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ड्रैगन ईयर के उत्साह में डूबा चीन (अमर उजाला से साभार)
2012-02-15 10:12:36

आधुनिक होते चीन में परंपराएं हैं बरकरार, इस बार ड्रैगन ईयर

अनिल आज़ाद पाण्डेय

पड़ोसी देश चीन में आजकल अलग ही माहौल है, लोग पूरे उत्साह से नए साल का जश्न मनाने में डूबे हुए हैं, उनके पास सिर्फ और सिर्फ न्यू ईयर और अपने परिजनों के लिए ही समय है, काम में एक हफ्ते से लेकर पंद्रह दिन की छुट्टी पहले ही हो चुकी है, फिर चाहे कोई सरकारी ऑफिस में काम करता हो या निजी कंपनी में। जबकि स्कूल व विश्वविद्यालयों के छात्र भी अपने घर पहुंचकर नए साल की खुशियां मना रहे हैं। यकीन नहीं आता है कि ये वहीं लोग हैं जो कुछ दिन पहले तक काम व पढ़ाई के तनाव से जूझ रहे थे। लेकिन अब शॉपिंग करने के अलावा अपने परिवार वालों के साथ समय बिता रहे हैं। ऐसा लगता है मानो पूरे देश में घर-घर में शादी हो, मॉल व बाज़ारों की रंगत भी देखने लायक है। किसी भी दुकान या सुपरमार्केट में चले जाइए, लोगों की भीड़ खरीददारी करती नज़र आएगी, पिछले कुछ वर्षों में चीन ने आर्थिक क्षेत्र में तेज़ प्रगति की है, इसका असर खर्च करने की क्षमता पर भी पड़ा है। खासकर एक ऐसा मिडिल क्लास तैयार हो चुका है, जो ऐसे अवसरों पर खूब शॉपिंग करता हुआ नजर आता है।

अपने परंपरागत नव वर्ष के विशेष मौके पर देश ही नहीं विदेशों में रह रहे चीनी भी अपने घर लौट चुके हैं। नये साल के आगमन को वसंत त्योहार( छुन चिए) भी कहते हैं, इस वर्ष न्यू ईयर की शुरुआत 23 जनवरी को हुई, यानी लूनर कैलेंडर की पहली तारीख। और इस दिन बीते साल की सभी मुसीबतों को दूर करने के लिए घरों की सफाई की जाती है।

नए साल के पहले हफ्ते को गोल्डन वीक कहा जाता है, लेकिन त्योहार का माहौल महीने भर रहता है। लूनर ईयर की पंद्रह तारीख से लालटेन त्योहार शुरू होता है, इस अवसर पर घरों के बाहर लाल रंग की लालटेन सजाई जाती हैं और आतिशबाज़ी होती है। हर वर्ष एक जानवर के नाम पर तय होता है, पिछला साल रैबिट ईयर था, इस बार ड्रैगन है, जो कि काफी शुभ माना जाता है, इस वर्ष जन्म लेने व्यक्ति बहुत प्रभावशाली कहे जाते हैं, अगला ड्रैगन ईयर बारह साल बाद आएगा। और इन दिनों बाज़ारों में ड्रैगन की आकृति वाली कई वस्तुएं मौजूद हैं, वहीं लाल रंग का भी विशेष महत्व है, और दुकानें लाल रंग के वस्त्र, सामान व खिलौनों से भरी पड़ी हैं। वहीं हर शहर में मेले, ड्रैगन व लॉयन डांस, लाल लालटेन समारोह और मिलन कार्यक्रम जारी हैं, अकेले बीजिंग में तमाम ऐसे बड़े पार्क हैं, जहां लोग चीनी परंपराओं व संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं, साथ ही बौद्ध परंपरा वाले मंदिरों में भी उन्हें प्रार्थना करते देखा जा सकता है।

अगर खान-पान की बात करें तो वहां भी परंपरा नज़र आती है, नए साल के विशेष मौके पर भोजन भी स्पेशल होता है, डंपलिंग यानी एक तरह का मोमो खाना शायद ही कोई चीनी मिस करता हो, जबकि साल की पूर्व संध्या पर सुअर, बतख, चिकन,फिश व मीठे पकवान भी साथ-साथ खाए जाते हैं, जबकि लालटेन त्योहार में चावल, आटे व बीन से बना थांग युआन खाया जाता है, वैसे इस मौके पर लोग घर पर ही खाना ज्यादा पसंद करते हैं, मगर रेस्तराओं में भी परंपरागत चीनी भोजन तैयार रहता है।त्योहार के दौरान दोस्तों, रिश्तेदारों के घर जाने के अलावा गिफ्ट दिए जाने का भी रिवाज है। खासकर बड़े बुजुर्ग बच्चों को उनके खुशहाल भविष्य के लिए एक कार्डनुमा लिफाफा भेंट करते हैं, जिसमें पैसे रखे होते हैं। चीन में कहा जाता है कि, भले ही कोई व्यक्ति अपने परिजनों से कितनी भी दूर क्यों न हो, न्यू ईयर वह अपने परिवार के साथ ही मनाता है।

चीनी पंचांग के मुताबिक़ ड्रैगन,बाघ, बैल,बकरा, मुर्गा, सांप, चूहा, सुअर व खरगोश समेत 12 पशुओं को साल का प्रतीक माना जाता है. इस तरह 12 वर्षों के चक्र को बारह जानवरों में विभाजित किया गया है. प्राचीन काल में चीन की हान जाति व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय वर्षों की गिनती पशुओं से किया करते थे. बताते हैं कि यह तरीका भारत से चीन में आया। नया साल मनाने की परंपरा काफी पुरानी है, कहावत है कि 'नियन' नाम के खूंखार जंगली जानवर को भागने के लिए लोगों ने कई तौर-तरीके अपनाए, लेकिन उसका आतंक नहीं थमा। आखिर में ढोल की आवाज़ व लाल रंग के कपडे का सहारा लिया, उसके बाद लोगों को नियन के आतंक से छुटकारा मिल पाया, वर्तमान में ढोल की जगह पटाखों ने ले ली है। चीनी नव वर्ष को लूनर न्यू ईयर भी कहा जाता है, चीनी हान संस्कृति के प्रभाव वाले देशों कोरिया,जापान, फिलीपींस और वियतनाम में भी लूनीसोलर कैलेंडर इस्तेमाल होता है।

वैसे न्यू ईयर पर होने वाले परंपरागत मेलों का इतिहास 2 हज़ार साल से भी पुराना है, सिर्फ बीजिंग में ही शाही, जन मिलन और मेंकिंग जैसे पांच दर्जन मेले आयोजित हो रहे हैं। इनमें देसी व्यंजन, करतब,तमाशे व लोक नृत्य आकर्षण का केंद्र होते हैं, इस तरह परम्परा का मिलन हर छोटे-बड़े समारोह में होता है, देश में ही नहीं प्रवासी चीनियों को भी अपनी मातृभूमि से काफी लगाव है।

लोगों में नए साल के प्रति उत्साह व खुशी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 22 जनवरी को सिर्फ एक दिन में मोबाइल फोन के ज़रिए 10 अरब से भी अधिक शुभकामना संदेश भेजे गए, जबकि 2010 में इस दौरान 90 करोड़ एसएमएस का आदान-प्रदान हुआ था।

इसके साथ-साथ रेल, हवाई व सड़क यातायात में जबरदस्त इजाफा देखने को मिलता है, वहीं पर्यटक स्थलों में भी लोगों की भारी भीड़ होती है, 21 जनवरी को देश में विमानों ने 6 हज़ार 316 उड़ानें भरी, इसमें 8 लाख 90 हज़ार यात्रियों ने सफर किया, वहीं रेल से यात्रा करने वालों की संख्या 57 लाख रही। आंकड़ों के मुताबिक इस महीने लगभग 3 अरब से अधिक लोग रेल सेवा का इस्तेमाल करेंगे। जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यात्रियों की कुल संख्या 2 अरब 89 करोड़ 50 लाख थी।

वैसे यहां नव वर्ष के आगमन से पहले ट्रेन व हवाई टिकट खरीदना किसी चुनौती से कम नहीं होता, इसके बावजूद लोग घर जाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। हालांकि छात्रों के लिए सरकार द्वारा विशेष व्यवस्था की जाती है, उन्हें अपने घर जाने के लिए टिकट हासिल हो जाता है।

आजकल चीन में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है, तमाम क्षेत्रों में पारा पहले ही शून्य से नीचे जा चुका है, उत्तर चीन के हेलोंगच्यांग प्रांत में तो औसत न्यूनतम तापमान शून्य से 27 डिग्री है, इसके बावजूद लोगों के उत्साह में कतई भी कमी नहीं है। यह इस बात का प्रतीक है कि आधुनिक होते चीन में सांस्कृतिक विरासतों व परंपरागत उत्सवों के प्रति किस कदर सम्मान व लगाव है।

यह लेख जनवरी के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र, अमर उजाला के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित, लेखक अनिल आज़ाद पाण्डेय

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