44 वर्ष के ली चिंग उत्तर-पूर्वी चीन के हे लोंग च्यांग प्रांत के वू च्यांग नगर में रहते है,जिन्हें बड़ी हद तक अनाज की खेती करने में विशेषज्ञ माना-जाता हैं।यह जगह चीन में धान की भूमि के नाम से प्रसिद्ध है।वू च्यांग का चावल गोल आकार का व स्वादिष्ट होने के कारण चीनी लोगों में बहुत लोकप्रिय है।स्वर्ण शरद के समय सुनहरे धान के खेतों को देख कर ली चिंग का दिल खुशी से झूम उठता है।पूरे साल में व्यस्तता व कोशिशों के बाद आखिरकार फसल उपलब्ध हुई।लेकिन इस वर्ष के शुरूआत में ली चिंग को चिंता थी।उस समय बहुत स्थानीय कृषकों के साथ साथ ली चिंग ने वसंत में आये शीत लहर आदि खराब मौसम का सामना किया।
2009 में लगे वू च्यान धान की एक मशहूर किस्म डाओ ह्वा श्यांग की आम तौर पर कम पैदावार हुई थी।पिछला वर्ष तो ठीक था।2009 की पैदावार की तुलना में अधिक वृद्धि हुई थी।वसंत के प्रारंभिक समय में शीत लहर आने का खतरा मंडराने लगा था।
जो डाओ ह्वा श्यांग ली चिंग और काफ़ी स्थानीय कृषक बोते हैं, वह वू च्यांग के धानों में से एक उच्च स्तरीय किस्म है।इस प्रकार के चावल का दाम आम चावल के मुकाबले दोगुना से अधिक होता है।वह अक्सर दक्षिण चीन एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बिकता है।वर्ष 2010 में ली चिंग की फिर बार अच्छी फसल हुई ।उन के कुल 6.7 हेक्टर खेतों में 75 हज़ार किलोग्राम धान पैदा हुआ।इसके हिसाब में ऋण तथा लागत को काटकर ली चिंग के परिवार की शुद्ध आय 70(सत्तर) हज़ार य्वान से अधिक पहुंच गई, जो बड़ी हद तक स्थानीय औसत स्तर से अधिक है।
पिछले साल का शुद्ध लाभांश 78 हज़ार य्वान था।प्रति 0.6 हेक्टर खेत में 10 हज़ार य्वान की कमाई हुई।इस वर्ष हमने 30 हज़ार य्वान का ऋण लिया है।
जबकि पांच साल पहले ली चिंग के परिवार का जीवन स्तर स्थानीय औसत स्तर से काफ़ी निम्न था।घर में दोनों बेटियों को स्कूल जाना था।लेकिन छोटे खेतों से हुई कमाई से बेटियों की ट्यूशन का पूरा भुगतान नहीं होता था ।इसलिए छोटी बेटी को ज़बरन स्कूल छोड़कर बड़ी बहन के कॉलेज जाने के लिये घर में मां-बाप की सहायता करनी पड़ी।
मेरी दो बेटियां हैं।उस समय बड़ी बेटी इसलिये कॉलेज जा सकी कि हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों ने मदद की थी।
बाद में ज़्यादा से ज़्यादा लोग परिवारों से दूर शहर जा कर काम करने लगे और ली चिंग उन की जमीन ठेके पर ले कर उस की बुआई करने लगे ।पहले के दसेक मू (चीनी इकाई, प्रति मू 0.07 हेक्टर के बराबर है) से अब के 100 मू तक ली चिंग उस क्षेत्र में मशहूर हो गए हैं।
ली चिंग के अनुसार इधर के सालों में किसानों के लिये कुछ उदार नीतियां पेश की गयी हैं।कृषक छोटी रकम का ऋण ले सकते हैं।और कुछ सब्सिडी मिलाकर उन का परिवार थोड़ा सा धनी हो गया है।साथ ही धान की बिक्री भी अच्छी होती है।
लेकिन अब ली चिंग को और कुछ चिंता भी है।हालांकि इन सालों में धान का दाम बढ़ रहा है, धान बोने की लागत भी लगातार बढ़ रही है।उनका कहना है कि वर्तमान में प्रति 1 मू के खेत की लागत एक हज़ार से अधिक है।
प्रति 1 मू पर ठेके की फ़ीस समेत 1000 य्वान से अधिक लगता है।इतने बड़े खेत में खेती करने के लिये मजदूरों को रखने की ज़रूरत भी पड़ती है। कीटनाशक का दाम भी बढ़ रहा है।
2010 में असली वू च्यांग चावल का संकट गुज़रने के बाद ली चिंग ने नये साल के बारे में बहुत कुछ सोच विचार किया।उनकी आशा है कि आसपास के किसानों के साथ सहकारी प्रोसेसिंग कारखाना खोलकर खुद को अपने चावल को सीधे तौर पर शहरों के सुपरमार्केट में बेच सकें।
ली चिंग की अपेक्षा हू पेई प्रांत के जी च्यांग नगर के किसान वन च्या शिन के लिये इस साल की फसल ज़्यादा अच्छी हुई है।58 वर्षीय वन च्या शिन और उस की पत्नि ने कृषि की मशीनों की सहायता से फसल प्राप्त की।पिछले वर्ष दोनों की शुद्ध आय करीब 20 हज़ार य्वान तक पहुंची।
वन च्या शिन का घर चीन के मशहूर धान्यागार—च्यांग हान मौदान में स्थित है।पुराने ज़माने में चीन में एक कहावत थी, जब च्यांग हान मैदान में धान की फसल होती है,तो पूरे देश के लोगों को खाने की चिंता नहीं होती।इस कहावत से च्यांग हान मैदान में हुई अनाज की फसल से पूरे देश की अनाज सप्लाई पर अहम प्रभाव दिखाई देता है।लेकिन इधर के सालों में अधिक से अधिक लोग घर से दूर रहकर काम कर रहे हैं।पहले की मछली व धान की भूमि भी श्रमशक्ति की कमी की चपेट में आ गई है।इस समय मशीनों से कृषि करने से किसानों को बड़ी मदद मिली है।
वन च्या शीन के पास दसेक मू खेत है, अधिक नहीं है।मगर उन का बेटा पूरा साल घर से बाहर काम करता है, इसलिये सिर्फ़ दोनों बुज़ुर्ग ही खेती का काम करते हैं,उन के लिए इस उम्र में खेती करना कठिन है।
वन च्या शिन की वास्तविक मुश्किलों को देखते हुए उनके गांव ने उन्हें धान की बुवाई मशीन दिलायी।उस दिन मशीन चालक को उनके पूरे खेत में धान बुवाई में केवल एक घंटा लगा था।
पिछले साल मेरे खेत में धान के पौधों की बुवाई मशीन से आधे दिन में पूरी हो गई।
मशीन के माध्यम से धान की बुवाई करने की पहले भी उन के गांव ने कोशिश की थी।तीस साल पहले की यह कोशिश उन्हें केवल कड़वी याद के रूप में याद है।
उस समय धान बुवाई मशीन से करना आसान काम नहीं था।इसके साथ और 20 लोगों की आवश्यकता थी।कुछ लोगों को इस मशीन को देखना पड़ता था, कुछ लोगों को पौधे उखाड़ने, धोने का काम करना पड़ता था।जब वह मशीन खेतों की मेढ़ को पार करती, उसे लोगों को अपने कंधों पर उठा कर पार कराना पड़ता था।
वन ने कहा कि मशीन का ऑपरेशन जटिल होने के कारण उस समय पौधे लगाने में मशीन का प्रयोग अंततः बंद हो गया।सुधार व खुलेद्वार के प्रारंभिक समय में सभी खेतों को परिवार के द्वारा ठेके पर लिया जाता था।आम तौर पर प्रति ग्रामीण परिवार के लिये खेत का क्षेत्रफल कम था और बोने में मशीन की ज़रूरत भी कम थी।जिसकी वजह से चीन की कृषि में मशीनीकरण का प्रसार रद्द हुआ।
इन पांच वर्षों में गांव में औद्योगीकरण व शहरीकरण की गति तेज हैं।गांवों की युवा श्रमशक्ति अपना घर छोड़कर बाहर काम करने लगी हैं।यह सब कृषि में मशीनीकरण के तेज़ प्रसार के अहम कारण हैं।कृषि मशीन से संबंधित तकनीक के लगातार विकास से मशीन सेवा का दाम कर्मचारियों के दाम से कम दिखता है।इसलिये ज़्यादा से ज़्यादा किसान खेती करने में मशीन का प्रयोग करना चाहते हैं।
वन ने बताया
अगर मेरे सारे दस मू के खेतों में धान बुवाई के लिये मशीन लगायी जाए, मानव के द्वारा बुवाई करते समय होने वाली गलतियों से बचा जा सकेगा।इससे बुवाई की गुणवता भी सुनिश्चित की जा सकेगी।प्रति 1 मू खेत में एक सौ से ज़्यादा किलोग्राम धान की वृद्धि हो सकेगी।इसका मतलब प्रति मू के खेत में पहले की तुलना में और 100 से अधिक य्वान की कमाई हासिल हो सकेगी।मेरे पूरे खेतों में एक हज़ार य्वान की बढ़ोतरी हो सकेगी।
वर्ष 2010 में चीन में अनाज की कुल पैदावार 57 करोड़ टन तक पहुंची।इसके साथ-साथ किसनों की शुद्ध आय,प्रति इकाई में अनाज की पैदावार ने भी नये रिकॉर्ड स्थापित किये।साथ ही ग्रामीण इलाके में शिक्षा, चिकित्सा, स्वास्थ्य, आवास, रोज़गार तथा सामाजिक गारंटी आदि क्षेत्रों में भी बढ़ावा मिला है।अधिक से अधिक ग्रामीण लोगों को नयी पेंशन व्यवस्था से लाभ मिल रहा है। नयी ग्रामीण चिकित्सा सहकारी प्रणाली में हिस्सा लेने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है।केंद्र सरकार के ताज़ा दस्तावेज़ के मुताबिक खेत की सिंचाई व जल संरक्षण पर भी बल दिया जाएगा।
चाहे ली चिंग का परिवार हो या वन च्या शिन का परिवार, उत्तर से दक्षिण तक, छोटे खेतों में खेती करने वाले लोगों तक यह देखा जा सकता है कि चीनी किसान सुखी से सुखी जीवन बिता रहे हैं।मगर चीन में शहरों व गावों के बीच फिर भी बड़ा भेदभाव है।किसानों को अधिक सुविधाएं कैसे मिलें? शहरवासियों की तरह ग्रामीण लोगों को गारंटी व्यवस्था से लाभ कैसे मिले? ये सब भविष्य के लंबे अरसे तक हमारे सामने समस्याएं रहेंगी।
(लिली)