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बच्चों को नया जीवन देतीं शिक्षिका माताएं
2011-11-15 10:58:34

चीन में अर्थव्यवस्था के तेज़ विकास के साथ "ल्योशो अरथुंग"नामक एक विशेष शब्द ईजाद हुआ है, जिसका मतलब है माता-पिता या परिवार में से एक व्यक्ति गांव छोड़कर शहर में मज़दूरी करता है, जबकि बच्चे गांव में रहते हैं। ये बच्चे या तो अपने दादा-दादी या मां-बाप में से एक के साथ गांव में रहते हैं। लोग आम तौर पर इन बच्चों को "ल्योशो अरथुंग"कहते हैं।

नौ वर्षीय श्याओव्यैई च्यांगसू प्रांत के थैईचो शहर के थाईतुंग प्रयोगात्मक स्कूल की छात्रा है, उसके मां-बाप व दादा पेइचिंग में मज़दूरी करते हैं। उसे अपने परिजनों को देखने के लिए एक साल का इंतजार करना पड़ता है। श्याओव्यैई ने कहा ,

"लगभग एक साल तक मैं अपने माता-पिता को नहीं देख पाती हूँ। मुझे उनकी याद आती है। ख़ासतौर पर जब मेरे स्कूली दोस्तों के मम्मी-पापा उन्हें स्कूल लाते हैं, तब मैं अक्सर अपने परिजनों को मिस करती हूं। मैं सिर्फ उनसे फ़ोन पर बात कर पाती हूं, उनकी आवाज़ सुनकर मुझे बहुत खुशी होती है। रात को मैं सपने में देखती हूं कि मेरे मां-बाप घर वापस आ गए हैं।"

दोस्तो, थाईतुंग प्रयोगात्मक स्कूल थाईचो शहर के पूर्वी उपनगर में स्थित है। वहां आसपास कई बड़े बाज़ार हैं, इसलिए वह किसान मज़दूरों के जमा होने की जगह बन गया है। स्कूली छात्र-छात्राएं भी ज़्यादातर किसान मज़दूरों के बच्चे हैं। इस स्कूल के युवा लीग के महासचिव छन वेई ने बताया,

" इस साल मार्च महीने से जुलाई तक, हमारे स्कूल की प्राइमरी कक्षाओं में कुल 1204 छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें से श्याओव्यैई की तरह 33 "ल्योशो अरथुंग" हैं और किसान मज़दूरों के 242 बच्चे हैं। ये दोनों प्राइमरी के छात्रों की कुल संख्या का 23 प्रतिशत हैं। जूनियर मिडिल विभाग के कुल 512 छात्रों में से 7 "ल्योशो अरथुंग"और 89 किसान मज़दूरों के बच्चे हैं। यह जूनियर मिडिल विभाग के छात्रों की कुल संख्या का लगभग 19 फीसदी है।"

"ल्योशो अरथुंग"को मदद देने के लिए वर्ष 2008 की शुरूआत में थाईचो शहर के थाईतुंग प्रयोगात्मक स्कूल ने सभी शिक्षिकाओं से आह्वान किया कि वे माता स्वयंसेवक बनकर किसान मज़दूरों के बच्चों को और ज़्यादा मदद दें। इस अपील पर अध्यापिकाओं ने सक्रिय प्रतिक्रिया व्यक्त की। कुल 36 अध्यापिकाओं ने स्वेच्छा से अध्यापिका माता नामक स्वयंसेवक बनने के लिए आवेदन किया। यह संख्या धीरे धीरे 36 से अब 83 तक जा पहुंची है। ये आम तौर पर 35 वर्ष से कम उम्र की युवा अध्यापिकाएं हैं। ज़्यादातर के अपने बच्चे भी नहीं हैं, फिर भी वे एक माता के दिल से इन विशेष बच्चों की देखभाल करती हैं। अध्यापिक चो श्वेइमेई ने हमें बताया,

"इन बच्चों के माता-पिता पास नहीं रहते हैं, इसलिए कोई भी अपने बच्चों की पढ़ाई या दैनिक जीवन में देखभाल नहीं कर पाते हैं। उनकी एक अध्यापिका होने के नाते, मुझे लगता है कि उनका ज़्यादा ध्यान रखते की ज़रूरत है।"

श्याओव्येई अपनी नानी के साथ रहती हैं। वैसे घर में वही एक बच्ची है, इसलिए नानी उसे बहुत प्यार करती हैं। शुरू में श्याओव्येई अच्छी तरह से खाना भी नहीं खाती थी। वह मेहनत से पढ़ाई भी नहीं करती थी, जब उसकी नानी उसे अच्छी तरह पढ़ने की बात कहती, तो वह गुस्सा होकर नानी की बात नहीं सुनती थी। इस बात को सुनकर श्याओव्येई की अध्यापिका चांग एइजंग उस पर ज़्यादा ध्यान देने लगी। उसके अनुसार,

"फ़ुरसत के समय मैं श्याओव्येई से बात करती रहती हूं। मैंने उसे बताया कि नानी की बातें सुननी चाहिए। उसे पढ़ाई में मदद देने के लिए मैं अक्सर उसे अतिरिक्त कक्षा देती हूं। कभी-कभी मैं उसके घर जाकर उसे पढ़ाती भी हूं। उसकी नानी मुझे बार-बार धन्यवाद देती हैं, लेकिन मैंने उन्हें बताया कि धन्यवाद की ज़रूरत नहीं है। जब बच्ची स्वस्थ व शिक्षित हो जाए, तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी। "

अध्यापिका चांग कहती है कि श्याओव्येई पहले से बेहतर हो गई है, और उसने पढ़ाई में भी प्रोग्रोस की है। अध्यापिका चांग की चर्चा में श्याओव्येई ने हमें बताया,

" मुझे मांस बहुत पसंद है, इसलिए खाना खाते समय अध्यापिका अक्सर मेरे साथ भोजनालय जाती हैं और मुझे मांस खिलाती हैं। 1 जून को बाल दिवस के अवसर पर उन्होंने मुझे छोटा उपहार भी दिया। मैं उन्हें बहुत पसंद करती हूं, वे मेरी मां की तरह हैं।"

छात्र श्याओ थाओ के माता-पिता भी गांव से दूर शहर में मज़दूरी करते हैं। बचपन से ही वह दादा दादी के साथ रहता आया है। लम्बे समय तक मां-बाप से अलग रहने की वजह से वह एक अंतर्मुखी लड़का बन गया है और बड़ों की बातें नहीं सुनता है। लेकिन शिक्षिका द्वारा मदद देने के बाद उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान लौट आयी है। श्याओ थाओ के दादा ने बताया,

"मेरा पोता एक अंतर्मुखी बच्चा है। वह हमसे ज़्यादा बातचीत नहीं करता है, मानो वह खुशी न हो। थाईतुंग प्रोयगात्मक स्कूल की अध्यापिका चांग स्वेच्छा से अध्यापिका माता बनी। न केवल पढ़ाई में बल्कि अन्य चीजों में भी वे मेरे पोते की देखभाल करती हैं। जिससे अब वह खुश है। वह स्वेच्छा से पड़ोसियों से नमस्ते कहने लगा है और पढ़ाई में भी तरक्की कर रहा है। इतना ही नहीं वह घर के काम में भी हाथ बंटाने लगा है। इसके लिए हम अध्यापिका चांग के आभारी हैं।"

आंकड़ों के मुताबिक, चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में "ल्योशो अरथुंग"की संख्या 5.8 करोड़ से भी अधिक है। माता-पिता के बाहर जाकर मज़दूरी करने के बाद बच्चों व उनके बीच संपर्क में कई मुश्किलें भी आ रही हैं। इससे बच्चों का व्यक्तित्व व मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है, जिसके चलते पढ़ाई पर भी असर पड़ता है। इससे चिंतित चीन सरकार व संबंधित विभागों ने कई कदम उठाये। इस साल अप्रैल में प्रधानमंत्री वन च्यापाओ ने शानशी प्रांत का दौरा करते समय विशेष तौर पर इन "ल्योशो अरथुंग"को देखा और उन्हें आत्म-निर्भर, आत्म सम्मान एवं आत्म प्रेम करने के लिए प्रेरित किया। च्यांगसू प्रांत के थैईचो शहर के थाईतुंग प्रोयगात्मक स्कूल की अध्यापिका माताएं चीनी समाज के विभिन्न तबकों के लोगों द्वारा बच्चों की देखभाल किए जाने की एक मिसाल हैं। अब चीनी समाज इन बच्चों के लिए बड़े सामाजिक परिवार का निर्माण कर रहा है, ताकि वे स्वस्थ व खुशहाल माहौल में आगे बढ़ सकें।

(श्याओयांग)

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