यान आन का नाम सुनते ही चीनी क्रांति का वह दौर याद आता है, जब चेयरमैन माओ के नेतृ्त्व में कोमिंतांग व जापानी आक्रमण के खिलाफ संघर्ष चल रहा था। वैसे तो मैं बचपन में अक्सर ही चीनी व रूसी क्रांति के बारे में किताबें पढ़ा करता था। लेकिन असल में ऐसी जगहों पर जाने का मौका अब तक कम ही मिला है, जब इस बार पता चला कि 6 नवंबर को यान आन भेजा जा रहा है, तो मन में कौतुहल सा था, शायद इस बात को लेकर कि अब चीनी क्रांति के उस स्वर्णिम काल को करीब से जानने का अवसर मिलने वाला है।
हुआ भी ऐसा ही, हमारे साथ करीब 40 लोग थे, जिसमें जापान,श्रीलंका व भारत समेत तीन विभागों के विदेशी विशेषज्ञ भी शामिल थे। जबकि चीनी लोग, जिनमें कुछ बुजुर्ग भी थे, वे सीरआरआई की स्थापना के समय से ही इससे जुड़े हुए थे। कुछ तो ऐसे भी थे, जिन्हें नए चीन के निर्माण से पहले का ऐतिहासिक घटनाक्रम भी याद था। छह नवंबर की शाम हम बीजिंग वेस्ट रेलवे स्टेशन पहुंचे, वहां एक घंटा इंतजार करने के बाद हम सभी यान आन जाने वाली ट्रेन में सवार हुए और सात नवंबर की सुबह छह बजे यान आन। जैसा कि हमें पहले से ही बताया गया था कि वहां ठंड होगी, इसलिए अपने साथ गर्म कपड़े रख लें। सो हम तैयार थे, वैसे मौसम बीजिंग की तरह ही था, लेकिन यान आन स्टेशन से बाहर निकले तो बारिश हमारा स्वागत कर रही थी।
अब भी बरकरार है आर्ट कॉलेज की चमक
स्टेशन से सबसे पहले हमें होटल ले जाया गया, जहां हमें ठहरना था, होटल में अपना सामान रखने के बाद हमने नाश्ता किया और फिर निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक सबसे पहले लू सुन आर्ट कॉलेज व चर्च देखने गए, बारिश के बावजूद हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं थी। फिर वे चाहे बुजुर्ग हों या युवा, सभी यान आन के इतिहास से रूबरू होने के लिए उत्साहित थे। यान आन शहर से करीब 5 किमी. की दूरी पर स्थित स्याव आर कौउ नामक इस जगह पर एक कैथोलिक चर्च व संरक्षित आर्ट कॉलेज है। कॉलेज की बनावट व उसका आर्किटेक्ट देखने लायक है, उसके बाहर लगे साइन बोर्डों में उस दौर की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन लिखा हुआ है। बाहर से देखने पर यह कॉलेज किसी अन्य प्राचीन चीनी इमारतों की तरह लगता है, लेकिन उसके भीतर माओ समेत कई नेताओं व सैनिकों की तस्वीरें और अन्य दस्तावेज मौजूद हैं।
वहीं आर्ट कॉलेज है जिसकी स्थापना जापान विरोधी आक्रमण(एंटी जैपनीज़ वार) के दौरान अप्रैल 1938 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा कैडरों व पार्टी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देने के मकसद से की गई थी।
बताया जाता है कि आर्ट कॉलेज के अन्तर्गत कला, साहित्य व संगीत आदि विभागों में बड़ी संख्या में छात्र अध्ययन करते थे, यहां की खास बात यह थी कि जापान विरोधी युद्ध व आम लोगों का जीवन छात्रों व शिक्षकों की प्रेरणा का स्रोत होता था। जो उनकी पेंटिंग, म्यूज़िक व मूर्तियों में साफ झलकता था। इतना ही नहीं वे दूर-दराज के क्षेत्रों में जाकर ग्रामीणों के जीवन का अनुभव भी करते थे। अब भी वहां लगी तस्वीरें इस कॉलेज के व्यवहारिक पक्ष को बयां करती हैं, जिसमें छात्र बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। विशेषकर नाटक, सभा, पेंटिंग, ग्रामीण इलाकों में काम, पार्टी नेताओं के साथ अहम बैठक के साथ-साथ दूसरे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का भी उल्लेख है।
अगर चर्च के हॉल की बात करें तो वहां मार्क्स, लेनिन, एंगेल्स आदि की फोटो लगी हुई हैं। चर्च उस दौर में कम्युनिस्ट पार्टी की अहम बैठकों का सेंटर भी होता था, 29 सितंबर से 6 नवंबर 1938 तक छठी केंद्रीय कमेटी का छठा पूर्ण सत्र भी यहीं पर आयोजित हुआ था। जिसकी अध्यक्षता चांग वन थ्यान ने की और माओ ने इस मौके पर कम्युनिस्ट पार्टी के पॉलीटिकल ब्यूरो की तरफ से भाषण दिया। जबकि चाउ इन लाय, जू द, वांग मिंग व स्यांग इंग आदि नेताओं ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।
यहां बता दें कि चेयरमैन माओ त्से दोंग व प्रधानमंत्री चाउ इन लाय ने इस आर्ट कॉलेज की स्थापना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। हालांकि 1946 में आर्ट कॉलेज को उत्तर-पूर्वी चीन में पुनर्स्थापित किया गया, और वर्ष 1958 में उसे लू सुन एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट नाम दिया गया। जो वर्तमान में चीन की बेहतरीन आर्ट एकेडमियों में से एक है।
जब माओ बोले, मैं लीडर नहीं हूं
इस कॉलेज के उद्घाटन समारोह में माओ त्से दोंग ने हिस्सा लिया, इस दौरान वहां मौजूद स्टाफ ने माओ को अपना नेता बनाने की बात कही। लेकिन माओ ने उस वक्त क्या कहा, यह जानना अपने आप में दिलचस्प है, बकौल माओ मैं कोई नेता(लीडर) नहीं हूं, मैं भी आप लोगों की तरह स्टाफ का एक सदस्य हूं, वैसे इस मौके पर सभी प्रमुख व्यक्तियों ने भाषण दिए, जबकि माओ ने कहा कि वे आज भाषण नहीं देंगे। शायद वे इस बात को दर्शाना चाहते थे, सिर्फ पार्टी में आम कैडर या दूसरे कार्यकर्ता भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने कि वे।
तमाम तस्वीरों व दस्तावेजों को देखकर कहा जा सकता है कि जापान के खिलाफ युद्ध में इस कॉलेज की भूमिका न केवल पार्टी बैठकों के लिहाज से विशेष थी, बल्कि इस दौरान म्यूजिक, पेंटिंग, ड्रामा आदि के जरिए भी सेना व लोगों को जागरूक करने का काम किया जाता था। उस दौर में एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था, उसका हिंदी में सार कुछ इस तरह है। सेना के जवानों के लिए हम अच्छी फसल उगाएं.......।
(अनिल आज़ाद पाण्डेय)