोड़ना गलत होगा, वे हिंदी साहित्य की आम लोगों तक अधिक से अधिक पहुंच के हिमायती है।
हिंदी दिवस एक नज़र में
हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। और आज के ही दिन 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी । और इसी के चलते हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के उद्देश्य से वर्ष 1953 से हिंदी दिवस का आयोजन होता है।
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 सितंबर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए ये महत्वपूर्ण बातें कही थी। कि.किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। दूसरी कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। और भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने, अपनी आत्मा को पहचाने के लिए हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए।
विश्व में हिंदी का स्थान
वैसे दुनिया में सबसे अधिक नेटिव स्पीकरों यानी मातृ भाषा बोलने वालों की सूची में हिंदी का चौथा स्थान है। मातृ भाषा बोलने वालों की संख्या 295 मिलयन है। जबकि चीनी भाषा मैंडेरिन बोलने वालों की संख्या 935 मिलयन है। अगर दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं की बात करें तो हिंदी यानी हिंदुस्तानी को 497 मिलयन स्पीकर्स के साथ तीसरा स्थान दिया गया है।
प्रस्तुतिः अनिल आज़ाद पाण्डेय