चीन में मुझे आए हुए करीब साढ़े चार महीने हो चुके हैं। इस दौरान मैं चीन को समझने की कोशिश कर रहा हूं। खासकर चीन की तरक्की के कारण क्या हैं ये भी थोड़ा बहुत समझने का मौका मिला। किसी भी देश की तरक्की के लिये कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण होता है आधारभूत ढांचा, जैसे सड़कें, बिजली, रोज़गार के साधन, चिकित्सा, खान पान और रहन सहन का स्तर। चीन इन सब पर काफी हद तक खरा उतरता है। बीजिंग के अलावा पिछले दिनों मेरा दूसरे प्रांतों और शहरों में भी जाना हुआ था। ये देखकर आश्चर्य हुआ कि चीन के गांव देहात में भी सड़कों का स्तर वही है जो राजधानी बीजिंग में है। यानी दोनों तरफ के ट्रैफिक के आने जाने की सुविधा के लिये बीच में चौड़ा सा डिवाइडर। यातायात अगर सुगमता से चलता रहेगा तो ये व्यापार के लिये बहुत अच्छी बात है। चीन के राष्ट्रीय राजमार्गों की स्थिति बहुत उत्तम है। यात्रा करने के दौरान आपको हर आधे घंटे के दौरान थोड़ा विश्राम करने के लिये भोजनालय, शॉपिंग मॉल्स और शौचालय इत्यादि की व्यवस्था है जिससे आपको लंबी यात्रा करने के दौरान ज़रा सी भी थकान नहीं हो। अगर हम बिजली व्यवस्था की बात करें तो चीन में परमाणु बिजली घरों के माध्यम से चीन के लगभग हर एक भाग में अबाधित बिजली व्यवस्था है। ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि कल कारखाने चलाने के लिये अबाधित बिजली की कितनी ज़रूरत होती है। व्यापार वाणिज्य को बेहतर बनाने में बिजली की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये बात हम भारत वासी अच्छी तरह समझ सकते हैं। वर्तमान में भी पूरे विश्व में 50 नए परमाणु संयंत्र लगाने का काम चल रहा है जिनमें से 25 परमाणु संयंत्र चीन में बनाने का काम चल रहा है। इससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि चीन अपने लोगों की ज़रूरतों को लेकर कितना गंभीर है।
नीतियां भारत में भी बनती हैं, लेकिन चीन में आवश्यकता के हिसाब से नीतियां तुरंत बनाई और अमल में लाई जाती हैं जिससे किसी भी परियोजना पर होने वाला खर्च कम होता है। उत्पादन जल्दी शुरु होता है और उसका फायदा भी लोगों तक जल्दी पहुंचता है। वहीं दूसरी तरफ अगर हम भारत पर नज़र डालें तो स्थिति एकदम विपरीत है। नीतियां तो बन जाती हैं लेकिन वर्षों बीत जाते हैं उन्हें अमल में लाने में।
चीन में लोगों को रोज़गार देने के लिये सरकार की नीतियां ज्यादा कारगर हैं। अगर सिर्फ राजधानी बीजिंग की बात करें तो यहां पर आबादी के बढ़ने के साथ साथ बीजिंग के क्षेत्रफल में भी फैलाव किया जाता है। मेरे एक पाकिस्तानी मित्र रईस सलीम बीजिंग में पिछले दो वर्षों से रह रहे थे। पिछली बार वो 12 वर्ष पहले भी यहां रहकर गए थे। इसबार ईद से मात्र तीन दिन पहले वो चीन से हमेशा के लिये पाकिस्तान चले गए। सलीम जी ने मुझे बताया था कि जिस इलाके में हम आज रह रहे हैं वो 12 साल पहले पूरा वीरान था। कुछ एक इमारतों के बारे में सलीम जी ने बताया कि दो वर्ष पहले यहां पर वीरान ज़मीन थी लेकिन आज यहां पर बड़ी बड़ी इमारतें बना दी गई हैं जिसमें शॉपिंग मॉल्स, रेस्त्रां और व्यावसायिक कार्यालयों का निर्माण किया गया है। इसका एक फायदा यहां के नवजवान को पहुंचता है, उसे तुरंत नौकरी मिल जाती है इसके साथ ही बड़ी बड़ी इमारतें बनाने से सीमेंट, स्टील, इलेक्ट्रिकल पार्ट, शीशे, प्रसाधन के सामान जैसे कई उद्योगों को नई ज़िंदगी मिलती है और इस उद्योग से जुड़े लोगों को रोज़गार भी मिलता है।
अगर हम चीन के लोगों के स्वास्थ्य की बात करें तो यहां पर खान पान इतना स्वस्थ है कि लोग भारत के मुकाबले बीमार कम पड़ते हैं इस बात का अंदाज़ा मुझे तब लगा जब पिछले दिनों भारतीय चिकित्सक दल के साथ मैंने चीन के बड़े शहरों से लेकर देहात तक के अस्पतालों का दौरा किया था।यहां अस्पतालों में भारत के मुकाबले लोगों की भीड़ मात्र दस फीसदी ही दिखाई दी। चीन के सिन्थाई इलाके के ग्रामीण अस्पताल का जब मैंने दौरा किया तो देखा कि वहां पर कुछ बड़े मर्ज को छोड़कर सभी बीमारियों के इलाज की व्यापक व्यवस्था है। खान पान में चीन के लोग हर तरह का खाना खाते हैं। यहां पर ज्यादातर लोग मांसाहारी हैं। मांसाहार के अलावा यहां पर शाकाहारी खाने में भी भारत से ज्यादा व्यंजन खाए जाते हैं। अगर साग की बात की जाए तो उसकी संख्या भी भारत के मुकाबले काफी ज्यादा है। एक बात यहां कहना महत्वपूर्ण होगा कि जैसे हमारे यहां अगर रोटी सब्जी या चावल दाल नहीं खाया तो खाना नहीं खाया चीन में ऐसा नहीं है। यहां खाने पीने की कोई भी वस्तु फेंकी नहीं जाती है। यहां तक कि सूरजमुखी के बीज, कद्दू के बीज समेत कई तरह के बीजों को नमक वाले पानी में भिगाने के बाद भूनकर छीलने के बाद खाया जाता है। अखरोट, बादाम, मूंगफली और उबले हुए मक्के के बारे में तो कहना ही क्या ये सभी चीज़ें चीनियों के रोज़मर्रा के आहार का हिस्सा हैं। दूध पीने से ज्यादा यहां पर लोग सुगंधित मीठी दही का सेवन ज़रूर करते हैं। दही कई तरह के फ्लेवर में यहां बाज़ारों में आपको मिल जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये चीन ने पहल की और अपने देश में विदेशी गाड़ियों, भारी उद्योग, मध्यम और लघु उद्योगों के कारखाने लगवाए और अपने देश में कम खर्च में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उत्पादों का निर्माण का काम शुरु किया। इसके अलावा चीन ने अपने देश की भी ब्रांडिंग की और विदेशी वस्तुओं के अलावा अपने देश की कंपनियों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुताबिक विकसित किया जिससे आज चीन गर्व से अपना सिर ऊंचा कर खड़ा है और विश्व की सबसे बड़ी उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति बन गया है। भारत को चीन से सबक लेते हुए अपने आर्थिक विकास की दशा और दिशा तय करना चाहिये जिससे हमारे देश में भी नवयुवकों को रोज़गार मिल सके और हम भी महाआर्थिक शक्ति बन सकें। (पंकज श्रीवास्तव)