इस साल जून के अंत में पेइचिंग में बड़ा शानदार कांसर्ट आयोजित हुआ,जिसमें बहुत सारे प्रसिद्ध कलाकारों ने भाग लिया।लेकिन दर्शकों के आकर्षण का केंद्र एक छोटा सा बैंड था।उस बैंड के सभी सदस्य हे पेइ प्रांत में एक दूरदराज गांव यानी मा लैन गांव से आये बच्चे हैं।आज हमारे कार्यक्रम में इन बच्चों की कहानी सुनें।
हे पेइ प्रांत के बाओ डिंग में हमारे सी.आर.आई के संवाददाता और इस खास बैंड और उन बच्चों की अध्यापिका डेंग श्यौ लैन की मुलाकात हुई।सत्तर वर्ष की डेंग श्यौ लैन छात्रों के रिहर्सल में बार-बार ताली बजा रही थीं।पुराना दिखने वाला वायलिन, अकॉर्डियन और तुरई बैंड में शामिल हैं।यहां तक कि कुछ बच्चों के हाथों में वाद्ययंत्र के बजाए चम्मच हैं।
थाई हान पहाड़ पर स्थित मा लैन गांव में सब से पहले एक भी वाद्ययंत्र नहीं था।डेंग श्यौ लैन के आने से पूर्व वहां के बच्चे एक पूरा बालगीत भी नहीं गा पाते थे।11 वर्षो पहले सेवा निवृत होने वाली डेंग श्यौ लैन ने अपने पिता के पदचिन्हों को खोजते हुए मा लैन गांव लौट आयीं।कोई भी यह नहीं सोच सकता था कि इस यात्रा से एक पेइचिंग में रह रही बुढ़िया और थाई हान पहाड़ में स्थित मा लैन गांव के बीच इतना घनिष्ठ संबंध बनेगा ।
(आवाज़-1)
वर्ष 1997 में मैं अपनी छोटी बहन के साथ यहां आयी थीं।रास्ते में एक गांववासी को देखकर मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि मा लैन गांव कहां है।उन्होंने हमें रास्ता दिखाया।वह महिला 60 वर्षीय की लगती थीं।उस से मैंने पूछा कि क्या वह छेन शो य्वैन को जानती हैं।वे मेरे सौतेला पिता हैं। उस महिला ने मुझे तुरंत पहचान लिया और मेरे हाथ अपने हाथ में ले लिए।
डेंग श्यौ लैन का जन्म युद्ध के समय हुआ था।पहाड़ पर स्थित मा लैन गांव इस तरह का एक स्थान है,जिस में जापानी आक्रमक विरोधी युद्ध के दौरान चिनछाची दैनिक अखबार छापा जा रहा था।प्रमुख संपादक डेंग थो आदि पुरानी पीढ़ी के क्रांतिकारियों ने वहां पर 6 साल तक जापानी आक्रमण विरोधी आंदोलन चलाया था।डेंग श्यौ लैन, डेंग थो और डिंग यी लैन की पहली बेटी मा लैन गांव में ही पैदा हुई।डिंग यी लैन ने पेइचिंग जन रेडियो स्टेशन के निदेशक का पद संभाला।बाद में वे सी.आर.आई की निदेशक भी बनी । उन्होंने डेंग श्यौ लैन को एक मोहर दी थी,जिसपर "मा लैन गांव की संतान" लिखा हुआ है।डिंग यी लैन की उम्मीद थी कि उनकी बेटी याद रखेगी कि वह मा लैन की बेटी है।जब पहली बार मा लैन वापस आयीं, वे इस गांव की ज़्यादा जानकारी पाने की कोशिश करती रहीं।यहां पर उनका जन्म हुआ था।इसी गांव में उनके मां-बाप रहते थे।इसी गांव में डेंग श्यौ लैन की उन बच्चों के साथ मुलाकात हुई।
(आवाज़-2)
उन बच्चों को गाना नहीं आता था। राष्ट्रीय गान भी इस गांव के बहुत कम बच्चे गा सकते थे।जो गीत वे गा सकते थे, वे ठीक से नहीं गाते थे।इसे देखकर मुझे दुख हुआ।उन दिनों वहां रहते हुए मैंने उन्हें गीत गाना सिखाया।इसके बाद हर दो-एक महीने मैं मा लैन गांव जाती हूं।गावं में एक क्लासरूम है।मैं उस क्लासरूम में जाकर पहले और दूसरे ग्रेड के छात्रों को गीत गाना सिखाती हूं।
डेंग श्यौ लैन पेशेवर संगीत अध्यापिका नहीं हैं।मगर वे बचपन से ही संगीत की बड़ी शौकीन हैं।इसके अलावा उन्होंने अपने छोटे भाई और छोटी बहन को वायलिन बजाना भी सिखाया।वर्ष 2008 में साक्षात्कार के लिये मा लैन गांव आये हुए पेइचिंग संगीत विक्ली के कार्यरत संपादक ल्यू होंग चून ने उस समय की याद करते हुए कहा
(आवाज़-3)
हम वहां पहुंचे ही थे कि एक झुंड में बच्चे उस क्लासरूम से एक दम निकल आये और कुर्सियों पर बैठ गये।वे वाद्ययंत्र बजाना और गीत गाना सीखने के लिये डेंग श्यौ लैन की प्रतीक्षा कर रहे थे।वे बच्चे सूरज डूबने पर भी घर नहीं गये।हमने डेंग श्यौ लैन को एक कटोरा नूडल बनाकर दिया।थोड़ा सा खाने के बाद उन्होंने वायलिन बजाना आरंभ किया।लग रहा था कि उन बच्चों को देखते और संगीत सिखाते हुए वे आराम और खाना खाने की बात भूल गईं।वे बच्चे उनके पास खेलते हैं और गाते हैं।
संगीत से उन बच्चों के बचपन में नया रंग आ गया है।यह पहाड़ी गांव बहुत गरीब है कि वहां के गांववासी अभी अभी प्रयाप्त भोजन पाते हैं।लेकिन संगीत से इस पहाड़ी गांव में हंसी की आवाज गूंज रही है।धीरे-धीरे बच्चों और डेंग श्यौ लैन और उनकी संगीत कक्षा के बीच एक अटूट रिश्ता बन गया है।वे डेंग श्यौ लैन से अलग नहीं होना चाहते ,हर बार मा लैन गांव जाने के लिये डेंग श्यौ लैन को 400 कि.मी. के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते हुए 7,8 घंटे लगते हैं।बैंड के सदस्य पाई पा च्यैन ने बताया कि उन बच्चों के लिये गांव में एकमात्र बस स्टेशन प्रतीक्षा का स्थान बन गया है।
(आवाज़-4)
प्रति दिन कक्षा समाप्त होने के बाद हम वहां पर हमारे साथ गाने के लिये मैडम डेंग का इंतज़ार करते हैं।
डेंग श्यौ लैन से प्रभावित होने के कारण अधिक से अधिक लोग अपने तरीकों से इस छोटे गांव की मदद करने के लिये यहां आये हैं।पेइचिंग से आये कई युवाओं ने डेंग श्यौ लैन और मा लैन गांव की कहानी फिल्म करके एक डॉक्युमेंटरी बनायी।यह वीडियो मा लैन गांव में डेंग श्य़ौ लैन द्वारा बच्चों को पढ़ाते समय लिया गया है।
(आवाज़-5)
गीत गाते समय टोन सीढ़ियों की तरह बदलती है।सबसे नीचा राग है डॉ(do),इससे अधिक ऊंचा है रे(re), मी(mi)।
वर्ष 2010 के नए साल के दिन चीनी केंद्रीय टीवी स्टेशन के कला संपादक अली आदि लोग मा लैन गांव पहुंचे।डेंग श्यौ लैन ने उन्हें छोटे बैंड का प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित किया।प्रदर्शन देखते ही अली ने वहां ठहरने का निर्णय लिया।
(आवाज़-6)
पहले मैंने मा लैन का नाम भी नहीं सुना।मैडम डेंग से मिलने के बाद मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ।बच्चों ने मैडम डेंग की ओर से संगीत, आत्मविश्वास, मज़ा और सपना पाया है।दूसरे लोगों ने दान के रूप में पैसे और मकान दिये हैं।लेकिन डेंग श्यौ लैन के प्रयास से इस गांव के लोगों की भावना में परिवर्तन आया है।यह भावना लोगों के पास पहले नहीं थी।
पता नहीं चला कि डेढ़ साल तक शूटिंग के दौरान शूटिंग टीम मालैन और पेइचिंग कितनी बार दौड़ी।बच्चों के साथ रहते हुए उन्होंने भी डेंग श्यौ लैन की भांति बच्चों को वाद्ययंत्र बजाना सिखाया।
वर्ष 2011 में यह डॉक्युमेंटरी "मा लैन में गीत" इंटरनेट पर कुछ समय बाद लोकप्रिय हो गई।इसमें पहाड़ों में बच्चों के गीत सुनाई पड़ते हैं। ज्यादा से ज़्यादा लोग आकर्षित होकर इसी गांव में पहुंचे हैं।अली को विश्वास है कि डेंग श्यौ लैन के द्वारा मा लैन में लाया गया संगीत इस गांव का प्रतीक बनेगा।
(आवाज़-8)
मा लैन चीन में सबसे विशेष गांव है।इस जैसा दूसरा पहाड़ी गांव नहीं है जहां इतने सारे बच्चे वाद्ययंत्र सीखते हैं और गीत गाते हैं।इस की एक परंपरा बनेगी।डेंग श्यौ लैन के वहां न जाने पर भी यह परंपरा बरकरार रहेगी।
जैसे अली ने बताया, डेंग श्यौ लैन के साथ संगीत सीखने से वे मितभाषी बच्चे वाचाल बन गए हैं।यहां तक कि कुछ बड़े लोग भी प्रभावित हुए हैं।लेकिन डेंग श्यौ लैन से मा लैन गांव में न केवल संगीत पहुंचा है बल्कि कुछ यथार्थ सहायता भी वहां दी गयी है।मा लैन जाने के लिये वह मार्ग डेंग श्यै लैन की कोशिशों के तहत निर्मित किया गया।गांव के बगल में एक नये स्कूल का निर्माण भी समाप्त किया गया है।
डेंग श्यौ लैन ने संवाददाता को बताया कि अब पेइचिंग और हे पेई प्रांत के कुछ कॉलेजों में बच्चों संगीत पढ़ाने के लिये विभिन्न खेप के विद्यार्थियों का गठन किया गया है।उन्हें बड़ी खुशी है कि इस कार्य को जारी रखने वाले आखिरकार दिखाई पड़ रहे है।
मा लैन के बच्चों ने इस साल पहली बार पेइचिंग के मंच पर प्रदर्शन किया।कोई भी यह नहीं कह सकता है कि दसेक सालों बाद उनमें से कोई बच्चा सच्चे माने में एक संगीतकार नहीं बनेगा।चाहे जो भी हो, उनके दिलों में संगीत का बीज दबा हुआ है।अंत में इस बीज से ज़रूर सुंदर फूल निकलेगा।(लिली)