ओलंपिक का इतिहास बहुत पुराना है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ईसा पूर्व 776 में यूनान के ओलंपिया शहर में इस खेल की शुरूआत एक त्योहार के रूप में हुई थी। तब से लेकर आज तक यह खेल पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। लेकिन आज जो ओलंपिक खेल है इसकी शुरूआत 1896 में हुई थी और इसी के साथ अंतरराष्ट्रीय जगत में आधुनिक ओलंपिक खेल की शुरूआत की गयी थी।
16 जून 1894 को फ्रांस के पेरिस में पहली बार ओलंपिक समिति का गठन किया गया और फ्रांस के शिक्षाविद् पियरे डी कोबरटिन को इसका अध्यक्ष चुना गया। एक सप्ताह तक चले मीटिंग के बाद 23 जून को औपचारिक तौर पर ओलंपिक समिति का बिल पास हुआ और 1896 में पहला आधुनिक ओलंपिक खेल के आयोजन का निर्णय लिया गया। पहले ओलंपिक के लिए मेजबानी का भार यूनानी शहर एथेंस को दिया गया। उस समय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष पियरे डी कोबरटिन ने विश्व के सभी देशों और खेल संगठनों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। उस समय यह आमंत्रण चीन को भी भेजा गया। उस समय चीन में छिंग राजवंश का शासन था। छिंग राजवंश के राजा ओलंपिक से वाकिफ़ नहीं थे और उन्होंने इस आमंत्रण का कोई जबाव नहीं दिया। इस तरह कहा जा सकता है कि वर्ष 1894 में चीन पहली बार ओलंपिक से जुड़ गया।
वर्ष 1904 में चीन के कई समाचार पत्रों ने तीसरे ओलंपिक खेल समारोहं से जुड़े समाचारों को छापा। वर्ष 1906 में चीनी मैगजीन में ओलंपिक के इतिहास के बारे में समाचार छापा गया। तब से लेकर वर्ष 1932 तक चीन का ओलंपिक में भागीदारी के लिए तरह-तरह के खेल आयोजन होते रहे। वर्ष 1932 में अमेरिका के लॉस एंजेल्स में आयोजित हो रहे दसवें ओलंपिक में चीन ने पहली बार औपचारिक तौर पर भाग लिया। इसमें एक चीनी खिलाड़ी लियु छांग छुन को अमेरिका भेजा गया। हालांकि वह क्वालिफाई नहीं कर पाए लेकिन चीन के ओलंपिक के इतिहास में वे ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले पहले खिलाड़ी बन गए। सबसे रोचक बात यह है कि एक चीनी जनरल ने 8000 चांदी के सिक्के दान में देकर उन्हें अमेरिका भेजने का प्रबंध किया था। इसी से कहा जा सकता है कि ओलंपिक के प्रति चीनी लोगों का जज़्बा हमेशा से उत्साहपूर्ण रहा है।
वर्ष 1952 में फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित 15वीं ओलंपिक में चीनी खिलाड़ियों को ओलंपिक के उदघाटन समारोह से एक दिन पहले आमंत्रण मिला। जब तक चीनी खिलाड़ी हेलसिंकी पहुंचे, तबतक कई प्रतिस्पद्धाएं खत्म हो चुकी थी। सिर्फ तैराकी के एक इवेंट में चीनी खिलाड़ी वू छ्वान यू को हिस्सा लेने का मौका मिला। इस इवेंट में वे क्वालीफाई नहीं कर पाए लेकिन यह पहला मौका था जब ओलंपिक में चीन का पांच सितारों वाला लाल झंडा फहराया गया था।
वर्ष 1984 में लॉस एजेंल्स में आयोजित 23वें ओलंपिक खेल में चीनी खिलाड़ी श्वी हाय फंग ने चीन को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। उसके बाद चीन ने ओलंपिक खेल में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1984 में चीन 15 स्वर्ण पदक के साथ चौथे स्थान पर रहा।
ओलंपिक के इतिहास में चीन को खुशी और गम दोनों झेलना पड़ा है। वर्ष 1993 में चीन को बड़ा झटका लगा, जब वर्ष 2000 में ओलंपिक के आयोजन के लिए चीन का दावा नकार दिया गया। चीनी जनता निराशा में डूब गई लेकिन इससे भी उनका हौसला कम नहीं हुआ। वर्ष 2000 में आयोजित ओलंपिक खेल में चीन ने 28 स्वर्ण पदक जीतकर रूस को पछाड़कर पदक तालिका में दूसरे स्थान पर पहुंच गया। सारा देश खुशी की लहर में डूब गया। लेकिन यह खुशी यहीं समाप्त नहीं हुई। वर्ष 2001 में चीन को 2008 का ओलंपिक की मेजबानी का मौका दिया गया। इस मौके ने न केवल चीनी जनता बल्कि खिलाड़ियों में भी एक नया जोश भर दिया। वर्ष 2008 के पेइचिंग ओलंपिक का उद्घाटन समारोह ओलंपिक के इतिहास का सबसे अद्भुत ओलंपिक समारोह रहा था। अंतरराष्ट्रीय जगत में चीन को काफ़ी वाहवाही मिली। एक ओर जहां चीनी जनता इस प्रदर्शन से अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे थे वहीं दूसरी ओर चीनी खिलाड़ी भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 51 स्वर्ण पदक के साथ पदक तालिका में पहला स्थान हासिल करने में कामयाब हुए। देश-विदेश के लोगों ने न केवल चीनी जनता के आत्मविश्वास की प्रशंसा की बल्कि चीनी खिलाड़ियों के प्रदर्शन का भी लोहा मान गए।
इस साल लंदन ओलंपिक में भी पूरी दुनिया की निगाहें चीन के उपर ही है। क्या चीनी खिलाड़ी अपनी छवि को बरकरार रख पाने में कामयाब होंगे। क्या चीन पदक तालिका में पहले स्थान पर कायम रह पाएगा। चलिए हम सभी चीन की कामयाबी की प्रार्थना करते हैं और आशा करते हैं कि इस बार भी चीनी खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से पूरी दुनिया को अचंभित कर देंगे।
(विकास कुमार सिंह)